संगीता शुक्ला
भारत में गाय को आस्था, संस्कृति और परंपरा का प्रतीक माना जाता है। लेकिन राष्ट्रीय गौ महासंघ के संयोजक विजय खुराना के लिए गाय का महत्व इससे बहुत आगे है — उनके अनुसार गाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सतत कृषि और रोजगार सृजन की सबसे मजबूत आधारशिला बन सकती है। उनका मानना है कि जब तक भारत सरकार गायों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून नहीं बनाती और समाज गाय-आधारित उत्पादों के आर्थिक महत्व को नहीं हचानता, तब तक वास्तविक गौ संरक्षण संभव नहीं है। उनकी नेतृत्व में राष्ट्रीय गौ महासंघ नीतिगत सुधारों की वकालत कर रहा है, राज्यों में बनाए गए गाय-संबंधित कानूनों का संकलन कर चुका है, राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है और गाय के महत्व पर व्यापक जागरूकता अभियान चला रहा है।
संगीता शुक्ला के साथ इस विशेष बातचीत में श्री खुराना अपने मिशन, उपलब्धियों और आने वाले लक्ष्यों पर खुलकर चर्चा करते हैं।
साक्षात्कार
प्रश्न: राष्ट्रीय गौ महासंघ की स्थापना आपने किस वर्ष और किस उद्देश्य से की?
उत्तर: राष्ट्रीय गौ महासंघ की स्थापना वर्ष 2006 में की गई थी इसलिए की गई कि गायों के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को एक मंच पर जोड़ा जा सके। हमारा मानना था कि गाय संरक्षण केवल भावनात्मक या धार्मिक विषय नहीं है — यह राष्ट्रीय दायित्व है, जिसे सुव्यवस्थित नीति और कार्रवाई की आवश्यकता है।
प्रश्न: संगठन की स्थापना के पीछे आपकी मूल दृष्टि क्या थी?
उत्तर: हमारी दृष्टि दो प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित थी — गायों का संरक्षण और गाय-आधारित उत्पादों को भारत की आर्थिक प्रगति का आधार बनाना। जब लोग गाय के आर्थिक मूल्य को समझेंगे, तब संरक्षण स्वाभाविक रूप से और स्थायी रूप से आगे बढ़ेगा।
प्रश्न: हाल ही में राष्ट्रीय गौ महासंघ द्वारा स्वदेशी राष्ट्रीय गौधन सम्मेलन आयोजित किया गया था। जनता और निर्माताओं की क्या प्रतिक्रिया रही?
उत्तर: प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहजनक रही। गाय-मूलक उत्पाद तैयार करने वाले उद्यमियों, शोधकर्ताओं तथा उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने बड़ी रुचि दिखाई। आम लोगों ने भी यह समझने में गहरी दिलचस्पी ली कि ऐसे उत्पाद दैनिक जीवन का हिस्सा कैसे बन सकते हैं। इस सम्मेलन ने यह विश्वास मजबूत किया कि गौधन उद्योग बड़े स्तर पर विस्तारित होने के लिए तैयार है।
प्रश्न: समाज और सरकार को गाय के सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व के प्रति जागरूक करने में कौन-सी मुख्य चुनौतियाँ हैं?
उत्तर: जागरूकता की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। अधिकांश लोग गाय संरक्षण को केवल धार्मिक भावना से जोड़ते हैं, जबकि इसके वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व को कम आंका जाता है। जब जागरूकता बढ़ेगी, तभी समाज और सरकार दोनों इस विषय को व्यापक दृष्टिकोण से देखने लगेंगे।
प्रश्न: आपकी संस्था द्वारा भारत सरकार से गायों पर राष्ट्रीय कानून बनाने की मांग रखी गई है। इसे आप क्यों आवश्यक मानते हैं?
