बिहार का निर्णायक जनादेश- नीतीश कुमार की वापसी, एनडीए की प्रचंड जीत और भारतीय राजनीति के बदलते संकेत

Bihar's decisive mandate: Nitish Kumar's return, NDA's landslide victory, and the changing dynamics of Indian politics

बिहार में अभूतपूर्व विजय-15 वर्षों में बना कोई भी रिकॉर्ड इस चुनाव की भव्यता और जनसमर्थन की ऊंचाई से मेल नहीं खाता

एनडीए की इस अभूतपूर्व सफ़लता के बाद पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में एक नई ऊर्जा दिखाई दे रही है, “बिहार तो एक झांकी है, बंगाल बाकी है”क़े नारों की गूंज सुनाई दे रही है

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक स्तरपर भारत के सबसे राजनीतिक रूप से सक्रिय और संवेदनशील राज्यों में से एक बिहार ने एक बार फिर ऐसा जनादेश दिया है, जिसने न केवल राज्य की राजनीति में भारी हलचल पैदा की है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता-संतुलन और राजनीतिक संकेतों को भी गहराई से प्रभावित किया है। 2025 के इस चुनावी परिणाम ने साफ़ कर दिया है कि पटना का राजनीतिक किला एक बार फिर बिहार के अनुभवी और लंबे समय तक शासन करने वाले नेता नीतीश कुमार के हाथों में जाता दिख रहा है। एनडीए गठबंधन ने न केवल यह चुनाव जीतने की दिशा में ऐतिहासिक बढ़त हासिल की है, बल्कि पिछले 15 वर्षों में बना कोई भी रिकॉर्ड इस चुनाव की भव्यता और जनसमर्थन की ऊंचाई से मेल नहीं खाता। मैं एडवोकेट किशन सनमुदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि बिहार में एनडीए की प्रचंड वापसी राजनीतिक इतिहास में नया अध्याय जुड़ रहा है,चुनावी आंकड़ों और राजनीतिक विश्लेषण के आधार पर यह लगभग तय माना जा रहा है कि सत्तारूढ़ एनडीए एक बार फिर सरकार बनाने की स्थिति में है। नीतीश कुमार, जो बिहार की राजनीति में एक स्थिरता का प्रतीक माने जाते हैं, राज्य के राजनीतिक किले पर दोबारा कब्जे की ओर तेजी से बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। इस चुनाव में न केवल जदयू-बीजेपी गठबंधन ने अपने पारंपरिक मतदाताओं को मजबूत तरीके से साधा, बल्कि एनडीए ने उन इलाकों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जहां पिछले वर्षों में विपक्ष को बढ़त मिली थी।चुनाव परिणामों की गहराई से समीक्षा करने पर यह स्पष्ट होता है कि एनडीए की इस बार की बढ़त किसी सामान्य चुनावी लहर का परिणाम नहीं है, बल्कि यह कई बहुआयामी सामाजिक- राजनीतिक रणनीतियों, योजनाओं और शासन के मॉडल का संयुक्त प्रभाव है। बिहार के मतदाता इस वक़्त केवल राजनीतिक दलों के आधार पर वोट नहीं कर रहे, बल्कि वे उन सरकारों को चुन रहे हैं जिनके पास व्यवस्थापकीय क्षमता, विकास का ट्रैक रिकॉर्ड और भविष्य का स्पष्ट रूप से सटीक दृष्टिकोण भी दिखाई देता है।
साथियों बात अगर हम प्रदर्शन जिसने रिकॉर्ड तोड़ दिए है एनडीए की 200 सीटों से अधिक की ओर बढ़त है,इस चुनाव का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि जेडीयू- बीजेपी गठबंधन लगभग 200 सीटों के आंकड़े से अधिक की ओर पहुंच रहा है, जो पिछले 15 वर्षों के किसी भी चुनावी प्रदर्शन से अधिक है। यह केवल एक चुनावी जीत नहीं है,यह एक सामाजिक संदेश है कि बिहार के लोगों ने स्थिरता, अनुभव और नीति-प्रधान शासन के मॉडल को प्राथमिकता दी है।एनडीए की इस जीत के पीछे दो कारक सबसे प्रमुख रहे,पहला, जमीनी स्तर पर योजनाओं की प्रभावी पहुंच, और दूसरा, विपक्ष का कमजोर संगठन और बिखराव। भारत के अन्य राज्यों की तरह, बिहार में भी अब चुनाव केवल जातीय समीकरणों पर नहीं, बल्कि योजनाओं की डिलीवरी, महिलाओं की सुरक्षा, युवाओं के रोजगार और सामाजिक कल्याण जैसे कारकों पर लड़ने लगे हैं। यह बदलाव भारतीय लोकतंत्र के परिपक्व होने का संकेत है।
