- रिटायरमेंट आयु वृद्धि,युवाओं के लिए चिंता का विषय है, सरकार का संभावित दावा, निर्णय संतुलित तरीके से लागू किया जाएगा,दोनों वर्गों के हित सुरक्षित रहें।
- भारत अनुभवी व युवा मानव संसाधन के संतुलन से वैश्विक स्तरपर कार्यकुशलता का एक संभावित नया मॉडल भी प्रस्तुत कर सकता है
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
भारत सरकार द्वारा कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने पर गंभीरता से संभावित विचार किए जाने की हालिया जानकारी ने पूरे देश क़ी मीडिया में एकव्यापक बहस को जन्म दे दिया है। यह मुद्दा केवल सरकारी व्यवस्था या नौकरशाही तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत के विशाल श्रम बाजार, आर्थिक संरचना, पेंशन प्रणाली, युवाओं की रोजगार संभावनाओं और कार्यस्थल की दीर्घकालिक नीतियों पर गहरा प्रभाव डालता है।वैश्विक संदर्भ में भी कई देशों ने बढ़ती उम्र,जीवन प्रत्याशा और पेंशन-भार को देखते हुए रिटायरमेंट आयु में बदलाव किए हैं। ऐसे में भारत का यह कदम न केवल अपरिहार्यता का संकेत है, बल्कि एक परिवर्तनशील सामाजिक- आर्थिक ढांचे की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत भी देता है।
केंद्रीय सरकार के स्तरपर रिटायरमेंट की उम्र को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष करने का विचार महज़ किसी एक प्रशासनिक या वित्तीय गणना का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई व्यापक कारण मौजूद हो सकते हैं?पिछले एक दशक में भारत में जीवन प्रत्याशा लगातार बढ़ी है, वरिष्ठ कर्मचारियों का स्वास्थ्य बेहतर हुआ है और कई क्षेत्रों में अनुभव -आधारित कार्य-प्रदर्शन की मांग बढ़ी है। जिन देशों में जनसंख्या वृद्ध हो रही है,वहां रिटायरमेंट आयु में बढ़ोतरी आम हो चुकी है,जैसे फ्रांस, जापान, जर्मनी, अमेरिका और चीन। भारत में भी यह मुद्दा लंबे समय से चर्चा में रहा है, क्योंकि देश की कार्यबल संरचना में तेजी से बदलाव हो रहा है।इसके अलावा, सरकार पर पेंशन-व्यय और सामाजिक- सुरक्षा योजनाओं का बोझ बढ़ता जा रहा है। एक बड़ी संख्या में कर्मचारी अगले 10-15 वर्षों में रिटायर होने वाले हैं। यदि एक साथ भारी संख्या में कर्मचारी सेवानिवृत्त होते हैं, तो इससे न केवल सरकारी व्यय में उछाल आता है,बल्कि अनुभवी मानव- संसाधन की कमी भी पैदा होती है। इसी संदर्भ में रिटायरमेंट आयु दो वर्ष बढ़ाने का प्रस्ताव कई स्तरों पर महत्त्वपूर्ण और तार्किक प्रतीत होता है।यह आर्टिकल सोशल मीडिया में चल रही तार्किक बस पर आधारित है सटीकता सेक़ोई भी संबंध नहीं है।
साथियों बात कर हम सरकार का प्रस्ताव:60 से 62 वर्ष रिटायरमेंट आयु एक नीतिगत परिवर्तन इसको समझने की करें तो, सरकार द्वारा संकेत दिए गए संभावित प्रस्ताव में रिटायरमेंट आयु को 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने की संभावना जताई गई है। यह प्रस्ताव केंद्रीय कर्मचारियों, राज्यों के कर्मचारियों,सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों, और कई अर्ध-सरकारी संस्थाओं कोप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेगा।सरकार के इस कदम के पीछे प्रमुख तर्क इस प्रकार हो सकते हैं (1) अनुभवी कर्मचारियों को बनाए रखना-प्रशासन से लेकर टेक्निकल क्षेत्रों तक, कई विभाग ऐसे हैं जहां अनुभव सीधे कार्य-कुशलता से जुड़ा होता है। वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों का सेवाकाल बढ़ाने से नीतिगत निरंतरता बनी रहती है और प्रशिक्षण पर दबाव घटता है।(2) पेंशन-भार कम करना-दो वर्ष अतिरिक्त सेवा का अर्थ है कि कर्मचारी दो साल और योगदान देंगे, जबकि सरकार को पेंशन का बोझ दो साल बाद उठाना होगा। इससे राजकोष पर तत्काल दबाव कम होगा। (3) कर्मचारियों के वित्तीय जीवन को स्थिरता- महंगाई बढ़ता शहरी जीवन-यापन खर्च, स्वास्थ्य- देखभाल के बढ़ते खर्च और लंबी आयु इन सभी के लिए लंबी आयु तक सेवा कर्मचारी को आर्थिक सुरक्षा देती है।(4) पोस्ट- रिटायरमेंट आर्थिक तनाव कम करना-कई अध्ययन बताते हैं कि बड़ी संख्या में लोग रिटायरमेंट के तुरंत बाद आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हैं। दो वर्ष का अतिरिक्त समय उनके लिए एक मजबूत सुरक्षा परत तैयार करता है।
