वोट चोरी-एसआईआर के सहारे मोदी सरकार की छवि धूमिल करने की साजिश

Vote theft: Conspiracy to tarnish the image of the Modi government with the help of SIR

अजय कुमार

संसद के दोनों सदनों में चुनाव प्रक्रिया में सुधार, एसआईआर और इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर चर्चा चल रही है। सभी दलों के नेता पक्ष-विपक्ष में अपने विचार रख रहे हैं। इसी के साथ चुनावों के दौरान मतदान प्रणाली को लेकर लगातार उठ रहे विवादों में पिछले कुछ समय से चुनाव आयोग भी विपक्षी दलों के निशाने पर है। विपक्ष की पार्टियां बार-बार यह सवाल कर रही हैं कि आखिर क्यों जनता लगातार भारतीय जनता पार्टी को चुन रही है, जबकि कांग्रेस और महागठबंधन जैसी पार्टियां हर बार चुनाव में हार रही हैं। इन दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता नहीं बरत रहा और ईवीएम में गड़बड़ी हो रही है। राहुल गांधी इस मामले में सबसे मुखर आवाज बने हुए हैं, जो ईवीएम के खिलाफ कई बार अपनी आपत्ति जता चुके हैं। विपक्ष का मानना है कि सभी चुनावों में वोटिंग मशीन के जरिए वोटिंग की बजाय फिर से बैलेट पेपर से चुनाव करवाए जाएं। उनका तर्क है कि ईवीएम में विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे गड़बड़ी संभव है। इसके साथ ही वे बताते हैं कि ईवीएम के विवादों को लेकर चुनाव आयोग और सरकार पर सवाल उठाना उनकी लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है। विपक्ष की ओर से यह भी आवाज उठ रही है कि चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों का अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि हर वोट की गिनती सटीक और निष्पक्ष रूप से हो।

दूसरी ओर सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग का इस मामले पर मजबूत रुख है। उनका कहना है कि बैलेट पेपर के जमाने में चुनावों में बहुत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और हिंसा होती थी। उस वक्त दबंग अपने इलाकों में जबरन बैलेट पेपर डालकर चुनाव परिणामों को प्रभावित करते थे। मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पहुंचने से रोका जाता था, धमकियां दी जाती थीं और कई बार मारपीट भी होती थी। बैलेट पेपर के डिब्बों में स्याही या पानी डालकर मतदाता का अधिकार छीना जाता था। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र की पराकाष्ठा को खतरा था और जनता की मंशा का सही प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता था।

इन्हीं कारणों से चुनाव आयोग ने बहुत सोच-विचार के बाद ईवीएम अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को अपनाया। इसके आने के बाद चुनाव प्रक्रिया अधिक सुरक्षित, त्वरित और पारदर्शी हुई है। चुनाव आयोग बार-बार यह स्पष्ट कर चुका है कि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित और विश्वसनीय हैं। संवैधानिक दिशा-निर्देशों के तहत ईवीएम की जांच, परीक्षण और रख-रखाव नियमित रूप से किया जाता है और यह प्रक्रिया पारदर्शी ढंग से होती है। किसी भी प्रकार की गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए यदि कोई पार्टियां भी चुनाव आयोग के पास शिकायत दर्ज करातीं, तो उसे गंभीरता से लिया जाता और जांच का प्रावधान है।सुप्रीम कोर्ट ने भी अनेक मामलों में ईवीएम की वैधता और सुरक्षित होने की पुष्टि की है। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि यदि किसी को ईवीएम से संबंधित कोई शिकायत हो, तो उसका समाधान ईवीएम वीवीपैट (वोटर वेरीफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल) के जरिए जांचा जा सकता है। वीवीपैट सिस्टम मतदाता को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि उनका वोट मशीन में सही तरीके से दर्ज हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि चुनाव प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता बरती जाए और मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए।

हालांकि, विपक्ष के नेताओं ने इस मुद्दे को चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की बजाय प्रचार-प्रसार और सार्वजनिक मंचों पर ही वोट चोरी का आरोप लगाना जारी रखा है। राहुल गांधी के अलावा कई अन्य विपक्षी दलों के नेता भी ईवीएम की आलोचना करते हुए कहते हैं कि यह तकनीक शक्तिशाली दलों का पक्ष लेती है। वे दावा करते हैं कि चुनाव आयोग और सरकार मिलकर ईवीएम के माध्यम से सत्तासीन पार्टी का समर्थन बढ़ा रही है। हालांकि, इस मामले में ठोस सबूत या अदालत में जांच के लिए कोई ठोस कदम विपक्षी दलों ने नहीं उठाए हैं। चुनाव आयोग ने इस दौरान अपने बयान में स्पष्ट किया है कि वे पूरी निष्पक्षता और स्वतंत्रता के साथ चुनाव प्रक्रिया का संचालन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ईवीएम और वीवीपैट प्रणाली पर पूरी तरह भरोसा किया जा सकता है। आयोग ने विपक्ष को भी कई मौके दिए हैं कि वे ईवीएम की जांच करे और यदि कोई त्रुटि मिले तो उसका निवारण किया जाए। आयोग ने बार-बार कहा है कि भारत में विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाना उनकी प्राथमिकता है।