साथियों बात कर हम बिहार से बंगाल तक बीजेपी की राष्ट्रीय विस्तार रणनीति को समझने की करें तो,एनडीए की इस अभूतपूर्व सफलता के बाद भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में एक नई ऊर्जा दिखाई दे रही है। पार्टी की ओर से स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “बिहार तो एक झांकी है, बंगाल बाकी है” यह बयान केवल एक राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की एक गहरी रणनीतिक दिशा को दर्शाता है। इस समय भारतीय जनता पार्टी लगातार उन राज्यों की ओर बढ़ रही है, जहां अभी तक क्षेत्रीय दलों या वाम-समाजवादी गठबंधनों का प्रभुत्व रहा है।पश्चिम बंगाल में बीजेपी लंबे समय से संघर्ष कर रही है और अब बिहार की जीत ने भाजपा को यह विश्वास दिलाया है कि उनकी नीतियों और राजनीतिक रणनीतियों को पूर्वी भारत में भी नई ताकत मिल रही है। बंगाल का राजनीतिक और भू- रणनीतिक महत्व अत्यंत बड़ा है, वहां सत्ता परिवर्तन भारतीय राजनीति के संतुलन को और भी बदल सकता है।इसलिए, बिहार की सफलता भाजपा के लिए बंगाल अभियान की नींव साबित होती दिख रही है।
साथियों बात अगर हम ऐतिहासिक मतदान, बिहार के लोकतंत्र की परिपक्वता का उत्सव को समझने की करें तो, इस चुनाव की सबसे प्रभावशाली विशेषता रही राज्य में हुआ ऐतिहासिक मतदान, जिसने बिहार को देश के उन सबसे राजनीतिक रूप से सक्रिय राज्यों की श्रेणी में ला खड़ा किया, जहां लोकतांत्रिक भागीदारी लगातार बढ़ रही है। दूसरे चरण में 68.79 प्रतिशत और पहले चरण में 65.08 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। दो चरणों को मिलाकर 66.90 प्रतिशत का कुल मतदान, जो पिछले चुनाव की तुलना में 9.6 प्रतिशत अधिक है। यह केवल प्रतिशत नहीं, एक परिवर्तनशील लोकतांत्रिकमानसिकता का संकेत है। भारत में आमतौर पर यह माना जाता है कि अधिक मतदान अक्सर सत्ता-विरोधी लहर को दर्शाता है, लेकिन बिहार ने इस धारणा को उलट दिया। यहां अधिक मतदान ने सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में परिणाम दिए,यह इस बात का प्रमाण है कि मतदाता सरकार के काम से संतुष्ट थे और उसे दोबारा मौका देना चाहते थे।
साथियों बात अगर हममहिलाओं का निर्णायक योगदान नीतीश मॉडल पर भरोसे की मुहर लगनें को समझने की करें तो, एनडीए की इस जीत के केंद्र में यदि कोई शक्ति है, तो वह है बिहार की महिलाएं। महिलाओं ने रिकॉर्ड 71.78 प्रतिशत मतदान करके न केवल चुनाव के गणित को प्रभावित किया, बल्कि यह स्पष्ट संदेश भी दिया कि वे उस सरकार के साथ हैं जिसने उनके जीवन को सीधा प्रभावित किया है।नीतीश कुमार की सरकार महिलाओं की सुरक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक भागीदारी को केंद्र में रखकर लगातार योजनाएँ लागू करती रही है। इनमें विशेष रूप से तीन योजनाओं ने महिला वोट बैंक को एनडीए के पीछे खड़ा कर दिया:(1)10,000 रुपये की सीधी वित्तीय सहायता योजना- वित्तीय स्वतंत्रता महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण साधन है। राज्य की इस योजना ने लाखों महिलाओं को सीधा आर्थिक समर्थन दिया, जिसका प्रभाव परिवारों के स्तर से लेकर सामाजिक स्तर तक देखा गया।(2) लखपति दीदी योजना -यह मॉडल महिलाओं को स्वरोजगार, आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता से जोड़ता है। जो महिलाएं पारंपरिक रूप से घर तक सीमित थीं, वे अब कमाई के केंद्र में आ चुकी हैं। (3) जीविका मॉडल-बिहार का जीविका कार्यक्रम देशभर में महिला सशक्तिकरण का एक सफल प्रयोग माना जा रहा है। यह महिलाओं को सेल्फ-हेल्प ग्रुप के माध्यम से सटीक आर्थिक और सामाजिक शक्ति प्रदान करता है।
