प्रो. महेश चंद गुप्ता
दिल्ली में बीती शाम को हुए बड़े विस्फोट ने पूरे देश को झकझोर दिया है। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार इस विस्फोट में नौ लोगों की मौत हुई है और दो दर्जन से अधिक घायल हैं। दिल्ली में इससे पहले भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट, विभिन्न बाजारों और धार्मिक स्थलों को आतंकवादी निशाना बनाते रहे हैं लेकिन सरकार की कड़ी चौकसी के कारण चौदह सालों तक वह दिल्ली में अपनी नापाक हरकत को अंजाम नहीं दे पाए। चौदह सालों बाद राजधानी में यह आतंकियों की यह कोशिश महज हिंसा नहीं बल्कि भारत की शांति, स्थिरता और विकास यात्रा को बाधित करने का सुनियोजित प्रयास है। यह धमाका बढ़ते भारत को रोकने का षड््यंत्र है।
वर्ष 2014 मेंं मोदी सरकार बनने के बाद देश तरक्की की सीढिय़ां चढ़ रहा है। नक्सलवाद खत्म हो रहा है। समूचे देश मेंं विकास का पहिया तेजी से घूम रहा है। देश की अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा और वैश्विक प्रतिष्ठा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बना है और अब 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इन सबके बीच भारत की आंतरिक स्थिरता, तकनीकी प्रगति और वैश्विक स्वीकार्यता ने शत्रु देशों को असहज कर दिया है। खासतौर पर पाकिस्तान, जो अपनी नाकाम राजनीति और चरमराती अर्थव्यवस्था के कारण स्वयं संकट में डूबा है, भारत के विकास को हजम नहीं कर पा रहा।
वर्ष 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद पाकिस्तान के हुक्मरान अपने देश के सृजन बारे में सोचने में उतना समय नहीं खर्च करते, जितना भारत मेें विध्वंस की दिशा में विचार करने के लिए लगाते हैं। पाकिस्तान की आंखों मेंं जहां भारत की प्रगति चुभ रही है, वहीं उसे भारत की आंतरिक शांति भी रास नहीं आ रही है। खासकर, मोदी सरकार बनने के बाद पाकिस्तान देश मेंं बड़े आतंकी हमले कराने में कामयाब नहीं हो पा रहा है।
एक जमाने मेंं देश के हर हिस्से मेंं असुरक्षा और दहशत का माहौल था। देश में आतंकी हमले होना आम बात थी। आतंकियों का जब जी चाहता, सीमा पार करके आते और देश के विभिन्न शहरों मेें मासूम लोगों को मौत के घाट उतार देते। शहर-दर-शहर बम विस्फोट रोजमर्रा की बात हो गए थे। पाकिस्तान जहां सीमाओं पर गोलीबारी बरकरार रखता, वहीं हमारे देश के भीतर भी आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा।
पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादियों के लिए दिल्ली, मुंबई और जम्मू-कश्मीर हमेशा से बड़े लक्ष्य रहे हैं। विभिन्न आतंकी हमलों की घटनाएं हमारे जेहन में दर्ज हैं लेकिन 2014 मेंं मोदी सरकार बनने के बाद आतंकियों को सीमा पार से घुसपैठ में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इस दौरान जहां भारत में घुसने की कोशिश करने वाले आतंकियों को सीमा पर ही ढेर करने की नीति पर व्यापक काम शुरू हुआ, वहीं देश में घुसे आतंकियों का भी सफाया करने पर जोर रहा।
हालांकि बौखलाए आतंकियों ने कश्मीर मेंं पुलवामा व उड़ी तथा पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर हमले और पहलगाम में पर्यटकों पर हमने का दुस्साहस किया मगर लेकिन इनकी प्रतिक्रिया में भारत ने जिस प्रकार सीमा पार ठिकानों पर प्रहार किए, उसने पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अलग-थलग कर दिया। भारत ने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक और 2025 मेंं ऑपरेशन सिंदूर जैसे निर्णायक कदम उठाकर दुनिया को दिखा दिया कि वह अब सहने वाला राष्ट्र नहीं रहा है। भारत के कड़ी कार्रवाईयों के बाद अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक मानता है। ऐसे में दिल्ली में यह ताजा धमाका किसी हताश आतंकी नेटवर्क की आखिरी कोशिश भी माना जा सकता है।
हालांकि अभी जांच चल रही है, एजेंसियों ने कुछ स्पष्ट नहीं किया है मगर हर देशवासी जानता है कि लाल किले के आगे हुआ ब्लास्ट पाकिस्तान की इसी कुत्सित सोच का परिणाम है। दिल्ली देश का दिल है। यहां ऐसी वारदातें करने के पीछे आतंकवादियों का उद्देश्य पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करना है। चौदह साल तक आंतकवादी अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाए। अब यह ब्लास्ट करके वह भले ही खुश हो रहे हों मगर उन्हें जल्द ही मातम मनाना पड़ेगा क्योंकि मोदी सरकार देश की ओर बुरी नजर डालने वालों को बख्शने वाली नहीं है। भारत की ओर कुदृष्टि डालते वक्त आंतकवादी और उनके सरपरस्त इस बात को भूल गए लगते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है। इस भूल का अहसास उन्हें जल्द ही हो जाएगा।
