प्रो. नीलम महाजन सिंह
राजनेता कभी रिटायर नहीं होते। बिहार विधानसभा 2025 के चुनावों पर सभी राजनीतिक समीक्षकों की पैनी नज़र थी। इसकी कल्पना नहीं थी कि महागठबंधन, कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल पुर्णतः ध्वस्त हो जाएंगें। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ तो थी परन्तु बैल्ट बाॅकस में उन्हें, बिहार की जनता ने नकारत्मक परिणाम दिये। 20 नवंबर 2025 को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्य मंत्री के तौर पर शपथ ली। राजनीति में ‘जो जीता वह सिकंदर’! नीतीश कुमार की राजनीतिक सक्षमता, बिहार में 202 सीटों पर प्रमाणित है। नीतीश कुमार की पार्टी व सहयोगीयों, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी शामिल है, ने चुनावों में 243 में से 202 सीटें जीतीं है। राज्य के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक लोगों में, 74 वर्षीय नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री का पद संभाला है। ये चुनाव एसआईआर (SIR) लिस्ट में विवादित बदलाव के बाद हुए हैं, जिसके बारे में विपक्ष का आरोप है कि इससे असली वोटर बाहर हो गए व बीजेपी को बढ़त मिली है। इस आरोप को पार्टी व चुनाव आयोग दोनों ने नकारा है। 2014 – 2015 के बीच नौ महीने के समय को छोड़कर, कुमार पिछले दो दशकों में, ज़्यादातर समय बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। बिहार में 74 मिलियन से ज़्यादा वोटर हैं व यह राज्य भारत के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। लाखों लोग कामकाज के लिए राज्य से बाहर जाते हैं। यहां भाजपा ने कभी अपने दम पर सरकार नहीं बनाई है। इस साल रिकॉर्ड 66.91% वोटिंग रही, जो 1951 के बाद सबसे ज़्यादा है, जिसमें महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा वोटिंग की। 6 व 11 नवंबर को वोटिंग हुई और 14 नवंबर को गिनती के बाद, पीएम नरेंद्र मोदी ने इस नतीजे को “लोकतंत्र की जीत” कहा है। बीजेपी को 89 सीटें मिलीं, जबकि जेडीयू ने 85 सीटें जीतीं। बाकी 28 सीटें लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) व राष्ट्रीय लोक मोर्चा जैसे गठबंधन के साथियों ने जीतीं। उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) व कई छोटी पार्टियों के गठबंधन से था, जिन्होंने मिलकर 35 सीटें जीती हैं। बिहार के चुनाव बहुत ज़रूरी थे क्योंकि ये अगले साल पश्चिम बंगाल, केरल व तमिलनाडु में होने वाले चुनावों से पूर्व हुए हैं। ये ऐसे राज्य हैं जहाँ बीजेपी सत्ता में नहीं है व उसे अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। बिहार चुनावों में नीतीश कुमार की बदलती भूमिका पर एक नज़र डालना, उनके राजनैतिक उदय व विकास काङविश्लेषण आवश्यक है। 40 सालों में बिहार के मुख्यमंत्री रहे, नीतीश कुमार का चार दशकों से ज़्यादा का पॉलिटिकल करियर, अपने स्ट्रेटेजिक बदलावों, मज़बूती व गहरी पॉलिटिकल समझ के लिए जाना जाता है। उन्हने 1985 में नालंदा के ‘हरनौत’ से बिहार असेंबली चुनाव जीता। 1989 को ‘बाढ़’ से जीतने के बाद वे पहली बार लोकसभा में आए। 1990 में वी.पी. सिंह सरकार में वे केंद्रीय कृषि व सहकारिता राज्य मंत्री बने। 1994 में उनहोंनें पटना में ‘कुर्मी चेतना महारैली’ में हिस्सा लिया। वे लालू प्रसाद की छाया से अलग हुए व अकेले रास्ते पर चल पड़े। जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर, नीतीश कुमार ने ‘समता पार्टी’ बनाई। 