अजय कुमार
हिंदी सिनेमा के रूपहले पर्दे पर एक ऐसा नाम जिसने सात दशक तक अपनी चमक से परचम लहराया, वह नाम था धर्मेंद्र। पंजाब की मिट्टी से उठकर बॉलीवुड की सबसे बुलंद ऊंचाइयों तक पहुंचने वाले इस अभिनेता ने जो सफर तय किया, वह किसी सपने से कम नहीं। वह सिर्फ सुपरस्टार नहीं थे, बल्कि ऐसे कलाकार थे जिनके संवाद, जिनकी मुस्कान और जिनकी बहादुरी का अंदाज़ लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेगा। उन्हें ही-मैन कहा गया, ग्रीक गॉड कहा गया, और यही दर्जे उन्हें उनकी प्रतिभा, सरलता और अदम्य हौसले ने दिलाए। आज लाखों-करोड़ों प्रशंसकों के दिलों में एक टीस है… दुख है… और कहीं न कहीं एक मलाल भी। उन्होंने अपने चहेते सितारे को वह विदाई नहीं दे पाई, जिसके वे सच्चे हकदार थे। अंतिम पलों तक अस्पताल से घर तक जो गोपनीयता बरती गई, उसने उनके चाहने वालों को बेचैन रखा। किसी महानायक को विदा देने का अपना एक तरीका होता है। लोगों को उनकी झलक आख़िरी बार देखने का हक होता है। पर इस बार यह हक छिन गया। यही सोचकर हर धर्मेंद्र प्रेमी का दिल भारी है।लेकिन जाने वाले चले जाते हैं… रह जाता है उनका काम, उनका प्यार, और उनकी अमर कहानी। धर्मेंद्र की कहानी ऐसी ही है। गांव के साधारण लड़के धरम सिंह देओल का मुंबई जाकर धर्मेंद्र बन जाना, और वहां लाखों दिलों पर राज करना। मिनर्वा सिनेमा में एक फिल्म देखते हुए उनके दिल में जो सपना जागा था, उसने पूरी दुनिया को चमत्कृत कर दिया। छठीं में पढ़ता एक सीधा-सादा लड़का, जिसे अपने स्कूल में पहली बार किसी से मासूम प्यार हुआ… वही लड़का बाद में भारतीय सिनेमा का सबसे आकर्षक चेहरा बना।
धर्मेंद्र ने अभिनय की शुरुआत उन फिल्मों से की, जिनमें उन्होंने भावनाओं की गहराई और इश्क की सादगी दिखाई। लेकिन असली तूफान तब आया, जब वह ऐक्शन के राजा बन गए। उन्होंने बॉडीबिल्डिंग को बॉलीवुड में नया स्थान दिया। मजबूत कंधे, दमदार आवाज, और सामने खड़ा विलेन हो या हालात धर्मेंद्र कभी पीछे नहीं हटते थे। शोले में वीरू के किरदार ने पूरे देश को हिला दिया। वह सिर्फ मज़ाकिया बहादुर ही नहीं थे, बल्कि दोस्ती का सबसे खूबसूरत प्रतीक भी थे। बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना… यह सिर्फ संवाद नहीं था, एक मर्द की असली संवेदनशीलता की पहचान था उनकी फिल्में जैसे मेरा गाँव मेरा देश, यादों की बारात, जुगनू, शालीमार, चरस, द बर्निंग ट्रेन हर दशक में धर्मेंद्र के नाम की गारंटी ही फिल्म की सफलता की गारंटी थी। ऐसा कम होता है कि दो-दो सुपरस्टार राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के दौर में कोई तीसरा कलाकार उसी दमखम से छाया रहे। पर धर्मेंद्र छाए रहे क्योंकि वह राजनीति और कैंपबाज़ी से दूर थे। वह किसी गुट का हिस्सा नहीं, बल्कि पूरी इंडस्ट्री के चहेते थे। उनके चेहरे पर कभी अहंकार की झलक नहीं आई। जितने बड़े स्टार, उतने ही ज़मीन से जुड़े इंसान।और जब वह रोमांस करते थे तो पर्दा पिघल जाता था। दर्शक मान लेते थे कि प्रेम इतना ही सहज, उतना ही खरा होता है। हेमा मालिनी के साथ उनकी जोड़ी तो आज भी दिलों में ताज़ा है। वह रिश्ते में भी उतने ही सच्चे थे, जितने पर्दे पर दिखाई देते थे। उनकी हंसी में पंजाब की मिट्टी की खुशबू थी, उनकी आंखों में जज़्बातों की सच्चाई।
