देवेंद्र रावत
9 नवंबर को उत्तराखंड में रजत जयंती को धूम-धाम से मनाया गया और इस अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रदेश में 8000 करोड़ की विकास योजनाओं का शुभ आरंभ किया। यह पहला अवसर नहीं है की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तरह का उपहार उत्तराखंड को दिया हो, इस से पहले भी नल से जल योजना के तहत 13500 करोड़, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान के लिए 655 करोड़, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 50000 करोड़ का बजट प्रधानमंत्री द्वारा अवंटित किया गया था लेकिन इसका धरातल पर बहुत अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिला है। उत्तराखंड की रजत जयंती पर मैं भी उत्तराखंड में ही था और मुझे भी टकोलीखल इंटर माध्यमिक विद्यालय में रजत जयंती समारोह को अटेंड करने का मौका मिला। इस समारोह में टकोलीखल माध्यमिक विद्यालय के छात्रों ने भाग लिया लेकिन जो भी प्रस्तुति इन छात्रावास द्वारा दी गयी वह केवल और केवल उत्तराखंड राज्य की असफलताओं की ओर ही ध्यान केंद्रित कर रही थीं। छात्रों ने एक प्रस्तुति में उत्तराखंड के उजड़ते गांव और बंजर खेतों की तस्वीर को एक गीत में पेश किया। गीत के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की यहीं नहीं, इस माध्यमिक विद्यालय के अध्यापक कुलदीप चौहान ने एक कविता प्रस्तुत की जो इस प्रदेश के बढ़ते भ्रष्टाचार की और इशारा करती है। मैं उस कविता के कुछ पंक्तियां यहां अंकित कर रहा हूं।
“ ये मेरे उत्तराखंड हमने तुझे बटते देखा है।हमने आंदोलनकारियों की उम्मीदों को साकार होते देखा है। नित नई सपनों की विकास यात्रा को उड़ान भरते देखा है। 25 वर्ष बाद लोगों की भावनाओं को बदलते देखा है। इन 25 वर्षों में 10 मुख्यमंत्रियों को बदलते देखा है। राजनीति कैसे किसी को बर्बाद करती है, उत्तराखंड को उदाहरण स्वरूप देखा है। सोचा था पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के ही काम आएगी। हर वर्ष की उपलब्धियों में यहाँ का नाम होगा। किंतु-परंतु लेकिन यदि, इत्यादि में उलझे हुये यहाँ के नीति निर्माताओं को देखा है। भ्रष्टाचारियों को ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलते देखा है, कागज और फाइलों में ही योजनाओं को पूर्ण होते देखा है। और पलायन कर चुके लोगों को पहाड़ की चिंता करते देखा है।“
यह कविता यह दिखाती है की कैसे अलग राज्य बनाने के बाद इस प्रदेश को उजाड़ता प्रदेश बना दिया है। आज स्थिति यह है की पौड़ी जिले के 95% खेत बंजर हैं। कोटद्वार से लेकर शकरपुर तक की लगभग 95% जमीन अब आबाद नहीं है। इसके कई कारण हैं और सबसे बड़ा कारण है पलायन। यहाँ के गांव बंजर हो गए हैं।इहीं जिन गांव में 12 से 15 वर्षों तक 300 से 400 लोग रहते थे अब वहां किसी गांव में 10, किसी में 20, या आखिरी 50 या 100 लोग ही रह रहे हैं, इनमें से भी 60 से 70% की उम्र 50 वर्षों से अधिक है, काम है लेकिन करने के लिए मजदूर नहीं, यही नहीं, इस राज्य में एक पलायन आयोजना भी बनाया गया है परंतु अब तक कभी भी इस पर उत्तराखंड विधान सभा में चर्चा तक नहीं हुई है। दूसरा कारण है जंगली जानवर इस भू भाग में तेंदुओं, जंगली सूअर और भालूओं की संख्या में पिछले कुछ वर्षों आश्चर्यजनक वृद्धि देखने को मिली है। यही नहीं भालू और तेंदुओं द्वारा लोगों को भी अपना निवाला बनाया जा रहा है। रिखणाीखाल, बिरोंखाल और नानीडांडा ब्लॉक में इनके द्वारा पिछले एक वर्ष में 15 से 20 बच्चों और बयस्कों को अपना निवाला बनाया है जिससे पूरे संभाग में डर का माहौल है श्याम ढलते ही भालू और टेंडुए मानव बस्तियों में आजाते जिससे की लोगों में डर का माहौल है। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है की सरकार इसको लेकर बिल्कुल ही लापरवाह दिखाई दे रही है, लैंसडाउन विधान सभा से विधायक दलीप रावत कई बार इस मुद्दे को विधान सभा में उठा चुके हैं पर ना जाने क्यूं इस ओर भाजपा सरकार आंखें मुंदे बैठी है। जनता इसकी शिकायत अधिकारियों को करती हैं लेकिन उत्तराखंड के अधिकारियों की चमड़ी इतनी मोटी हो गई है कि वो चुने हुए एमएलए तक की भी सुनने को तैयार नहीं हैं। राज्य जयंती पर जनता के बीच में जो मुख्य असंतोष सामने आया है वो प्रदेश में फैला भ्रष्टाचार इस बात को तो कई विधायकों ने विधानसभा सदन में भी खुले तौर पर स्वीकार किया है और यहां तक कहा है कि विधायक निधि से भी अधिकारी 15% कमीशन काटते हैं। अगर एक विधायक विधानसभा में ऑन रिकॉर्ड यह बातें बोल रहा है तो यह किसी भी प्रदेश के लिए चिंताजनक है। उत्तराखंड को बने 25 वर्ष पूरे हो गए हैं और जिस प्रदेश की परिकल्पना प्रदेश के लोगों ने की थी क्या वही उत्तराखंड लोगों को मिला है, तो उत्तर है शायद नहीं। 