साथियों बात अगर हम कर्मचारियों की उम्मीदें और वित्तीय लाभ- दो साल की अतिरिक्त सेवा क्यों महत्वपूर्ण है इसको समझने की करें तो,भारत में 60 वर्ष के बाद लोग केवल उम्र के हिसाब से बूढ़े माने जाते हैं, क्षमताओं के हिसाब से नहीं। आधुनिक कार्य वातावरण में 60 वर्ष से अधिक आयु वाले लोग पूरी तरह सक्रिय और कुशल होते हैं। ऐसे में कर्मचारियों के लिए यह निर्णय कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान कर सकता है:(1)दो वर्ष का अतिरिक्त वेतन -जीवन भर की आय पर बड़ा असर सबसे बड़ा लाभ सीधे वेतन से जुड़ा है। कर्मचारियों को दो वर्ष अधिक वेतन मिलने का मतलब है-अधिक बचत,अधिक निवेश, सामाजिक सुरक्षा राशि में बढ़त, रिटायरमेंट के बाद बेहतर आय- स्रोत,विशेषकर मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए यह बढ़ोतरी अत्यंत महत्वपूर्ण है। (2) पेंशन और ग्रेच्युटी में वृद्धि-पेंशन का निर्धारण आखिरी वेतन और कुल सेवा अवधि के आधार पर होता है।दो वर्ष की अतिरिक्त सेवा से-पेंशन राशि बढ़ जाएगी, ग्रेच्युटी की कुल गणना में वृद्धि होगी,कम्युटेशन (एकमुश्त राशि) बढ़ेगी,इससे रिटायरमेंट के बाद वित्तीय स्थिरता काफी मजबूत होगी। (3) ईपीएफओ में अधिक योगदान जो कर्मचारी ईपीएफ के दायरे में आते हैं, उन्हें दो वर्षों तक एम्प्लायर और एम्प्लोयी दोनों का योगदान मिलता रहेगा।इससे-रिटायरमेंट कॉर्पस मजबूत होगा,ब्याज के रूप में अधिक राशि का लाभ मिलेगा,लंबे समय तक सुरक्षित कैश रिज़र्व बनेगा (4) स्वास्थ्य सुरक्षा और मेडिकल कवरेज-सेवा अवधि बढ़ने से कई कर्मचारियों को-सरकारी चिकित्सा सुविधाएँ,स्वास्थ्य बीमा सीजीएचएस लाभ-दो वर्ष अधिक मिलेंगे।यह सेवानिवृत्ति के बाद होने वाले स्वास्थ्य खर्चों को काफी कम कर सकता है। (5) 2025-2026 में रिटायर होने वाले कर्मचारियों को राहत- वे कर्मचारी जो जल्द ही रिटायर होने वाले हैं, उनके लिए यह प्रस्ताव राहत का संदेश है। उन्हें अचानक आर्थिक योजना बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वे दो वर्ष तक परिवार की वित्तीय सुरक्षा बेहतर ढंग से कर पाएंगे।
साथियों बात अगर हम सरकारी तर्क: कार्यस्थल पर दक्षता और अनुभव का योगदान इसको समझने की करें तो,सरकार का तर्क है कि वरिष्ठ कर्मचारियों के पास वह अनुभव, जमीनी समझ और नीतिगत परिपक्वता होती है जिसे अचानक प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।कई क्षेत्रों में जैसे-आयुर्विज्ञान,न्यायपालिका,अनुसंधानइंजीनियरिंग,सार्वजनिक प्रशासन में उम्र ज्ञान का पर्याय होती है।इन क्षेत्रों में 60 वर्ष की आयु में क्षमता समाप्त नहीं होती, बल्कि कई मामलों में इसी उम्र में व्यक्तियों का प्रदर्शन सबसे परिपक्व होता है।इसके अलावा, कई युवा अधिकारी अनुभवहीन होने के कारण उन्हीं वरिष्ठ अधिकारियों से मार्गदर्शन लेकर कार्य-क्षेत्र में दक्ष बनते हैं।यदि सभी वरिष्ठ कर्मचारी एक साथ रिटायर होने लगेंगे, तो संस्थागत निरंतरता टूट सकती है।इसलिए रिटायरमेंट आयु बढ़ाना रणनीतिक रूप से प्रशासनिक मजबूती का उपाय भी माना जा रहा है।