समय बदला, दौर बदला, पर धर्मेंद्र की चमक नहीं घटी। जब कई बड़े सितारे अस्सी के दशक में फ्लॉप होने लगे थे, वह तब भी हिट पर हिट देते रहे लोहा, हुकूमत, कातिलों के कातिल जैसी फिल्में इस बात की गवाह हैं। यही कारण था कि उनकी फैन-फ़ॉलोइंग तीन-तीन पीढ़ियों तक फैली। दादा भी उनके दीवाने, बेटा भी और पोता भी।आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं, तो लोग टूटे हुए हैं। सोशल मीडिया से गलियों तक बस एक ही सवाल आखिर क्यों उनके अंतिम संस्कार में वह राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे? क्यों वह चेहरे जिन्हें आखिरी बार देखकर लोग चैन पाते, उन्हें देखने का मौका किसी को नहीं मिला? क्यों ही-मैन को एक गहरे शीशों वाली एंबुलेंस में चुपचाप ले जाया गया? उनके चाहने वालों की पीड़ा यह सोचकर और बढ़ जाती है कि उनकी अंतिम यात्रा चुपके से पूरी हो गई, जबकि वह पूरी दुनिया के नायक थे।
पर शायद उनका परिवार नहीं चाहता था कि उनका आखिरी दृश्य भीड़, शोर और अफरातफरी में बदले। धर्मेंद्र जिंदगी भर शोहरत में रहे, शायद जाना उन्होंने सादगी से चाहा। फिर भी दिल तो फैंस का ही होता है… उसकी उम्मीदें हमेशा कुछ और चाहती हैं।धर्मेंद्र की जिंदगी में जितने चकाचौंध वाले दिन थे, उतनी ही भावुक यादें भी थीं। वह अपने स्कूल, अपनी मिट्टी, अपने साहनेवाल को कभी नहीं भूले। जब भी जाते, बचपन के दोस्तों से मिलते, अपने पिता की पुरानी कुर्सी देखकर भावुक हो जाते। यह वही धर्मेंद्र थे सुपरस्टार भी और बहुत बड़ा इंसान भी।आज जब हम उनकी फिल्मों के दृश्य याद करते हैं शोले का टंकी वाला वीरू, चुपके-चुपके का विनम्र प्रोफ़ेसर, मेरा गाँव मेरा देश का बदला लेने वाला हीरो तो महसूस होता है, यह कलाकार कभी बुजुर्ग नहीं हुआ। वह हमेशा जवान रहा, हमेशा जिंदादिल रहा। यह विडंबना ही है कि जिसे दुनिया ने हाथों-हाथ सिर पर बैठाया, उसी दुनिया से उनका अंतिम मिलन अधूरा रह गया। लेकिन यह अधूरापन ही उनके प्रति लोगों का सच्चा प्रेम है। जब जनता किसी कलाकार के जाने पर रो पड़ती है तो यही सबसे बड़ा राष्ट्रीय सम्मान है। उन्हें सलामी बंदूकों से नहीं, करोड़ों दिलों से मिली।धर्मेंद्र जैसे सितारे मरते नहीं… वे सिर्फ पर्दे के पीछे चले जाते हैं। उनकी आवाज, उनकी हंसी, उनके संवाद, उनका अंदाज़ हमेशा जिंदा रहेगा। आने वाली पीढ़ियाँ भी जब वीरू की शरारतें देख हंसेंगी, जब गांव के नायक को बंदूक थामे देख रोमांचित होंगी तब धर्मेंद्र फिर से परदे पर लौट आएंगे।आज हम सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि धरम जी, आपने हमें प्यार, हिम्मत और सादगी सिखाई। आप चले गए, पर हम आपको भूल नहीं पाएंगे और आपकी विरासत सदियों तक ज़िंदा रहेगी। ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे। अफसोस यह है कि हम आपको आखिरी बार देख भी न पाए, पर विश्वास यह है कि आप हर दिल में हमेशा दिखाई देंगे।