25 वर्ष पहले तक जिन गांवों में रौनक थी आज वहां डर और अंधेरा पसरा है, बंजर खेत अब ये उम्मीद भी खो चुके हैं कि ये कभी फिर से आबाद भी होंगे। अगर किसी की वृद्धि और विकास हुआ है तो केवल जंगली जानवरों का और नेताओं का और भ्रष्टाचार का। कल्पना कीजिये कि प्रधानमंत्री ने 50000 करोड़ कृषि औरसिंचाई के लिए दिए और उसके बाद यहाँ की 95% भूमि बंजर हो गयी तो आखिर ये पैसा गया तो कहाँ गया। मैं इसका एक उदाहरण यहां दे रहा हूं, 2006 से 2008 तक इस राज्य में सिंचाई विभाग द्वारा खेती की सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण किया गया था इस योजना के तहत, ग्राम घोरपाल मल्ला , तलाई और तल्ला गांव में नहरों का निर्माण किया गया था लेकिन इन नहरों से कभी एक नाली जमीन की सिंचाई नहीं हुई और ये सब नहरें उस समय की भाजपा सरकार द्वारा बनाई गई थी कई करोड़ों का घोटाला हुआ है। इन नहरों का निर्माण हुआ और एक नाली जमीन की सिंचाई नहीं हुई तो इन नहरों के बिल पास कैसे कर दिए गए। आज भी इन नहरों के मेंटिनेंस के नाम बजट पास किया जा रहा है लेकिन क्या वो इन नहरों पे खर्च किए जा रहे हैं। इसी बिरोंखाल ब्लॉक में कुछ ऐसी नहरों का निर्माण किया गया जिनमें केवल और केवल बरसातों में पानी आता है क्योंकि जिन स्त्रोतों से इन नहरों को बनाया गया वहाँ पानी ही नहीं है उदाहरण, तल्ला गांव के लिए बनाई गई नहर और इस नहर पे किसी भी विभाग ने कभी कोई आपत्ति नहीं की और ठेकेदार को आसानी से भुगतान कर दिया गया। यही नहीं, उत्तराखंड में विभागों द्वारा भ्रष्टाचार के नए-नए हठकंडे अपनाए जा रहे हैं, पीडब्ल्यूडी इनमें सबसे ऊपर है। ठेकेदारों और पीडब्ल्यूडी का एक ऐसा गठबंधन बन गया है जिसे शायद ही तोड़ा जा सके, इसका जीता-जागता उदाहरण है टाकोलीखाल-बिरोंखाल मोटर मार्ग। 13 साल पहले इस सड़क का निर्माण आरंभ हुआ था जोकि आजतक पूरा नहीं हुआ, यह तो एक साधारण सी बात है परन्तु चौंकाने वाली बात यह की इस सड़क पर काम करने वाले 4 से 5 ठेकेदार अधा-अधूरा काम छोड़ कर भाग चुके हैं और उनपर आजतक पीडब्ल्यूडी ने कोई भी कार्रवाई नहीं की बल्कि यहां से भागे ठेकेदार उत्तराखंड में ही कहीं दूसरी जगह पर मज़े से काम कर रहे हैं। इसमें अधिकारी और राजनेता दोनों शामिल हैं। जनवरी 2000 में यह भूभाग उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो इसका सालाना बजट 4000 करोड़ था जोकि अब बढ़कर 1,00,000 करोड़ से भी अधिक हो गया है परन्तु यह कहां खर्च किया जा रहा है इसका धरती पर कोई भी प्रभाव नजर नहीं आता है,
इस पैसे का बेतहाशा दुरुपयोग किया जा रहा है, हाल ही के वर्षों में गांव और सड़कों के किनारे पक्के कूड़ा घर बनाये गये हैं लेकिन आज तक इन कूड़ा घरों से कभी भी कूड़ा नहीं उठाया गया है, कुछ कूड़ा घरों का निर्माण तो जंगल के बीच सड़क पर किया गया है। इन योजनाओं पर कई 100 करोड़ खर्च किये गये हैं जिनका कोई भी लाभ पहाड़ की जनता को नहीं मिला है। क्या इस योजना में भी भ्रष्टाचार हुआ है इसकी भी जांच होनी चाहिए।
ऐसे ही उत्तराखंड के किसानों की समृद्धि के लिए राज्य में डिस्टिलरी लगायी गयी थी, उद्देश्य था कि राज्य में उत्पादित माल्टा और अन्य फलों को प्रोसेस कर प्रदेश में शराब बनायी जायेगी और यह अनिवार्य किया गया था कि राज्य में स्थापित डिस्टिलरीज अपना प्रोसेसिंग प्लांट भी लगाएं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और अब डिस्टेलरीज स्थानीय फलों को प्रोसेस करने की अपेक्षा हरियाणा और पंजाब से केमिकल मंगाकर उत्तराखंड में शराब का उत्पादन कर रही हैं, इससे नेताओं और अधिकारियों का तो विकास हुआ है पर उत्तराखंड की आम जनता का विनाश ही हुआ है क्योंकि अब उत्तराखंड में हर गांव में शराब धड़ल्ले से बेची जा रही है। दूसरे शब्दों में कहूं तो अब माल्टा के किसान नहीं शराब के सप्लायर की संख्या में वृद्धि हुई है और ऐसे उत्तराखंड की शायद ही कोई परिकल्पना किसी ने की हो।