साथियों बात अगर हम युवाओं की चिंता: रोजगारअवसरों पर संभावित प्रभाव इसको समझने की करें तो,इस निर्णय कायुवाओं पर प्रभाव बहस का प्रमुख केंद्र है।युवा वर्ग विशेष रूप से इस बात को लेकर चिंतित है कि (1) नई भर्ती में देरी हो सकती है-यदि वरिष्ठ पदों पर बैठे लोग दो वर्ष और सेवा में रहेंगे तो,नए पद देर से खाली होंगे, प्रमोशन चैन धीमा पड़ेगा,युवा उम्मीदवारों की नियुक्ति की गति कम हो सकती है,यह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए चिंता का विषय है। (2) पदों की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है- कई विभागों में भर्ती पदों की संख्या स्वतःरिटायरमेंट पर निर्भर होती है।रिटायरमेंट आयु बढ़ने का अर्थ है-भर्ती चक्र धीमा, रिक्तियां कम,नए रोजगारअवसरों में संकुचन (3) करियर की शुरुआत में देरी-भारतीय युवा अक्सर 25-28 वर्ष की उम्र में नौकरी की तैयारी में लगे होते हैं।यदि भर्ती देर से होगी तो,उनके करियर की शुरुआत पीछे चली जाएगी,सामाजिक और पारिवारिक दबाव बढ़ेगा,आर्थिक स्वतंत्रता की शुरुआत भी काफी देर से होगी (4) निजी व सार्वजनिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और कठिन हो सकती है- सरकारी नौकरियों में देरी का अर्थ है कि अधिक युवा निजी क्षेत्र में धकेले जाएंगे, जिससे उस क्षेत्र में भी प्रतियोगिता बढ़ जाएगी।
साथियों बात अगर हम सरकार का दृष्टिकोण: संतुलन बनाते हुए नीति लागू करने की कोशिश इसको समझने की करें तो, सरकार की ओर से संकेत दिया गया है कि यह नीति जल्दबाज़ी में लागू नहीं की जाएगी बल्कि चरणबद्ध तरीके से इसे लागू करने पर विचार होगा। इसके संभावित विकल्प हैं-विभागवार रिटायरमेंट आयु में वृद्धि,कुछ पदों पर फिलहाल 60 वर्ष ही बनाए रखना,युवाओं के लिए समानांतर विशेष भर्ती मिशन,नए पद सृजित करके रिक्तियों की कमी दूर करना,सरकार का मानना है कि युवाओं और वरिष्ठ दोनों वर्गों के हितों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।इसलिए इस नीति से पहले व्यापक दिशानिर्देश जारी होने की संभावना है, जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि,भर्ती प्रक्रिया बाधित न हो,युवाओं के लिए वैकल्पिक अवसर बनें,वरिष्ठ कर्मचारियों को बिना व्यवधान योगदान देने का अवसर मिले
साथियों बात अगर हम आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव, विस्तृत विश्लेषण के दृष्टिकोण से देखे तो (1) आर्थिक प्रभाव- सरकारी पेंशन व्यय में कमी सार्वजनिक धन का बेहतर प्रबंधन,वरिष्ठ कर्मचारियों के माध्यम से आर्थिक स्थिरता (2) सामाजिक प्रभाव- परिवारों की आर्थिक सुरक्षा बढ़ेगी,वरिष्ठ नागरिक समाज में अधिक सक्रिय रहेंगे,वृद्धावस्था आश्रय और पेंशन आधारित निर्भरता कम होगी (3)कार्य-संस्कृति पर प्रभाव-अनुभवी व युवा कर्मचारियों का मिश्रण,कार्यस्थल पर कौशल-साझेदारी में सुधार, संस्थागत ज्ञान संरक्षित रहेगा, युवा और वरिष्ठ कर्मचारियों के बीच संतुलन ही वास्तविक समाधान,रिटायरमेंट आयु बढ़ाना एक अत्यंत व्यापक निर्णय है जिसका असर दो पीढ़ियों पर समान रूप से होगा।इसलिए आवश्यक है कि(1)सरकार स्पष्ट नीति बनाए(2)युवाओं के लिए समानांतर रोजगार सृजन योजनाएँ जारी की जाएँ (3) भर्ती -पदों की संख्या बढ़ाई जाए(4)वरिष्ठ कर्मचारियों को क्षमता के आधार पर कार्य सौंपे जाएँ(5)डिजिटल, तकनीक, स्टार्टअप क्षेत्र में युवा-उन्मुख रोजगार बढ़ाए जाएँ
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि,रिटायरमेंट आयु को 60 से बढ़ाकर 62 करने का प्रस्ताव भारत में प्रशासनिक,आर्थिक और सामाजिक ढांचे को नया रूप दे सकता है। कर्मचारियों के लिए यह लाभदायक है, क्योंकि इससे उनकी आर्थिक सुरक्षा, पेंशन, ग्रेच्युटी और पीएफ में वृद्धि होगी। वहीं युवाओं के लिए यह चिंता का विषय है, लेकिन सरकार का दावा है कि यह निर्णय संतुलित तरीके से लागू किया जाएगा ताकि दोनों वर्गों के हित सुरक्षित रहें।यह मुद्दा केवल रोजगार या पेंशन का नहीं, बल्कि बदलते भारत की सामाजिक -आर्थिक संरचना का प्रतिबिंब है।यदि इस नीति को योजना-बद्ध, पारदर्शी और न्यायपूर्ण तरीके से लागू किया जाए, तो भारत न केवल आर्थिक रूप से मजबूत होगा, बल्कि अनुभवी व युवा मानव संसाधन के संतुलन से वैश्विक स्तर पर कार्यकुशलता का एक नया मॉडल भी प्रस्तुत कर सकता है।