साढ़े पांच दशक से दिल्ली मेंं रह रहे मुझ जैसे तमाम लोग इस घटना से गमगीन हैं मगर हताश नहीं हैं। हमें अपने देश पर भरोसा है। मैंने दिल्ली की शांति देखी है तो दुर्भाग्य से अशांत दिनों का साक्षी भी हूं। पिछले करीब चार दशकों में दिल्ली ने न जाने कितने आतंकी हमले झेले हैं। मोदी के सत्ता में आने से पहले हमारी दिल्ली भी हमेशा आतंकियों के निशाने पर रही।
पिछले दो दशक में दिल्ली मेंं आंतकी हमलों में एक सौ से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी है और पांच सौ से अधिक घायल हुए हैं। 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हुआ हमला देश की संप्रभुता पर हमला था। केवल दिल्ली और मुम्बई ही नहीं, जयपुर, अजमेर, मालेगांव, श्रीनगर, अहमदाबाद, बेंगलुरू, रामपुर, हैदराबाद, कोयंबटूर, वाराणसी समेत देश के तमाम राज्यों के बड़े शहरों में आतंकियों के नापाक मंसूबे कामयाब होते रहे। मोदी सरकार ने देश में आंतरिक सुरक्षा को कड़ा करते हुए आंतकियों के नापाक मंसूबों को सफल नहीं होने दिया। मुझे याद है 7 सितंबर 2011 का वह दिन, जब दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नंबर-5 के बाहर सूटकेस बम ब्लास्ट हुआ, जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी और 76 घायल हुए थे। इसके बाद से हमारी सुरक्षा व्यवस्था मजबूत है पर ताजा ब्लास्ट ने हमेंं सोचने पर मजबूर किया है। इस विस्फोट से कुछ घंटे पहले फरीदाबाद में एक आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ हुआ था, जिसमें तीन डॉक्टरों समेत आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया। उनके पास से 2,900 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री, एक असॉल्ट राइफल और एक एके 47 जब्त की गई। इससे साफ संकेत है कि दिल्ली में हुआ ब्लास्ट उसी नेटवर्क से जुड़ा है। अगर यह मॉड्यूल समय रहते पकड़ा न गया होता तो न जाने कितने शहरों में तबाही मचाई जाती।
देश की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले दशक में आतंकवादी ढांचों को बहुत कमजोर किया है। सीमा पार से घुसपैठ के मामलों में 60 प्रतिशत कमी आई है। जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठनों में स्थानीय युवाओं की भर्ती दर घट रही है। हमारी विभिन्न सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय पहले से कहीं बेहतर हुआ है लेकिन इस हमले ने यह संकेत जरूर दिया है कि आतंकी संगठन अभी भी किसी न किसी रूप में सक्रिय हैं और उन्हें विदेश से वित्तीय और वैचारिक समर्थन मिल रहा है।
साढ़े पांच दशकों से दिल्ली में रहने वाले मुझ जैसे लोगों के लिए यह घटना बेहद दर्दनाक है। हमने दिल्ली के वे दिन भी देखे हैं जब बाजारों, बसों और मंदिरों में सिलसिलेवार बम धमाके हुआ करते थे। आज की दिल्ली पहले की अपेक्षाकृत बहुत सुरक्षित है लेकिन यह ताजा विस्फोट हमें यह याद दिलाता है कि सुरक्षा के मामले में आत्म संतोष कभी नहीं होना चाहिए। तमाम सुरक्षा प्रबंधों की समीक्षा करने की जरूरत है। भविष्य मेंं आतंकी अपने नापाक इरादों में कामयाब न हो पाएं, यह सुनिश्चित बनाने के लिए सरकार को सुरक्षा प्रबंध और कड़े करने होंगे। सरकार तो अपना काम कर रही है मगर विपक्षी दलों को अपना रवैया सुधारना होगा। विपक्षी दलों को इस समय राजनीतिक लाभ-हानि से ऊपर उठकर एकजुटता दिखानी होगी। जब देश की सुरक्षा दांव पर हो, तब किसी सरकार या पार्टी की नहीं बल्कि यह पूरे भारत की परीक्षा होती है। दुर्भाग्य से कई बार कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल संवेदनशील मुद्दों पर बयान देकर जाने-अनजाने में दुश्मनों के नैरेटिव को बल देते हैं। उन्हें यह समझना होगा कि भारत की एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
दिल्ली देश का दिल है। यहां धमाका सिर्फ एक शहर पर हमला नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास और वैश्विक उभार पर प्रहार है मगर भारत अब वह देश नहीं जो झुके या डरे। जो ताकतें भारत की प्रगति से जल रही हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि यह नया भारत है, जो केवल हमला झेलता नहीं बल्कि जवाब देना भी जानता है। समूचे देश को एकजुट होने की जरूरत है। हमें आतंकवादियों और उन्हें शह दे रही ताकतों को यह अहसास करवाना होगा कि रंग-रूप, वेश-भाषा भले ही अनेक होने के बावजूद हिंदुस्तान के सभी जन एक हैं।
(लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह दिल्ली यूनिवर्सिटी मेंं चार दशक तक प्रोफेसर रहे हैं।)





