शिक्षा, संवाद और सामाजिक न्याय से ही आतंकवाद का खात्मा संभव

Eradication of terrorism is possible only through education, dialogue and social justice

सुनील कुमार महला

आतंकवादी और आतंकवाद किसी भी देश व समाज के लिए नासूर हैं। वास्तव में ये देश और समाज में शांति, विकास और मानवता के दुश्मन हैं।इनकी वजह से निर्दोष लोग जान गंवाते हैं, और समाज भय, अविश्वास व विनाश की ओर बढ़ता है।इस क्रम में, (जैसा कि मीडिया में आया है) दिल्ली में लाल किले के पास हुए विस्फोट की प्रारंभिक जांच में जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े श्रीनगर-पुलवामा फरीदाबाद मॉड्यूल का हाथ सामने आया है।जानकारी के अनुसार विस्फोट में मरने वालों की संख्या 12 हो गई है वहीं इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को सौंप दी गई है।तब तक आम आदमी को यह चाहिए कि वह अपनी सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों पर विश्वास रखते हुए एकता को बनाए रखे और किसी भी हाल और परिस्थितियों में धैर्य और संयम न खोये।सुरक्षा एजेंसियों की अब तक की तहकीकात में यह बात पता चली है कि आतंकियों की सीरियल धमाकों की बड़ी योजना थी, लेकिन 10 नवंबर 2025 (सोमवार) को दिन में आतंकी साजिश का खुलासा होने के बाद कार्रवाई से घबराकर मॉड्यूल से जुड़े आतंकी डॉ. उमर मोहम्मद नबी ने कार में विस्फोट कर दिया और मारा गया।दिल्ली विस्फोट मामले में अब तक लखनऊ की एक महिला डॉक्टर सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया है ।हाल फिलहाल, इस विस्फोट(दिल्ली ब्लास्ट) की घटना के संदर्भ में भूटान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की है और इस संबंध में सख्त कार्रवाई का आश्वासन भी दिया है। पीएम मोदी ने यह बात कही है कि यह घटना बेहद दर्दनाक है और पूरे देश का दिल दहला देने वाली है। उन्होंने बताया कि वे पूरी रात सुरक्षा एजेंसियों के साथ लगातार बैठकें करते रहे। प्रधानमंत्री ने कहा, मैं भूटान भारी मन से आया हूं। दिल्ली में हुई भयावह घटना ने सभी को व्यथित किया है। पूरा देश पीड़ित परिवारों के साथ खड़ा है। एजेंसियां इस साजिश की तह तक जाएंगी और किसी भी साजिशकर्ता को बख्शा नहीं जाएगा। मोदी ने अंग्रेजी में भी दोहराया-‘आल दोज रेस्पोन्सिबल विल बी ब्रोट टू जस्टिस।’ प्रधानमंत्री ही नहीं, स्वयं गृह मंत्री अमित शाह ने 11 नवंबर को (मंगलवार को) दो बार उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक में मामले की तह तक जाकर दोषियों को ढूंढने और कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। जानकारी अनुसार बैठक में गृह सचिव, एनआइए, आइबी तथा दिल्ली व जम्मू-कश्मीर के पुलिस प्रमुख शामिल रहे और बैठक के बाद मामले की जांच एनआइए को दी गई है।बहरहाल, सुरक्षा बलों द्वारा विस्फोट की इस घटना के संदर्भ में अनेक स्थानों पर छापेमारी की जा रही है और तकनीकी व इलेक्ट्रोनिक माध्यमों को खंगालकर आतंकियों के संपर्कों के बारे में पता लगाया जा रहा है। सरकारी सूत्रों का यह दावा है कि आतंकी मॉड्यूल पर सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई से घबरा कर आतंकियों ने बिना तैयारी के इस घटना को अंजाम दिया, अन्यथा सीरियल ब्लास्ट जैसे बड़े हमले किए जा सकते थे। जांच एजेंसी के सूत्रों के हवाले से यह बात सामने आई है कि प्राथमिक