तुम्हारा है तो ‘परिवारवाद ‘ हमारा है तो ‘गुणवाद’?

If yours is 'familyism' then ours is 'qualityism'?

निर्मल रानी

बात जब परिवारवाद की आती है तो सबसे पहला निशाना गांधी-नेहरू परिवार पर साधा जाता है। उसके बाद मुलायम सिंह यादव व लालू यादव जैसे नेताओं पर परिवारवादी राजनीति करने का आरोप लगाया जाता है। इन लोगों के ‘परिवारवाद ‘ का विरोध करने वाले विशेषकर भारतीय जनता पार्टी के नेता जनता को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि इस परिवार के लोग लोकतंत्र विरोधी हैं और अपने परिवार के लोगों को राजनैतिक विरासत के रूप में जनता पर थोपने की कोशिश करते हैं।

जबकि वास्तव में नेहरू घराने से लेकर मुलायम सिंह व यादव,लालू यादव जैसे नेताओं की भारतीय राजनीति में अहम भूमिका रही है। निःसंदेह नेहरू -इंदिरा -राजीव ने देश को विकास व आधुनिकता की राह पर लाने,देश को आत्मनिर्भर बनाने व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को सम्मान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसी तरह लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव को भी भारतीय राजनीति में मुख्य रूप से “मंडल राजनीति के दो सबसे बड़े चेहरे” और “उत्तर भारत में जातिगत गोलबंदी की राजनीति के जनक” के रूप में याद किया जाता है। इन दोनों ही नेताओं ने 90 के दशक में ओ बी सी विशेषकर यादव- दलित-मुस्लिम गठजोड़ को इतनी शक्ति दी कि उत्तर प्रदेश और बिहार में लंबे समय तक कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा दोनों को सत्ता से बाहर रखा। आज भी इन्हें मंडल क्रांति के नायक, सामाजिक न्याय के प्रतीक तथा भाजपा व कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय दलों का विकल्प देने की क्षमता रखने वाले नेताओं के रूप में याद किया जाता है।

पूरे देश में नेहरू -इंदिरा परिवार ने और देश के दो सबसे बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश व बिहार में इन यादव घरानों ने धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी राजनीति की जो अमिट छाप छोड़ी है उसी ने भाजपा को लंबे समय तक सत्ता से दूर रखा। अपनी इसी कसक को भाजपा नेता ‘परिवारवाद ‘ के रूप में प्रचारित कर अपनी भड़ास निकालते रहते हैं। जबकि इन परिवारों की वर्तमान पीढ़ियों में राहुल गांघी ने पहले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका में पढ़ाई की बाद में रोलिंस कॉलेज, फ्लोरिडा, अमेरिका से स्नातक की डिग्री ली और ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन से 95 में डेवलोपमेन्ट स्टडीज़ में एम फ़िल पूरी की। चार बार सांसद भी चुने जा चुके हैं। इसी तरह अखिलेश यादव ने भी सिविल/एनवायर्नमेंटल इंजीनियर की डिग्री व मास्टर्स डिग्री सिडनी विश्वविद्यालय ऑस्ट्रेलिया से हासिल की है। वे भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व पांच बार सांसद होने का अनुभव रखते हैं। गोया यह लोग न अशिक्षित हैं न ही अनुभवविहीन न ही नक़ली डिग्री धारी। तेजस्वी यादव अशिक्षित ज़रूर हैं परन्तु उनके पास राजनीति का एक दशक से भी लंबे समय का अनुभव होने के साथ साथ पांच बार विधायक दो बार उपमुख्यमंत्री व नेता विपक्ष के पद पर रहने का अनुभव व लालू के कारण ही सही परन्तु भारी लोकप्रियता भी है।

सवाल यह है कि परिवारवाद का विरोध करने वाली भाजपा क्या ख़ुद भी परिवारवाद से दूर रहती है ? क्या उन क्षेत्रीय पार्टियों या नेताओं से पार्टी फ़ासला बनाकर रखती है जो परिवारवाद की राजनीति करते हैं ? इस समय वर्तमान नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में ही कम से कम 15 मंत्री ऐसे हैं जो परिवारवाद से जुड़े हैं या अपनी राजनीतिक विरासत आगे बढ़ा रहे हैं। भाजपा के कुल सांसदों में से लगभग 12% राजनैतिक विरासत से आते हैं। अनुराग ठाकुर,ज्योतिरादित्य सिंधिया,पीयूष गोयल,धर्मेंद्र प्रधान,किरेन रिजिजू,राव इंद्रजीत सिंह,रक्षा खड़से आदि ऐसे कई उदाहरण हैं जो परिवारवाद के चलते ही केंद्र में मंत्री पद तक पहुँच सके हैं। परन्तु जब विपक्ष भाजपाई परिवारवाद का यही दर्पण भाजपा को दिखाता है तो भाजपा दावा करती है कि इनका चयन योग्यता अर्थात ‘गुणवाद’ पर आधारित है, न कि परिवारवाद पर। इससे बड़ा पाखंड और क्या हो सकता है ?

