बिहार का जनादेश, सुशासन और नेतृत्व का संदेश

Bihar's mandate, a message of good governance and leadership

प्रभुनाथ शुक्ल

बिहार चुनाव की तस्वीर साफ हो चली है। एनडीए गठबंधन एक बार फिर बिहार में स्थिर सरकार देने को तैयार है। जबकि विपक्ष की चुनावी रणनीति पूरी तरह फिसल गयी है। विपक्ष बिहार में जंगलराज की बात भले प्रचारित किया, लेकिन जनता ने भाजपा और जदतादल (यू) नितीश और मोदी की जोड़ी पर भरोसा जताया। बिहार के लोगों ने सुशासन बाबू को दिल से लिया। एनडीए गठबंधन पिछले चुनाव का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है। जबकि प्रमुख विपक्षी दल आरजेडी और महागठबंधन पूरी तरह पराजित हुआ है। तेस्जवी यादव की नेतृत्व वाली आरजेडी का प्रदर्शन पिछली बार की अपेक्षा से भी घटिया रहा है। विपक्ष जहां चुनावी माहौल सिर्फ हवा में बनाता रहा वहीं भाजपा जमीनी स्तर पर उतरकर वहां अपनी स्थिति मजबूत किया है। दूसरी तरफ एनडीए लगातार सत्ता में बनी रही जिसका उसे फायदा मिला है।

कांग्रेस जैसे बड़े राष्ट्रीय दल से भी कई गुना अच्छा प्रदर्शन लोजपा चिराग पासवान की पार्टी ने किया है। बिहार का चुनाव राजनीति के लिए साफ संदेश है। बिहार का चुनाव परिणाम किसी राजनीतिक दल की हार और जीत का परिणाम नहीं, बल्कि जनता के जनादेश का परिणाम है। राहुल गाँधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव को इस बात को समझना चाहिए कि सिर्फ हवा में आरोप लगाकर आप सत्ता नहीं हासिल कर सकते हैं। जनता विकास चाहती है, हवाई नारों पर वह विश्वास करने वाली नहीं है। बिहार की जनता ने कम से कम यह साफ संदेश दे दिया है।

बिहार का जनादेश, बदलाव की दिशा में नया संदेश है। बिहार की जनता ने एनडीए के सुशासन पर अधिक भरोसा जताया है। बिहार में सच्चाई है कि वहां विकास हुआ है और लोगों को जंगलराज से राहत मिली। विपक्ष के लिए है चिंता और चिंतन का सवाल है। राहुल गांधी को अब जमीनी राजनीति करनी चाहिए। सिर्फ तालियां पिटवाने की राजनीति से उन्हें बाज आना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उन्होंने जितना निजी हमला किया। उसका परिणाम सकारात्मक होने के बजाय नकारात्मक आया। कांग्रेस अपनी जड़ और जमीन दोनों खो दिया है। कांग्रेस और उसका नेतृत्व कब समझेगा यह विचारणीय बिंदु है। सिर्फ जुमले और नारों से आप जमीन नहीं बदल सकते हैं। जनता जमीन पर बदलाव देखना चाहती है। लालू यादव के कुशासन और जंगल राज की तस्वीर आज उसके जेहन में चस्पा है। जिसकी वजह से तेजस्वी यादव को लोगों ने नकार दिया है। दूसरी वजह लालू यादव के पारिवारिक झगड़ों के साथ महागठबंधन में रणनीति की कमी और आंतरिक बिखराव इसका सबसे बड़ा कारण है।

बिहार की जनता ने 20 सालों पर नितीश पर भरोसा जताया है। बिहार में नीतीश और मोदी की जोड़ी ने सिर्फ नारे नहीं लगाए गए जमीन पर काम भी किया। जिससे बिहार की जनता को सीधा फायदा मिला है राजनीतिक दलों के लिए बिहार चुनाव बड़ा संदेश है।

बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों ने यह साबित किया कि है यहाँ की राजनीति अब सिर्फ जात-पात और संप्रदाय तक सीमित नहीं रही, बल्कि विकास, पर आधारित है। महिला मतदाता ने निर्णायक भूमिका निभाई है। दो चरणों में मतदान हुआ जिसमें दूसरे चरण में 69 फीसदी तक मतदाताओं की हिस्सेदारी इस बात का संकेत है कि बिहार कि जनता सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी देना चाहती है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछली बार की तुलना में समाज के उन वर्गों ने मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा बढ़ाया है जिनके मतों पर दल लंबे समय से निर्भर थे। इस बढ़ी भागीदारी का मतलब साफ है, नेताओं को अब जवाबदेही भी ढंग से दिखानी होगी।

एनडीए ने न सिर्फ बहुमत पार किया, बल्कि बहुत मामलों में महागठबंधन को पीछे छोड़ा। इस बढ़त के पीछे कई कारक हैं। नीतीश कुमार की महिला मतदाता और अत्यंत पिछड़ा वर्ग फॉर्मूला माना जा रहा है जिनमे एनडीए ने अच्छी पकड़ बनाई है। मुस्लिम बहुल सीटों में एनडीए को पारंपरिक अनुमान से बेहतर नतीजे मिले, खासतौर पर जब बहुत लोग मान रहे थे कि यह हिस्से विरोधी गुट का सहज आधार होंगे। एनडीए की जीत का प्रमुख कारण यह रहा की जनता के बीच जाकर उन्होंने अपने सरकार की उपलब्धियां गिनाई जबकि विपक्ष के पास ऐसा कुछ नहीं था सिवाय नाकामियों के। केंद्र सरकार की तरफ से 10, 000 रुपए की महिलाओं को सौगात भी वोट बैंक का मजबूत आधार बना। दूसरी तरफ विपक्ष मनगढ़ंत नारों पर चलता रहा और जनता ने उस पर भरोसा नहीं जाताया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ जैसे राहुल गांधी के नारों ने उल्टा काम किया। राहुल गाँधी लगातार अपनी राजनीति में बैकफुट पर हैं, लेकिन अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं ला पा रहे हैं। बिहार चुनाव की सबसे बड़ी बात यह रही है कि नितीश और मोदी के वहां सत्ता में होने की वजह से इसका सीधा लाभ मिला है, जबकि विपक्ष के पास सिर्फ हवाई नारों के अलावा उसके पास दिखाने के लिए कोई जमीन नहीं थी। जबकि बिहार की जनता नितीश और भाजपा सरकार के कार्यों से संतुष्ट थीं जिसका असर चुनाव परिणाम पर साफ दिखा।

महागठबंधन इस चुनाव में कुछ आशा लेकर उतरा था, लेकिन उसके प्रदर्शन ने दिखाया कि उसकी रणनीति कामयाब नहीं रहीं और जनता ने एनडीए पर भरोसा जताया। पूर्वानुमानों में उसे करीब 98-118 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गयी थी। लेकिन परिणामस्वरूप वह उम्मीद के मुताबिक स्थिति नहीं बना पाया। विपक्ष में नेतृत्व का स्पष्ट अभाव जनता को यह भरोसा नहीं हुआ कि गठबंधन में कौन वास्तविक सत्ता संभालेगा। जबकि बिहार के युवा, महिलाएं और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं ने विकास पर अधिक विश्वास जताया।

बिहार के जनादेश ने साफ कर दिया है कि वह धर्म-जात और संप्रदाय की राजनीति से जनता उब चुकी है। अगर सुकून से उसे दो वक्त की रोटी, दो हाथों के लिए काम, बेहतर यातायात और स्वास्थ्य सुविधा मिल रहीं है तो यह निश्चित रूप से एक अच्छी सरकार चुनना चाहती है। बिहार की जनता ने सच्चे मायनों में उसने किसी राजनीतिक दल के लिए नहीं बिहार की उन्नत के लिए यह जनादेश दिया है। बेशक इसमें कोई शक नहीं है कि वहां एनडीए सरकार ने नेतृत्व में नितीश ने काम किया है और इसका फायदा सीधे जनता को मिला है।