आम चुनाव में बिहार की विनिंग टीम के साथ ही उतरेगी बीजेपी

BJP will contest the general elections with the winning team of Bihar

संजय सक्सेना

भारतीय जनता पार्टी बिहार में भले ही नंबर एक की पार्टी उभरी हो, लेकिन दूसरे नंबर की पार्टी जतना दल युनाइटेड के नेता नीतीश कुमार को ही वह वायदे के अनुसार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा रही है तो इसके पीछे तमाम किंतु-परंतु हैं। दरअसल, नीतीश के साथ सरकार बनाते समय बीजेपे इस लिये कोई नया प्रयोग नहीं करेगी क्योंकि उसकी नजर 2029 के लोकसभा चुनाव पर टिकी हुई है। बिहार में सत्ता समीकरण को लेकर पार्टी का रुख यह बताता है कि वह यहां किसी बड़े प्रयोग से बचना चाहती है और स्थिरता पर जोर दे रही है। पिछली सरकार के दौर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के दो उपमुख्यमंत्रियों के संतुलन ने गठबंधन को कार्यात्मक बनाए रखा था। अब जब विधानसभा में बीजेपी की स्थिति मजबूत है, तब भी आलाकमान का यही फैसला कि वही पुरानी टीम बनी रहेगी, एक सोची-समझी रणनीति का परिणाम है।

बीजेपी समझती है कि बिहार का सामाजिक और राजनीतिक ताना-बाना बेहद संवेदनशील है। यहां सत्ता चलाने से ज्यादा मुश्किल उसमें निरंतरता बनाए रखना होता है। ऐसे में अगर पार्टी किसी नए चेहरे या ढांचे के साथ प्रयोग करती, तो पुराने गठबंधन समीकरणों में हलचल हो सकती थी। मुख्यमंत्री पद पर नीतीश कुमार को यथावत बनाए रखने और दोनों पुराने डिप्टी सीएम को फिर से दोहराने का निर्णय उसी स्थिरता की गारंटी देता है, जो जनता दल (यू) और बीजेपी के रिश्तों को सहज बनाती रही है। दरअसल, बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का लक्ष्य सिर्फ बिहार की सरकार चलाना नहीं, बल्कि आने वाले 2029 के लोकसभा चुनाव में राज्य से अपना आधार और सीटें और मजबूत करना है। 2019 के चुनाव में पार्टी और उसकी सहयोगी जदयू ने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन 2024 में जो हल्की गिरावट दिखी, उसने बीजेपी आलाकमान को यह सोचने पर मजबूर किया कि बिहार में संगठन के साथ-साथ सत्ता में भी सहजता का माहौल बनाकर जनता का भरोसा दोबारा अर्जित किया जाए। इसके लिए विनिंग कॉम्बिनेशन यानी विजयी फॉर्मूले को न छेड़ना ही सबसे व्यावहारिक रास्ता है।

ऐसा इसलिये है क्योंकि अक्सर राज्य स्तरीय राजनीति में बदलाव संगठनात्मक विचलन लाता है। अगर बीजेपी अपने डिप्टी सीएम या सरकार में चेहरों में बदलाव करती, तो इसका संदेश नीचे के स्तर पर यह जा सकता था कि पार्टी फिर से प्रयोगों के दौर में है। बिहार के मतदाता प्रयोगों से ज्यादा परिणाम देखना चाहते हैं। एक स्थिर सरकार को वे पसंद करते हैं, जो काम में निरंतरता दिखाए। आलाकमान यह समझता है कि बिहार में जो संतुलन नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच तैयार हुआ है, उसी के भरोसे 2029 तक राजनीतिक ज़मीन तैयार की जा सकती है। नीतीश कुमार का चेहरा अभी भी बिहार की राजनीति में संतुलनकारी माना जाता है। हालांकि उनकी लोकप्रियता पहले जैसी नहीं रही, लेकिन वे अभी भी सामाजिक समीकरणों को संभालने वाले नेता के तौर पर स्वीकार्य हैं। बीजेपी को उनकी यही छवि चाहिए, ताकि वह बड़े पैमाने पर वोटों का धु्रवीकरण किए बिना ही सत्ता और संगठन दोनों को मजबूत रख सके। यह रणनीति 2029 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए इसलिए भी अहम है क्योंकि बीजेपी को केंद्र में अपना जनाधार मजबूत रखने के लिए बिहार जैसे बड़े राज्य से कम से कम 35 से अधिक सीटों का लक्ष्य चाहिए। पार्टी जानती है कि इसके बिना उत्तर प्रदेश पर ज्यादा दबाव बढ़ जाएगा। इसलिए बिहार में यदि गठबंधन स्थिर और प्रभावी रहता है, तो लोकसभा में सीटों की गारंटी लगभग तय मानी जाती है।

इसके अलावा, बिहार से जुड़े अन्य समीकरण भी बीजेपी नेतृत्व के ध्यान में हैं। जातीय जनगणना, आरक्षण और समाज के कमजोर वर्गों की भागीदारी जैसे मुद्दों पर नीतीश कुमार के माध्यम से सॉफ्ट पोलिटिकल हैंडलिंग की जा रही है। अगर बीजेपी इन मुद्दों को सीधे अपने नेतृत्व में संभालती, तो संभव है विपक्ष इसे धु्रवीकरण के एजेंडे से जोड़ देता। नीतीश कुमार का रहना इसीलिए बीजेपी के लिए एक कुशन का काम करता है। दूसरी ओर, पार्टी का लक्ष्य राज्य संगठन को मजबूत करने का भी है। सरकार में पुरानी टीम के बने रहने से शीर्ष स्तर पर कोई असंतुलन नहीं होगा, जिससे संगठन जिलों, मंडलों और बूथ स्तर पर चुनावी तैयारियों पर पूरी ऊर्जा लगा सकेगा। जब सरकार और संगठन दोनों में टकराव न्यूनतम होता है, तब लोकसभा चुनाव के लिए ग्राउंड मैकेनिज्म अधिक परिणामकारी बनता है।

बीजेपी की यह रणनीति यह भी दर्शाती है कि वह अब बिहार को सिर्फ सहयोगी दल की राजनीति का मैदान नहीं मान रही। आलाकमान की कोशिश है कि धीरे-धीरे अपना वोट आधार स्वतंत्र रूप से इतना मजबूत किया जाए कि भविष्य में नीतीश कुमार जैसे सहयोगियों पर निर्भरता कम की जा सके। लेकिन फिलहाल, पार्टी के लिए नीतीश के साथ स्थिर रिश्ते बनाए रखना फायदेमंद सौदा है। कुल मिलाकर, बीजेपी ने यह निर्णय लेकर यह स्पष्ट कर दिया है कि उसका फोकस अल्पकालिक राजनीतिक लाभ पर नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक मजबूती पर है। वही पुरानी विनिंग टीम बनाए रखना सिर्फ सत्ता की निरंतरता का प्रतीक नहीं, बल्कि 2029 के लक्ष्य की दिशा में बिछाई जा रही राजनीतिक बिसात का हिस्सा है। बिहार में स्थिरता का यह फॉर्मूला अगर अगले कुछ वर्षों तक कायम रहता है, तो 2029 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसका सीधा लाभ मिलने की पूरी संभावना है।