अजय कुमार
उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक गतिविधियाँ अब से ही पूरी तरह सक्रिय हो गई हैं। बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने चुनाव की तैयारियों को लेकर तेज़ी से काम शुरू कर दिया है। बिहार चुनाव में मिली बीजेपी की जबरदस्त सफलता ने संघ और पार्टी दोनों को यूपी में रणनीति बनाने के लिए प्रेरित किया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी की सीटें अपेक्षा से कम रही थीं, और इसके पीछे विपक्षी समाजवादी पार्टी की बढ़ती ताकत और स्थानीय मुद्दों की भूमिका थी। यही वजह है कि अब संघ और बीजेपी ने यूपी में बिहार मॉडल को लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है। बीजेपी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष, संघ के सरकार्यवाह अरुण कुमार और अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठकों में यूपी के प्रभारी मंत्रियों को निर्देश दिया गया कि वे अपने जिले में संघ के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ नियमित रूप से समन्वय बैठक करें। स्थानीय मुद्दों, विकास कार्यों और कमजोर कड़ियों की पहचान के लिए विस्तृत सूची तैयार की जा रही है, ताकि समय रहते सुधार किया जा सके। संघ अपने शताब्दी वर्ष के तहत बड़े पैमाने पर हिंदू सम्मेलनों की श्रृंखला आयोजित करने जा रहा है, जिनमें लखनऊ में प्रस्तावित विराट हिंदू सम्मेलन भी शामिल है, जो चुनावी तैयारियों का हिस्सा माना जा रहा है।
बिहार चुनाव में संघ की रणनीति बेहद प्रभावी रही। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 42.56% था, जो 2025 में बढ़कर 48.44% तक पहुंच गया। जेडीयू का वोट शेयर 32.83% से बढ़कर 46.2% और चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी का वोट शेयर 10.26% से 43.18% तक पहुंच गया। यह सफलता केवल चुनावी मशीनरी की नहीं बल्कि संघ की लंबी और लगातार मेहनत का परिणाम थी। संघ ने हर जिले में कम से कम 100 स्वयंसेवकों को तैनात किया था, और छात्र इकाई एबीवीपी के 5,000 कार्यकर्ताओं को पांच-पांच की टोली बनाकर पूरे बिहार में काम सौंपा गया था। चुनाव प्रचार के दौरान ये कार्यकर्ता शोर-शराबे से दूर रहकर जमीनी स्तर पर संगठनात्मक काम कर रहे थे। उत्तर प्रदेश में भी संघ इसी मॉडल को अपनाने की योजना बना रहा है। यूपी के पश्चिमी हिस्सों और मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में बीजेपी के लिए चुनौती बनी रहती है। बिहार के सीमांचल क्षेत्र में संघ ने हिंदू वोट को एकजुट रखने की कोशिश की थी, जिसके परिणामस्वरूप 32 सीटों में से 21 पर एनडीए उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। यूपी में भी संघ इसी रणनीति को लागू करने की तैयारी में है। विपक्षी दलों को कमजोर करने के लिए बीजेपी को राजनीतिक समझौते करने पड़ सकते हैं, जैसे कि बीएसपी से कथित सहयोग। यूपी में भी संघ और बीजेपी की रणनीति यही होगी कि हिंदू वोट को बांटे बिना संगठन और विकास के एजेंडे को मजबूत किया जाए।
बीते हफ्तों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत लखनऊ आए और दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव में भाग लिया। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मंच साझा किया और बीजेपी के संगठनात्मक कार्यों पर चर्चा की। इसके अलावा, बीएल संतोष की संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ लंबी बैठक हुई, जिसमें आगामी चुनाव की तैयारियों और संगठनात्मक समन्वय पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश की सरकार और संगठन दोनों में बड़े फेरबदल पर भी विचार किया जा रहा है। कुछ मंत्रियों की जिम्मेदारियों में बदलाव और नए चेहरे शामिल करने की संभावना है। बीजेपी को जल्द ही नया अध्यक्ष भी मिल सकता है, जो चुनावी रणनीति को और तेज करेगा। संघ और बीजेपी की रणनीति केवल संगठनात्मक नहीं है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रणनीति पर भी केंद्रित है। युवाओं, छात्रों, महिलाओं और विभिन्न सामाजिक समूहों से जुड़ाव बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। हिंदू संस्कृति, पहचान और सामाजिक समरसता के संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जा रही है। संघ का उद्देश्य है कि विकास, सुशासन और हिंदुत्व के मुद्दों को जनता के सामने स्पष्ट रूप से रखा जाए। यह रणनीति बिहार मॉडल की तरह उत्तर प्रदेश में भी लागू की जा रही है, ताकि विपक्षी मतों को विभाजित किया जा सके और बीजेपी को अधिक सीटें मिलें।
विशेषज्ञों का मानना है कि यूपी विधानसभा चुनाव सिर्फ राजनीतिक मुकाबला नहीं होगा, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर भी टकराव का मैदान होगा। विकास बनाम पहचान, जाति बनाम हिंदू एकजुटता, तथा सुशासन बनाम राजनीतिक विरोधी गठबंधन की लड़ाई के रूप में यह चुनाव सामने आएगा। संघ और बीजेपी की योजना यह है कि स्थानीय स्तर पर मजबूत संगठन, विकास और हिंदू‑सामूहिकता के संदेश के जरिए 2027 में सत्ता सुनिश्चित की जाए। उत्तर प्रदेश की राजनीति में संघ की भूमिका लंबे समय से महत्वपूर्ण रही है। अब बिहार चुनाव से मिली सीख और रणनीति को यूपी में लागू करने की योजना ने मिशन यूपी को और स्पष्ट रूप दिया है। आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी और संघ की यह रणनीति ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रभावी होने की उम्मीद है। विपक्ष के लिए चुनौती यह होगी कि वह जाति और स्थानीय समीकरणों के जरिए संघ और बीजेपी की योजनाओं का मुकाबला कर सके।
बिहार और पश्चिम बंगाल के चुनावी अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि संघ और बीजेपी की रणनीति सिर्फ वोट बैंक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यापक संगठनात्मक तैयारी और सामाजिक संदेश पर आधारित है। यूपी में भी संघ और बीजेपी यही मॉडल लागू करेंगे। इसके तहत स्थानीय मुद्दों की पहचान, कमजोर क्षेत्रों में सुधार, युवाओं और छात्रों का सक्रियकरण, हिंदू पहचान और विकास एजेंडा प्रमुख होंगे। 2027 विधानसभा चुनाव में बीजेपी और संघ की यह रणनीति निर्णायक साबित हो सकती है, क्योंकि यह रणनीति जमीनी स्तर पर गहराई तक काम करती है और विपक्षी मतों को विभाजित करने की क्षमता रखती है। बहरहाल, यूपी विधानसभा चुनाव 2027 के लिए मिशन यूपी पहले से ही सक्रिय हो चुका है। संघ और बीजेपी ने बिहार मॉडल से सीख लेकर स्थानीय स्तर पर रणनीति बनाई है, जिसमें संगठनात्मक समन्वय, विकास और हिंदू‑सामाजिक संदेश को प्रमुखता दी जा रही है। विपक्ष के लिए यह चुनौतीपूर्ण होगा कि वह संघ और बीजेपी की व्यापक तैयारी का मुकाबला कर सके। आने वाला समय यह तय करेगा कि यूपी में मिशन यूपी कितना सफल होता है और क्या संघ और बीजेपी अपनी रणनीति के जरिए सत्ता में मजबूत स्थिति बनाए रख पाते हैं।