उत्तर: अलग–अलग राज्यों के कानून एकरूप नहीं हैं। गायों के परिवहन, वध और अवैध व्यापार को लेकर हर राज्य में नियम और दंड अलग हैं। इन अंतर के कारण कई तरह की खामियाँ पैदा होती हैं। एक राष्ट्रीय कानून से एकरूपता, प्रभावी प्रवर्तन और गंभीर जवाबदेही सुनिश्चित होगी — तभी असली गौ संरक्षण संभव होगा।
प्रश्न: आपने विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए गाय-संबंधित कानूनों का संकलन एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है। इसमें आपको कौन-सी मुख्य खामियाँ दिखीं?
उत्तर: कुछ राज्यों में सख्त कानून हैं, जबकि कुछ जगहों पर प्रावधान बहुत ढीले या अस्पष्ट हैं। इन अंतर के कारण गलत व्याख्या और दुरुपयोग की गुंजाइश रहती है। एक केंद्रीय कानून इन सभी कमियों और विसंगतियों को समाप्त कर सकता है।
प्रश्न: क्या आपने नरेंद्र मोदी–नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के समक्ष अपनी मांग आधिकारिक रूप से रखी है? अब तक क्या प्रतिक्रिया मिली है?
उत्तर: जी हाँ, हमने सरकार और संबंधित मंत्रालयों के समक्ष अपनी मांग औपचारिक रूप से प्रस्तुत की है। हमें आशा है, क्योंकि वर्तमान सरकार भारत की सांस्कृतिक आत्मा और ग्रामीण विकास के महत्व को समझती है। हमें सकारात्मक परिणाम की पूरी उम्मीद है।
प्रश्न: आपका मानना है कि गाय-आधारित उत्पाद भारतीय अर्थव्यवस्था और रोजगार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कैसे?
उत्तर: गोबर और गौमूत्र जैसे प्राकृतिक संसाधन दवाइयों, जैविक खाद, ऊर्जा उत्पादन, ऑर्गेनिक कृषि, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और अन्य पर्यावरण–अनुकूल उद्योगों का आधार बन सकते हैं। इससे ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा और टिकाऊ अर्थव्यवस्था का मॉडल विकसित होगा।
प्रश्न: क्या राष्ट्रीय गौ महासंघ अन्य संगठनों के साथ मिलकर सामूहिक आंदोलन आगे बढ़ाने की योजना बना रहा है?
उत्तर: बिल्कुल। हमारा लक्ष्य गौशालाओं, संस्थाओं, एनजीओ, गौसेवकों और शोधकर्ताओं को एक मंच पर लाना है। आंदोलन तब ही शक्तिशाली बनता है जब आवाजें संयुक्त होती हैं।
प्रश्न: आने वाले पाँच वर्षों के लिए आपके संगठन का रोडमैप क्या है?
उत्तर: हमारा ध्यान देशव्यापी जागरूकता अभियान, गाय-आधारित उत्पादों पर वैज्ञानिक शोध, युवाओं और महिलाओं को प्रशिक्षण, स्वदेशी गौधन सम्मेलनों का विस्तार और राष्ट्रीय कानून की निरंतर वकालत पर केंद्रित रहेगा। हम गाय संरक्षण को आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय आंदोलन बनाना चाहते हैं।
विजय खुराना का कार्य गौ–कल्याण की दिशा में सोच का नया आयाम प्रस्तुत करता है — भावनात्मक आंदोलन से आगे बढ़कर इसे आर्थिक सशक्तिकरण और नीतिगत परिवर्तन के मॉडल में बदलते हुए। संसद राष्ट्रीय कानून बनाए या नहीं, राष्ट्रीय गौ महासंघ की पहल से नीति–निर्माण, आजीविका विकास, सतत कृषि और जनजागरूकता के नए द्वार खुल चुके हैं। संदेश स्पष्ट है — गाय केवल भारतीय आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि समृद्धि, स्थिरता और अवसर का स्रोत भी है।





