आज़ादी के साथ दिलों का बंटवारा

पुष्पेन्द्र दीक्षित

आज यदि हम लाल किले पर तिरंगा लहरा पा रहे है ,यदि आज हम खुली हवा में फैली आजादी की सुगंध को महसूस कर पा रहे हैं ,खुले विस्तृत आकाश में परवाज करते परिंदों को अपनी उल्लास भरी खुली आँखों से देख पा रहे है तो इसके पीछे शहादत का ,कुर्बानियों का एक लम्बा, बहुत लम्बा इतिहास है । सन् 1857 से 1947 तक नब्बे साल चले आजादी के इस महासंग्राम में देश को आजाद कराने के लिए न जाने कितने नौजवानों ने अपनी जान की हँसते -हँसते बाजी लगा दी । भारत को ब्रिटिश हुकूमत से स्वतंत्र करवाने के लिए न जाने कितने माता व पिता ने अपने पुत्रों को खोया, न जाने कितनी बहनों ने अपने भाइयों और कितनी महिलाओं ने अपने पतियों की कुर्बानियां दी । तब जाकर आज हम आजादी की खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं । आजादी यूँ ही नहीं आ गयी,आजादी घोर संघर्ष तथा अनगिनत क्रांतिकारियों की कुर्बाानियों के बाद 15 अगस्त 1947 को हमने आजादी पायी । लेकिन आजादी से एक दिन पहले हमको एक ऐसा दर्द मिला जिसे हिंदुस्तान कभी भी भुला नहीं पायेगा । वह दिन 14 अगस्त 1947 का था। जिस दिन हमारे देश को विभाजित कर दो मुल्को में बाँटा गया- हिंदुस्तान और पाकिस्तान ।

भारत में ब्रिटिश शासकों ने हमेशा से भारत में “फूट डालो और राज करो” नीति का अनुसरण किया । उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग -अलग समूहों में बाँट कर रखा था। उनकी कुछ नीतियां हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति । ब्रिटिश नीतिओं के चलते 20 वीं सदी आते-आते मुसलमान, हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिये भारत में अब आजादी की भावना उभरने लगी तो आजादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों सम्प्रदायों के नेताओ में होड़ लगने लगी ।

30 दिसम्बर सन् 1906 में दक्का में ( ढाका जो अब बांग्लादेश में है )प्रमुख मुसलामानों ने नबाव सली मुल्ला खां के नेतृत्व में मुस्लिम लीग की स्थापना की तथा आगा खां अध्यक्ष बनाये गए । इन नेताओं का विचार था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध है तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करती है । इसी भावना ने द्वि -राष्ट्र सिद्धांतवाद को जन्म दिया | सर्वप्रथम सन् 1930 में इलाहाबाद में द्विराष्ट्र सिद्धांतवाद की बात मुहम्मद इकबाल ने की। उन्होंने भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में दक्षिण एशिया के मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य के निर्माण की बात की ,यह वही मुहम्मद इकबाल है जिन्होंने “सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा” शीर्षकीय गीत लिखा था। उस समय इस बैठक में 75 लोगों ने भाग लिया था । पाकिस्तान शब्द की रचना सर्वप्रथम कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने सन् 1933 में अपने पत्र (नाउ एंड नेवर फॉरगेटन एंड फॉरएवर ) में की थी । लेकिन मुस्लिम लीग आदि के द्वारा इसका मजाक उड़ाया गया । इसके बाद सर्वप्रथम सन् 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग अपने लाहौर अधिवेशन में मो ० अली जिन्ना की अध्यक्षता में की,इसमें पाकिस्तान का प्रस्ताव सिकंदर हयात खान ने बनाया ,जबकि फर्जुरहक ने प्रस्तुत किया और खली कुंआ ने समर्थन किया । इस अधिवेशन में लगभग एक लाख लोगों ने भाग लिया । इसके बाद सन 1943 में मुस्लिम लीग द्वारा मो ० अली जिन्ना की अध्यक्षता में आयोजित अधिवेशन में “बाँटो और छोड़ो” का नारा दिया और 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही करने का निर्यण लेते हुए ,”लड़कर लेगें पाकिस्तान” का नारा दिया ।

भारत के विभाजन के ढाँचे को “3 जून प्लान ” या माउंटबेटन योजना का नाम दिया गया । भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा लन्दन के यकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की । हिंदू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किये गए । 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वत्रंता कानून (इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट ) घोषित किया जिसने विभाजन की प्रकिया को अंतिम रूप दिया गया । इस समय भारत में ऐसे बहुत से राजा थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार से तरह -तरह के समझौते थे । इन 565 राज्यों को आजादी दी कि वे चुनें कि ये किसमें शामिल होंगे भारत या पाकिस्तान । इस विभाजन में न दोनों देशों के लोगों की भावनाओं का ख्याल रखा गया, न ही संतुलित बँटबारे का और न ही दोनों देशों की आबादी की सुरक्षित अदला बदली का । ऐसा किया जाना तब और जरुरी था जब दोनों देशों का बँटबारा धर्म के आधार पर किया गया था । 75 वर्ष पहले विभाजन की यह रेखा भले ही नक़्शे पर खींची गई हो लेकिन इसने दिलों में विभाजन की रेखा खींच दी । इतिहास शायद ही इसे मिटा पाये ।