इस बार के चुनाव में महिलाओं ने निर्णायक भूमिका निभाते हुए एनडीए को वह समर्थन दिया, जिसने चुनाव के समीकरण पूरी तरह बदल दिए। भारत के राजनीतिक इतिहास में यह पहली बार है कि महिलाएं किसी चुनावी गठबंधन की सबसे मजबूत राजनीतिक रीढ़ साबित हुई हैं।
साथियों बात अगर हम क्या विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया ने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया? इसको समझने की करें तो, बिहार में चलाए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न) कार्यक्रम ने मतदाता सूची को अद्यतन और सटीक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। इस प्रक्रिया के तहत लाखों नए मतदाता सूची में जुड़े, और मृतक या स्थानांतरित मतदाताओं को हटाया गया। एसआईआर का सबसे बड़ा प्रभाव यह रहा कि पहली बार वोट करने वाले युवा और स्थानांतरित ग्रामीण महिलाएं भारी संख्या में सूची में शामिल हुईं, जिनमें से बड़ा हिस्सा एनडीए के समर्थन में रहा। हालांकि कुछ विश्लेषकों का दावा है कि एसआईआर प्रक्रिया का व्यापक लाभ विपक्षी इंडिया गठबंधन को मिल सकता था, लेकिन जमीनी हकीकत यह साबित करती है कि जिन वर्गों को सूची में नए रूप से जोड़ा गया, उन पर एनडीए के कल्याणकारी कार्यक्रमों का प्रभाव अधिक था। इसलिए एसआईआर ने मतदाता सूची को सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ मतदान के पैटर्न को भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया।
साथियों बात अगर हम बिहार का जनादेश,भारत केराजनीतिक भविष्य का संकेत को समझने की करें तो,इस चुनाव का परिणाम सिर्फ एक राज्य की राजनीति का निर्णय नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के भविष्य की दिशा भी तय करता है। बिहार का यह जनादेश चार मुख्य संकेत देता है-(1)कल्याणकारी राजनीति अभी भी प्रभावी है,जनता उस सरकार को चुनती है जो जमीनी स्तर पर योजनाएं पहुंचाती है।(2)महिलाएं भारतीय राजनीति की नई निर्णायक शक्ति बन चुकी हैं,आगे के सभी चुनावों में महिला मतदाता सबसे प्रभावी कारक होंगे।(3)पूर्वी भारत में बीजेपी का विस्तार जारी है,बिहार के बाद बंगाल अगले राजनीतिक संघर्ष का आधार बनेगा।(4) लोकतंत्र की परिपक्वता बढ़ रही है,इतिहास का सर्वोच्च मतदान यह दर्शाता है कि लोग लोकतंत्र में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि बिहार,भारत के बदलते लोकतांत्रिक परिदृश्य का आईना बना,बिहार ने एक बार फिर सिद्ध किया कि वह भारतीय राजनीति का ध्रुवतारा है। यहाँ का राजनीतिक वातावरण न केवल राज्यों की बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करता है। नीतीश कुमार की संभावित वापसी, एनडीए की प्रचंड सफलता, महिलाओं का ऐतिहासिक मतदान, बढ़ता लोकतांत्रिक उत्साह और एसआईआर प्रक्रिया का प्रभाव, ये सभी मिलकर इस चुनाव को भारत के राजनीतिक इतिहास में एक विशेष स्थान देते हैं।इस चुनाव ने सिर्फ सरकार नहीं चुनी,इसने भारत के लोकतांत्रिक और राजनीतिक भविष्य की रूपरेखा भी तैयार कर दी है। बिहार का यह जनादेश भारत की राजनीति के लिए एक निर्णायक संदेश है,विकास, स्थिरता, महिला सशक्तिकरण और सुशासन ही आने वाले दशक की वास्तविक राजनीति होगी।