विनोद कुमार विक्की
बिहार में इन दिनों लोकतंत्र, मोबाइल फोन की घंटी में सिमट गया है। कभी जनसुराज पार्टी का फोन विकास का आश्वासन देता है, तो अगले ही पल तेजस्वी जी रोजगार की गारंटी लेकर लाइन पर आ जाते हैं। फोन कटते ही माननीय मुख्यमंत्री नीतीश बाबू स्वयं दूसरे छोर से आग्रह करते हैं कि “विकास के नाम पर बटन दबाइए।”
अब सोचिए, पहले बैंक वाले फोन कर लोन देने को उतावले रहते थे, फिर क्रेडिट कार्ड और डाटा कंपनी वालों का आतंक था। बीच में अमिताभ बच्चन जी भी फ्रॉड कॉल से सावधान रहने का संदेश देकर फोन संस्कृति को मर्यादित करते रहे। कोरोना काल में फोन ने ‘सुरक्षित दूरी बनाए रखें’ की सलाह देकर हमें सजग बनाया था। परंतु इस चुनावी मौसम में हर कॉल लोकतांत्रिक जिम्मेदारी का बखान करता है। ‘प्रत्याशी आपके मोबाइल पर’ की तर्ज़ पर कमोबेश सभी राजनीतिक दल मूल और प्रवासी बिहारी के मोबाइल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं।
सुबह उठते ही फोन बजता है—“आपका वोट बहुमूल्य है।” शाम होते-होते वही फोन फिर याद दिलाता है कि “बिना वोट दिए घर से न निकलें।” अब समझ नहीं आता कि यह लोकतंत्र है या मोबाइल नेटवर्क कंपनियों की साझेदारी में चल रहा ‘राजनीतिक रिचार्ज अभियान’। राजनेताओं की यह ध्वनि 11 नवंबर तक सुनाई देगी क्योंकि बिहार में प्रथम चरण का मतदान 6 नवंबर और अंतिम चरण का मतदान 11 नवंबर को होना है। सभी पार्टियों में बिहार को विकसित करने की होड़ मची हुई है।
वोटर दुविधा में हैं क्योंकि प्रत्येक कॉल विकास और रोजगार की गारंटी दे रहा है लेकिन मतदाता के पास सिर्फ और सिर्फ एक ही मत देने का प्रावधान है।
इन टेलीफोनिक डेमोक्रेसी के बीच क्षेत्र के निर्दलीय प्रत्याशी एवं अन्य पार्टी के उम्मीदवार बेचैन हैं। व्यग्रता लाज़िमी है। कहीं उनका नेटवर्क जनता के क्षेत्र से बाहर न रह जाए। बहरहाल इन कॉलों के बीच मोबाइल की बैटरी भी लोकतंत्र की तरह थक चुकी है।
क्षेत्र के वोटर को इस बात की चिंता सताने लगी है कि मतदान के दिन कहीं ईवीएम के साथ मोबाइल भी संयुक्त स्वर में न बोल पड़े—“नेटवर्क बिजी है, कृपया थोड़ी देर बाद प्रयास करें।”





