भारत के वर्तमान परिदृश्य में “भारत छोड़ो” की आवश्यकता

शिशिर शुक्ला

8 अगस्त 1942 को सम्पूर्ण भारतवर्ष में ‘भारत छोड़ो’ की एक तीव्र लहर उठी थी। यह लहर वस्तुतः ब्रिटिश साम्राज्य को भारत से जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए जन जन के द्वारा किया जाने वाला सविनय अवज्ञा आंदोलन था। यह ‘भारत छोड़ो’ के दृढ़ संकल्प का ही परिणाम था कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश दासता की बेड़ियों से मुक्त हुआ। आज भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। 1947 से अब तक भारत की तस्वीर में एक बड़ा परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। विविध उपलब्धियों के द्वारा हम प्रत्येक क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। किंतु यदि भारत की वर्तमान स्थिति पर दृष्टिपात करते हुए एक गहन वैचारिक मंथन किया जाए, तो कटुसत्यस्वरूप एक हृदय विदारक तस्वीर मानस पटल पर आच्छादित हो जाती है। निस्संदेह हम आज गुलामी की जंजीरों से मुक्त हैं एवं खुली हवा में सांस ले रहे हैं किंतु अनेक ऐसे कलंक हैं जो आज भी हमारी भारत माता के दामन पर लगे हुए हैं। स्वतंत्रता के उन्मुक्त वातावरण में ही कुछ विषैली हवाएं भी घुली हुई हैं, जो रह रह कर देश के माहौल को कलुषित कर रही हैं। अनेक ऐसी ज्वलंत समस्याएं हैं जिनकी वजह से सारा देश जल रहा है। इन समस्याओं की विकरालता को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि देश के जन-जन को पुनः ‘भारत छोड़ो’ का दृढ़ संकल्प लेना होगा।

भारत को पल-पल क्षति पहुंचाने वाले इन कारकों में कुछ तो बाह्य कारक हैं एवं कुछ कारक देश की परिधि के भीतर ही सक्रिय होकर उसे खोखला करने पर उतारू हैं। बाह्य कारकों में सबसे गंभीर एवं विकराल समस्या है- आतंकवाद। आतंकवाद एक ऐसा दानव है जो हर क्षण मुख खोलकर देश को निगल जाने के लिए आतुर है। शायद यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हमारी सीमाओं से लगे देशों का व्यवहार कभी भी हमारे प्रति मित्रवत नहीं रहा। चीन व पाकिस्तान आए दिन अपनी घिनौनी हरकतों एवं साजिशों से हमें चोट पहुंचाने का प्रयास करते रहे हैं एवं अनवरत रूप से कर रहे हैं। संपूर्ण विश्व को विदित है कि भारत जिस आतंकवाद की अग्नि में जल रहा है उस आतंकवाद का सबसे बड़ा पोषक भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान है। निरंतर आतंकवाद की चुनौती से जूझने के कारण देश में अस्थिरता एवं अशांति व्याप्त रहती है। एक अन्य तीव्र विष जो देश की आबोहवा में दिन-प्रतिदिन घुलता जा रहा है वह है- सांप्रदायिकता। भारत प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों एवं विचारधाराओं का समन्वय स्थल रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कुछ स्वार्थी नेताओं ने देश के सौहार्दपूर्ण वातावरण में कटुता का ऐसा बीज बोया कि आज भी यहां विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों के मध्य द्वेष, घृणा, अविश्वास एवं संघर्ष की एक विशाल खाई विद्यमान है। देश का विभाजन एवं हिंदू मुस्लिम दंगे इसी सांप्रदायिकता का दुष्परिणाम है। आज स्थिति यह है कि मानव धर्मांध होकर मानव का ही शत्रु बन गया है। अमन चैन, भाईचारा व सद्भाव धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। सांप्रदायिकता भारत के जन जन के मस्तिष्क को विकृत करके भारतीयता को अपना निशाना बना रही है।

देश के अंदर व्याप्त एक अन्य गंभीर समस्या जो देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है वह है -भ्रष्टाचार। आज देश में भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि यह ज्वलंत समस्या संपूर्ण राष्ट्र पर आच्छादित हो चुकी है। आज का परिदृश्य कुछ ऐसा है कि मानो भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकार्यता मिल गई हो। अनैतिक आचरण, घोटाले, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, कालाबाजारी, काला धन, कर चोरी, कमीशन खोरी इत्यादि विविध रूपों में भ्रष्टाचार जीवन का अंग बन गया है। भ्रष्टाचार के कारण देश को अनेक अन्य समस्याओं जैसे अशिक्षा, निर्धनता, महंगाई, भुखमरी, बेरोजगारी आदि ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। बेरोजगारी व निर्धनता ऐसे अभिशाप हैं जो न जाने कितने लोगों को आत्महत्या करने पर विवश कर रहे हैं। उच्च जीवनशैली की ललक, अर्थप्रधान सोच एवं भोगवादी प्रवृत्ति के कारण नैतिक व सामाजिक मूल्यों का पतन हो चुका है। भ्रष्टाचार के बाद देश की आंतरिक समस्याओं में प्रमुख हैं- युवाओं में बढ़ती नशे की लत, महिलाओं की असुरक्षा, दहेज प्रथा, जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी निर्धनता इत्यादि। आज देश का अधिकांश युवा व किशोर नशे के दलदल में फंसकर स्वयं को तबाह कर रहा है। महिलाओं के साथ दिन प्रतिदिन बढ़ते अपराध प्रतिपल गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। दहेज जैसे कलंक कितनी बेटियों को अपनी जान गंवाने पर मजबूर कर रहे हैं।

अंततः यही कहा जा सकता है कि स्वतंत्र भारत में भी अनेक ऐसे शत्रु मौजूद हैं जिन्हें भारत से निकाल फेंकने के लिए एक बार पुनः ‘भारत छोड़ो’ का दृढ़ संकल्प लेने की आवश्यकता है। इसके लिए नितांत आवश्यक है कि हम सर्वप्रथम देश के सबसे बड़े शत्रु आतंकवाद को जड़ से समाप्त करें। देश के युवाओं को अपनी मानसिकता में ध्येयवादी एवं राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को समाहित करना होगा। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनने के लिए भ्रष्टाचार व बेरोजगारी जैसे कलंकों से मुक्ति अनिवार्य है। नारी सशक्तीकरण को मानवता सशक्तीकरण का पर्याय मानते हुए इसकी ओर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमें आत्मकेंद्रित होने के बजाय राष्ट्र को एक इकाई मानकर भावनात्मक एकीकरण की मुहिम छेड़नी होगी।