इस पूरे विवाद के बीच चुनाव आयोग ने कहा है कि वोटिंग सिस्टम की समीक्षा और सुधार आवश्यक है, मगर इसे वैज्ञानिक आधार और तथ्यात्मक प्रमाणों के आधार पर करना चाहिए। वे कहते हैं कि बिना किसी ठोस सबूत के, वोटिंग मशीन पर आरोप लगाना लोकतंत्र के हित में नहीं है। इसके बजाय सभी राजनीतिक दलों को साथ मिलकर चुनाव सुधारों पर विचार करना चाहिए और मतदाताओं के विश्वास को बनाए रखना चाहिए। चुनाव आयोग ने पुनर्निर्धारित मतदाता पहचान प्रक्रिया, ईवीएम के सुरक्षा तंत्रों में नवीनतम तकनीक, वीवीपैट की संपूर्ण जांच और चुनाव कर्मियों के प्रशिक्षण में सुधार जैसे कई कदम उठाए हैं ताकि चुनाव प्रक्रिया पर कोई संदेह न रहे। इसके अलावा, चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए अन्य आधुनिक तकनीकों को अपनाने पर भी विचार किया है जो लोकतंत्र की मजबूती में सहायक हों।

राजनीतिक दलों की बात करें तो कांग्रेस और महागठबंधन इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाकर जनता का ध्यान चुनाव प्रणाली की खामियों की ओर ले जाना चाहते हैं। वे दावा करते हैं कि जनता को सचेत किया जाए ताकि उनका वोट सुरक्षित रहे। दूसरी ओर भाजपा और अन्य सत्ता पक्ष इस बात पर जोर देते हैं कि पुरानी गलतियों को दोबारा न आएं और लोकतंत्र के मजबूत स्तंभों को मजबूत किया जाए। उनका तर्क है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष है और विरोधी दल केवल अपनी चुनावी असफलताओं को छुपाने के लिए आरोप लगा रहे हैं। यह विवाद लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा भी है। लोकतंत्र तभी मजबूत हो सकता है जब जनता चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा करे और मतदाता अपने अधिकारों को स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से प्रयोग कर सके। चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका इसमें निर्णायक होती है क्योंकि वे चुनाव के नियम-संहिता के संरक्षक हैं। इसीलिए, वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता को लेकर चल रहे सवालों के बीच तथ्य-आधारित बहस जरूरी है ताकि लोकतंत्र की नींव मजबूत हो।

इस पूरे तर्क-वितर्क के बीच आम मतदाता की छवि भी ध्यान देने योग्य है। वह अपने क्षेत्र में निष्पक्ष, शांतिपूर्ण मतदान चाहता है, जिसमें किसी प्रकार की बाधा, धमकी या गड़बड़ी न हो। सामान्य मतदाता चाहता है कि उसका वोट सही प्रकार से गिना जाए और चुनाव परिणामों में उसके फैसले की वास्तविक छवि दिखे। यही लोकतंत्र की मूल भावना है और इसके संरक्षण के लिए सभी पक्षों का सहयोग आवश्यक है। इसलिए चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट और सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे वोटिंग सिस्टम पर राजनीतिक लड़ाई लड़ने के बजाय वास्तविक सुधार के लिए मिलकर काम करें। चुनाव की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए तकनीकी सुरक्षा के उपायों को और बेहतर बनाया जाए। साथ ही मतदाताओं को जागरूक कर उनका विश्वास हासिल किया जाए ताकि हर नागरिक मतदान प्रक्रिया में हिस्सा लेकर देश के भविष्य को आकार दे सके। इस तरह की गंभीर स्थिति में, जो लोकतंत्र की मजबूती के सवाल को छूती है, केवल आरोप-प्रत्यारोप नहीं, बल्कि समाधान पर ध्यान देना आवश्यक है। राजनीतिक दलों का फर्ज बनता है कि वे अपने मतदाताओं को यह विश्वास दिलाएं कि उनका वोट सुरक्षित है और चुनाव निष्पक्ष तरीके से होता है। वहीं चुनाव आयोग को भी लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए अपनी प्रक्रिया को हर तरह से पारदर्शी और तकनीकी रूप से मजबूत करना होगा, ताकि देश का लोकतंत्र उत्सव की तरह हर चुनाव में फल-फूल सके।