तहकीकात में यह फिदायीन हमला(जिसमें अपराधी जानबूझकर अपनी जान ले लेते हैं। वास्तव में ये हमले हत्या-आत्महत्या का एक रूप हैं, जो अक्सर आतंकवाद या युद्ध से जुड़े होते हैं) नहीं लगता, बल्कि हड़बड़ी व घबराहट में किया गया विस्फोट है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि फिदायीन सामान्यतः किसी वाहन या अवरोध से टकराकर विस्फोट करते हैं, जबकि दिल्ली में यह हमला लाल बत्ती पर धीमी गति से चल रही कार में हुआ। मीडिया से उपलब्ध जानकारी के अनुसार कार में रखा बम पूरी तरह तैयार नहीं था, वरना बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती थी। बम में न पर्याप्त डेटोनेशन मैकेनिज्म हीं था और न ही उसमें छर्रे ही डाले गए थे, जानकारों के अनुसार इससे विस्फोट का प्रभाव सीमित रहा और कोई गड्‌ढ़ा भी नहीं हुआ। इससे संकेत मिलता है कि या तो योजना अधूरी थी या फिर संदिग्ध खुद को बचाने की कोशिश कर रहा था। इसी दौरान यह धमाका हो गया।हाल फिलहाल धमाके को लेकर खुलासे पर खुलासे हो रहे हैं। कोई कुछ तो कोई कुछ कह रहे हैं। अनेक चीज़ें सामने आ रही हैं और धीरे-धीरे सब हकीकत भी सामने आ जाएगी कि किसके इशारे पर यह साजिश रची गई और इसमें मुख्य साजिशकर्ता कौन-कौन हैं ?एजेंसियों के मुताबिक विस्फोट में संभवतः एएनएफओ बम का इस्तेमाल किया गया था। अमोनियम नाइट्रेट (एएन), ईंधन तेल (एफओ) और डेटोनेटर के जरिए यह विस्फोट किया जाता है। वास्तव में, यह सामने आया है कि पिछले कुछ समय से आतंकी आरडीएक्स के बजाय इस तरह के बम का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो सस्ता है व आसानी से बनाया जा सकता है। हालांकि ,इस संदर्भ में पुख्ता जानकारी एफएसएल रिपोर्ट के बाद मिलेगी। दिल्ली में लाल किला के पास हुए विस्फोट के संदर्भ में एक्सपर्ट ओपिनियन सामने आया है कि यह सब एक दिन में नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे साजिशकर्ताओं की महीनों की तैयारी है। विस्फोट के क्रम में जम्मू कश्मीर के एक पूर्व डीजीपी ने यह बात कही है कि, ‘इस ब्लास्ट के पीछे फरीदाबाद में पकड़ा गया मॉड्यूल ही है। इनका प्लान बेहद विध्वंसक था। समय रहते इसका पर्दाफाश नहीं होता, तो बड़ा नुकसान हो सकता था। इतना साफ है कि यह साजिश एक दिन में नहीं रची गई, बल्कि इसे महीनों और सालों में अंजाम दिया गया। सारी साजिश पाकिस्तान से रची गई है, इसलिए पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ को जब तक सबक नहीं सिखाया जाएगा, तब तक ये मसला सुलझेगा नहीं।’ पूर्व डीजीपी ने कहा है कि-‘अब आतंकी संगठन नए हथकंडे अपना रहे हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, पीएचडी स्कॉलर को आतंकी संगठन में जोड़ा जा रहा है, जो इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि ये हमारे बीच के ही लोग हैं। जो देश के पैसों से डॉक्टर बनता है, वही देश के नागरिकों को मारने पर उत्तारू हो जाए तो सोचिए, यह किस तरह का कट्टरपंथ पनप रहा है। सरकार पता लगाए कि देश में ऐसे कितने टेरर मॉड्यूल हैं। इनको फंडिंग कौन कर रहा है ?’ पूर्व डीजीपी के सभी प्रश्न जायज हैं, क्यों कि जब आम आदमी के बीच के लोग ही यानी कि जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो उस खेत में क्या बच सकता है ? अब तक यह सामने आया है कि आतंकी गतिविधियों में अक्सर कम पढ़े-लिखे लोग शामिल होते रहे हैं, लेकिन अब उच्च स्तरीय शिक्षित लोगों का भी इनमें सक्रिय होना, वाकई बहुत ही चिंता का विषय है। वास्तव में,इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज आतंकवाद वैश्विक स्तर पर शांति और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि हम सभी हमेशा सतर्क और जागरूक रहें।सच तो यह है कि दहशतगर्दी से हमें अब निरंतर सतर्क रहने की जरूरत है। कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली के लालकिला क्षेत्र में पुलवामा निवासी तारिक की कार में विस्फोट और उसके दो दिन पहले कश्मीर से ही जुड़े फरीदाबाद (हरियाणा) और सहारनपुर (यूपी) में कार्यरत दो डॉक्टरों- मुजामिल और आदिल- के कब्जे से विस्फोटक और घातक एके-47 और 56 असाल्ट राइफलों की बरामदगी से पाक-प्रायोजित आतंकवाद का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में सरकार, प्रशासन और कानून को सतर्कता तो बरतनी ही होगी, कठोर से कठोर कार्रवाई के लिए कदम भी उठाने होंगे। आज तकनीक और सर्विलांस,एआइ, सोशल नेटवर्किंग साइट्स का दौर है। आतंकवादी इनका प्रयोग कर रहे हैं तो हम व हमारी सरकार, प्रशासन आखिर क्यों नहीं ? एआइ व तकनीक के ऐसे दौर में मुश्किल कुछ भी नहीं है।एनआईए, एनटीआरओ, आईबी, स्टेट और जिलों की इंटेलिजेंस यूनिट्स के अलावा विदेशों में भारत-विरोधी गतिविधियों पर नजर रखने वाली खुफिया एजेंसी रॉ को भी प्रो-एक्टिव मोड में आना पड़ेगा।आज आतंकवादी स्लीपर सेल्स और और मोड्यूल्स के फॉर्मेट में पहुंच गये हैं,ऐसे में बेहतरीन सर्विलांस इकाइयां होंगी,तभी हम इनको समय रहते पकड़ पायेंगे। कितनी बड़ी बात है कि हरियाणा के फरीदाबाद इलाके से 2900 किलो विस्फोटक सामग्री, अत्याधुनिक हथियार और संचार उपकरण बरामद किए गए हैं। जांच में सामने आया कि इस मॉड्यूल का संबंध जम्मू-कश्मीर के डॉक्टरों और आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से है। दावा तो यह भी है कि इनके तार आईएसआईएस से भी जुड़े हैं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को आतंकवादी हमला हुआ था, जिसमें 26 लोगों की हत्या हुई तथा इस हमले के बाद भारत ने कई निर्णायक कदम उठाए। 23 अप्रैल को सीसीएस(कैबिनेट कमेटी आन सेक्युरिटी) की बैठक के बाद भारत ने इंडस वाटर ट्रीटी को निलंबित कर दिया था, पाकिस्तानी नागरिकों के सार्क वीजा रोके गए, द्विपक्षीय सीमा पार जांच-व्यापार बाधित किया गया, और कहा गया कि आतंकवाद के मामलों में अब ‘सर्जिकल’ उत्तर होगा। बाद में, भारत-पाक विवाद के बीच में, आपरेशन सिंदूर और आपरेशन महादेव नामक अभियान चलाए गए, जिनमें आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई की गई और हमला करने वाले कई मुख्य आतंकवादियों को मार गिराया गया था। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि साल 2004 से 2025 तक भारत ने अनेक आतंकी हमलों का सामना किया है। वर्ष 2004 में नगालैंड के डिमापुर में हुए धमाकों से शुरुआत हुई, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। इसके बाद 2005 में दिल्ली के सरोजिनी नगर और पहाड़गंज में बम धमाके हुए। 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार धमाकों में 180 से अधिक लोगों की मौत हुई। 