अभी पिछले दिनों बिहार में जब नितीश कुमार मंत्रिमंडल ने शपथ ली तो उसमें भी भाजपा व उसके सहयोगी दलों का परिवारवाद टिकट वितरण से लेकर मंत्री मंडल में स्थान पाने तक सिर चढ़कर बोलता दिखाई दिया। यहाँ विधान सभा चुनाव में एन डी ए की ओर से 29 ऐसे विधायक जीतकर आये हैं जो परिवारवाद का प्रतीक हैं। जबकि 26 मंत्रियों में से 9 मंत्री भी परिवारवाद से जुड़े हैं। इनमें सबसे प्रमुख परिवार केंद्रीय मंत्री व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का है। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को 2025 चुनाव में हिस्से में कुल 6 सीटें मिली थीं जिनमें से 5 पर उन्होंने अपने रिश्तेदारों को टिकट दे दिया। इस समय उनके परिवार के 7 सदस्य राजनीति में सक्रिय हैं तथा 5 व्यक्ति सांसद,विधायक व मंत्री बने हैं। इनमें संतोष कुमार सुमन, जीतन राम मांझी के पुत्र हैं ये विधान पार्षद (एम एल सी )हैं तथा इन्हें इस बार तीसरी बार नितीश मंत्रिमंडल में जगह मिली है। इसके अतिरिक्त दीपा मांझी, जीतन राम की पुत्रवधू अर्थात संतोष (मंत्री जी )की पत्नी हैं।यह विधायक हैं। जीतन मांझी की भाभी ज्योति देवी विधायक हैं। प्रफुल्ल कुमार दामाद ,संतोष (मंत्री जी ) का साला विधायक है । एक अन्य रिश्तेदार देवेंद्र मांझी दामाद उपाध्यक्ष व बिहार SC आयोग का अध्यक्ष है। यह पूर्व में मुख्यमंत्री काल में मांझी के पी ए भी रह चुके हैं।

इसी तरह बिहार की एक और क्षेत्रीय पार्टी है राष्ट्रीय लोक मोर्चा। बिहार चुनाव में राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली आर एल एम के हिस्से में बिहार के 2025 चुनाव में 6 सीटें मिलीं इनमें से 4 पर विजय हासिल की। इनके परिवार में भी कुल 3 व्यक्ति सांसद,विधायक व मंत्री बने हैं। उपेंद्र कुशवाहा के पुत्र दीपक प्रकाश न तो विधायक हैं न ही विधान पार्षद न ही वे चुनाव लड़े। परन्तु इस भरोसे मंत्री बना दिए गये कि अगले 6 महीने में यह विधान परिषद् सदस्य बन जायेंगे। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता कुशवाहा इस बार सासाराम से विधायक चुनी गयी हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग़ पासवान की पार्टी में कई रिश्तेदार विधायक चुने गए हैं। पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के बेटे सम्राट चौधरी भाजपा से उपमुख्यमंत्री हैं। कैप्टन जय नारायण निषाद पूर्व सांसद की बहू रमा निषाद को मंत्री बनाया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री स्व जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा को मंत्री बनाया। पूर्व मुख्यमंत्री हरिहर सिंह के बेटे भाजपा विधायक अमरेंद्र प्रताप सिंह को मंत्री व जे डी यू के पूर्व विधायक राम नंदन सिंह के बेटे श्रवण कुमार को मंत्री बनाया गया।

भाजपा शासित अन्य कई राज्यों में भी इसी तरह के ‘परिवारवाद की पताका’ लहराती दिखाई देगी। परन्तु गत चार दशकों से इन्हें केवल विपक्षी दलों का ही परिवारवाद नज़र आता है। गोया तुम्हारा है तो ‘परिवारवाद ‘ हमारा है तो ‘गुणवाद’?