1996 को ‘समता पार्टी’ ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया व 8 लोकसभा सीटें जीतीं (6 बिहार से)। 2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार ने शपथ ली व सात दिन बाद इस्तीफा दे दिया। 2005 – 24 नवंबर को वे मुख्यमंत्री के रूप में लौटे व कार्यकाल पूरा किया। 2013 में भाजपा के साथ अपना 17 साल का गठबंधन समाप्त कर; नीतीश ने राज्य मंत्रिमंडल से 11 भाजपा मंत्रियों को हटा दिया। 2014 के लोकसभा चुनावों में जद(यू) के खराब प्रदर्शन (2 सीटें) के बाद उन्होंने 17 मई को इस्तीफा दे दिया। 22 फरवरी 2015 को चौथी बार नीतीश कुमार ने सीएम पद की शपथ ली। महागठबंधन सरकार बनी व 20 नवंबर को वे फिर से सीएम बने (पांचवीं बार)। जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने इस्तीफा दिया व महागठबंधन से बाहर हो गए। वे एनडीए में वापिस शामिल हो गए व छठी बार सीएम बने। 2020 में, एनडीए ने 125 सीटें जीतीं जबकि महागठबंधन ने 110। नीतीश ने 16 नवंबर को सातवीं बार सीएम के रूप में शपथ ली। 28 जनवरी 2024 को उन्होंने ‘ग्रैंड अलायंस’ से नाता खत्म किया व फिर से एनडीए में शामिल हुए व फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2025 में, एनडीए को बिहार के राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी जीत प्राप्त हुई है। कुछ ऐसे तथ्य हैं जिनसे नीतीश कुमार ने साबित किया कि ‘टाइगर अभी ज़िंदा है’। 1974 के ‘जे.पी. आंदोलन’ में एक छात्र नेता के रूप में शुरुआत करने वाले नीतीश कुमार, गठबंधन, प्रतिद्वंद्विता व चुनावी उथल-पुथल का सामना करते हुए, बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में प्रभावशाली शख्सियतों में से एक हैं। 1990 में उन्हें वीपी सिंह सरकार में कृषि व सहकारिता राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया, जिसने राष्ट्रीय राजनीति में उनके उत्थान को चिह्नित किया। 1994 में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब नीतीश ने लालू प्रसाद की छाया से अलग होकर पटना में ‘कुर्मी चेतना महारैली’ में भाग लिया। नीतीश पहली बार 2000 में बिहार के मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनका कार्यकाल सिर्फ़ सात दिन ही चला। वे 2005 में फिर सत्ता में लौटे। अपना पूरा कार्यकाल पूरा कर उनहोंने अपनी ‘एडमिनिस्ट्रेटिव साख’ को मज़बूत किया जिसके कारण उन्हें ‘सुशासन बाबू’ कहा जाने लगा। 2020 में एनडीए की मामूली जीत ने उन्हें सातवें टर्म के लिए वापसी दी। 2025 में, नीतीश कुमार ने एनडीए को बिहार के चुनावी इतिहास की सबसे अहम जीतों में से एक दिलाई, जिससे राज्य के सबसे लंबे समय तक टिके रहने वाले पॉलिटिकल लीडर्स में से एक के तौर पर उनकी जगह पक्की हो गई है। कॉंग्रेस और महागठबंधन को राजनीतिक महत्व बनाए रखने के लिए आत्मचिंतन करना चाहिए। दशकों से बदलते अलायंस व पॉलिटिकल बदलावों के ज़रिए, नीतीश कुमार ने अपने विरोधियों को पीछाड़ कर, राजनीतिक काबलियत का बेजोड़ उदाहरण दिया है। ‘गर्व से कहो हम बिहारी है’ की शक्ति, पूरे भारत में बिहारी नागरिकों के लिए सम्मानजनक है। महिलाओं को दिए ₹10000/- ने सुशासन बाबू को, अधिकतम महिलाओं के वोट प्राप्त हुआ है। राजनीती में साम, दाम, दंड, भेद सभी इस्तेमाल हुए हैं। युवा व महिलाऐं, नीतीश कुमार से अपेक्षाकृत हैं। चुनावी जीत के बाद, अब चुनावी वादों को पूरा करना नीतीश कुमार सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा।