2008 में भारत को सबसे बड़ा झटका मुंबई आतंकी हमले के रूप में लगा, जब पाकिस्तानी आतंकियों ने ताज होटल, नरीमन हाउस और सीएसटी स्टेशन को निशाना बनाया। इसके बाद भी 2010 के पुणे जर्मन बेकरी धमाके, 2013 में पटना और बोधगया विस्फोट, 2016 का पठानकोट एयरबेस हमला, और 2019 का पुलवामा हमला जैसे कई बड़े हमले हुए। पिछले साल यानी कि 2024 में जम्मू के रिआसी जिले में यात्रियों पर हमला हुआ और 2025 में पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों को निशाना बनाया। कुल मिलाकर, 2004 से 2025 के बीच भारत ने सैकड़ों आतंकी घटनाएँ देखीं, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते आतंकवाद पर काफी हद तक नियंत्रण पाया गया। यह एक कड़वा सच है कि वर्ष 2004 से 2014 के बीच देश में सात हजार से ज्यादा आतंकी घटनाएं हुईं, लेकिन 2014 से 2024 के दौरान इनकी संख्या घटकर करीब सवा दो हजार रह गई। अच्छी बात यह है कि सीमाओं पर कड़ी निगरानी से घुसपैठ काफ़ी हद तक अब कम हुई है। अंत में यही कहूंगा कि यह महज एक कार में ब्लास्ट की घटना नहीं, बल्कि हमारे सुरक्षा तंत्र की कई परतों में छिपी कमजोरी को कहीं न कहीं उजागर करती है।सच तो यह है कि देश की राजधानी में सुरक्षा बंदोबस्तों पर सवाल खड़े हुए हैं।सबसे बड़ी चिंता की बात तो यही है कि देश के सबसे संवेदनशील और सुरक्षित समझे जाने वाले क्षेत्र में यह दुस्साहस हुआ है। लाल किला, हमारे राष्ट्रीय गर्व व हमारे देश के ऐतिहासिक गौरव का भी परिचायक है। यहां सुरक्षा बंदोबस्त स्वाभाविक रूप से चाक-चौबंद रहने की अपेक्षा की जाती है। वास्तव में हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि सुरक्षा बंदोबस्तों में जरा-सी लापरवाही बड़ी घटना का कारण बनते देर नहीं लगती। हाल फिलहाल यह बम विस्फोट की घटना कहीं न कहीं हमारे मनोबल और हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि दोनों पर असर डालती है। हमें सुरक्षा के संबंध में बहुत सावधानी व सतर्कता बरतने की जरूरत है।खासतौर से संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था को तकनीकी और मानवीय दोनों स्तरों पर देखने की आवश्यकता है।ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए संवेदनशील इलाकों में स्मार्ट निगरानी नेटवर्क, स्थानीय पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय, सार्वजनिक स्थानों पर सख्त प्रोटोकॉल और जवाबदेही तय होनी चाहिए,जैसा कि हरियाणा में भारी मात्रा में विस्फोटक मिलना और उसका राजधानी तक पहुँचना चिंता का विषय है। अस्थिर पड़ोसी देशों को देखते हुए भारत को लगातार सतर्क रहना जरूरी है।आतंकवाद केवल सुरक्षा की समस्या नहीं है, यह समाज, अर्थव्यवस्था और विचारधारा का जटिल रोग है। इसे खत्म करने के लिए केवल सेना या पुलिस नहीं, बल्कि समग्र और दीर्घकालिक रणनीति चाहिए। वास्तव में सच तो यह है कि आतंक और आतंकी विचारधारा का नासूर केवल हथियारों से नहीं, बल्कि शिक्षा, संवाद और सामाजिक न्याय से ही खत्म हो सकता है। इसके लिए मजबूत सुरक्षा व्यवस्था के साथ बेरोजगारी, अशिक्षा और असमानता को दूर करना जरूरी है। जब युवाओं को रोजगार, अवसर और सही दिशा मिलेगी, तो वे भटकेंगे नहीं। समाज में आपसी सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और राष्ट्र के प्रति विश्वास बढ़ाना भी आवश्यक है। सीमाओं पर सख्ती, खुफिया तंत्र की मजबूती और समुदायों के बीच सहयोग से ही आतंकवाद की जड़ें कमजोर होंगी और स्थायी शांति स्थापित की जा सकेगी।