सुनील कुमार महला
सर्दी का मौसम शुरू होने के साथ ही दिल्ली की आबोहवा इन दिनों बुरी तरह बिगड़ गई है। दिल्ली तो दिल्ली,इन दिनों उतर भारत के पंजाब , हरियाणा,यूपी के कई शहरों में तो सांस लेना भी दूभर हो गया है और मास्क अब मजबूरी हो चुके हैं।मतलब यह है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली और उत्तर भारत में इन दिनों बेहिसाब प्रदूषण है। गौरतलब है कि दिल्ली-एनसीआर में 15 दिसंबर 2025 सोमवार को जहरीले स्मॉग की परत छाई रही। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार दिल्ली के 40 में से 27 निगरानी केंद्रों पर हवा ‘सीवियर’ कैटेगरी में दर्ज की गई। वजीरपुर में एक्यूआइ 500 तक पहुंच गया, जो अधिकतम सीमा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि सीपीसीबी के मुताबिक 500 से ऊपर एक्यूआइ दर्ज नहीं किया जाता। इतना ही नहीं, घनी धुंध के कारण दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर फ्लाइट ऑपरेशन प्रभावित रहा। सोमवार को दिल्ली एयरपोर्ट से कई एयरलाइंस ने 228 फ्लाइट्स कैंसिल कर दीं और 5 को दूसरे एयरपोर्ट पर डायवर्ट कर दिया तथा 250 देरी से चलीं। और तो और, भारत आए अर्जेंटीना के फुटबॉलर लियोनल मेसी खराब मौसम के चलते पीएम नरेंद्र मोदी से नहीं मिल सके। उपलब्ध जानकारी अनुसार मेसी की मुंबई से दिल्ली आने वाली चार्टर्ड फ्लाइट ने कोहरे की वजह से देरी से उड़ान भरी। वहीं, पीएम एक घंटे की देरी से तीन देशों की यात्रा पर रवाना हुए। गौरतलब है कि मेसी की पीएम मोदी से सुबह के वक्त मुलाकात तय थी। इस बीच, प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने स्कूलों में कक्षा पांचवीं तक क्लासेस केवल ऑनलाइन लगाने के आदेश जारी कर दिए हैं। चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने वकीलों और पक्षकारों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हाइब्रिड मोड के जरिए पेश होने की सलाह दी है। पाठकों को बताता चलूं कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से जुड़ी याचिका पर आने वाले 17 दिसंबर को सुनवाई करेगा। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि प्रदूषण का असर लोगों के स्वास्थ्य व जीवन प्रत्याशा पर भी पड़ रहा है। इस क्रम में हाल ही में आरबीआई की आई एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार वर्षों में दिल्ली में लोगों की औसत आयु 1.7 साल कम हो गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि महिलाओं से ज़्यादा पुरूषों की उम्र घटी है। बढ़ता प्रदूषण,जल और बदलती जीवनशैली इसका मुख्य कारण बताया जा रहा है। हालांकि, कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और सुधरी जीवनशैली के कारण जीवन प्रत्याशा में बढ़ोत्तरी भी हुई है। गौरतलब है कि यूपी में औसत आयु सबसे अधिक बढ़ी है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के लोगों की औसत आयु 65.6 वर्ष से बढ़कर 68.0 वर्ष हो गई है तथा यह पूरे देश में सबसे अधिक है। केरल में औसत आयु सबसे अधिक 75.1 वर्ष है,जो कि बेहतर है। वैसे यदि हम यहां पर राज्यवार औसत उम्र की बात करें तो दिल्ली में यह 74.2 वर्ष, उत्तराखंड में 71.3 वर्ष, पंजाब में 70.8 वर्ष, झारखंड में 69.5 वर्ष, बिहार में 69.3 वर्ष, हरियाणा में 68.8 वर्ष तथा तथा उत्तर प्रदेश में 68.0 वर्ष है। बहरहाल, यह बहुत ही चिंताजनक है कि आज उतर भारत विशेषकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हवा, भोजन, पानी व मिट्टी प्रदूषित हो गई है और शायद यही कारण भी है कि हवा और पानी में कैंसर कारक तत्व तक मिले हैं। कुल मिलाकर प्रदूषण जीवन प्रत्याशा लगातार कम कर रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि हाल में केंद्रीय बैंक ने सांख्यिकी पुस्तिका 2024-25 में औसत आयु से जुड़े आंकड़े जारी किए हैं। जैसा कि एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक ने लिखा है कि ‘रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015-19 के मुकाबले 2019-23 में दिल्ली में 1.7 साल और पंजाब में दो साल औसत आयु कम हुई। वहीं, हरियाणा में औसत उम्र 1.1 वर्ष कम हो गई। इस तरह, औसत आयु में गिरावट के मामले में पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर दिल्ली है। हालांकि, इस अवधि के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर औसत आयु 0.6 साल बढ़ गई है। राष्ट्रीय स्तर पर औसत आयु 70.3 वर्ष की है।’ यहां पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में जारी शिकागो विश्वविद्यालय की 2025 की रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया है कि भारत में वायु प्रदूषण से औसत उम्र 3.5 साल तक घट रही है और अधिकांश आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से ज्यादा प्रदूषित हवा में रहती है। इससे हृदय रोग, सांस संबंधी बीमारियां, कैंसर का खतरा बढ़ता है। प्रदूषण कम हो तो जीवन प्रत्याशा बढ़ सकती है, खासकर दिल्ली जैसे शहरों में जो जहरीली हवा से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। बहरहाल,इस समय राजधानी घने कोहरे की चादर में लिपटी नजर आ रही है। जहरीली हवाओं से लोग बेहाल हैं और उनमें स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं लगातार पैदा हो रही हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक कई इलाकों में गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पराली (फसल अवशेष) कटने या जलाने का मुख्य समय भी अक्टूबर के अंत से नवंबर के बीच होता है, तथा कभी कभी यह दिसंबर तक भी पहुंच जाता है, खासकर धान (चावल) की कटाई के बाद और गेहूं की बुवाई से पहले, ताकि खेत अगली फसल के लिए तैयार हो सके। वास्तव में यह समय उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बनता है।इन दिनों जबकि दिसंबर का महीना चल रहा है, दिल्ली में धूल और धुएं से बनी घनी धुंध ने राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में हालात बेहद खराब कर दिए हैं। दृश्यता भी इतनी कम हो गई है कि सड़कों पर गाड़ियां धीमी रफ्तार से चल रही हैं, और कम दृश्यता के कारण एक्सीडेंट की घटनाएं भी जन्म ले रहीं हैं। प्रदूषण और कोहरे की वजह से अकेले दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर 30 से ज्यादा वाहन टकरा चुके हैं और कई लोगों की मौत हुई है। गौरतलब है कि प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को एक बार फिर बाहरी खेल गतिविधियां(आउटर स्पोर्ट्स एक्टीवीटीज) तक बंद करने का आदेश देना पड़ा। हैरानी की बात यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट पहले ही ऐसे आयोजनों पर रोक लगाने की बात कह चुका था, फिर भी उन्हें जारी रखा गया। इससे साफ होता है कि नियमों और अदालत के निर्देशों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। क्या यह विडंबना नहीं है कि आज सरकारें केवल तात्कालिक घोषणाएं तो कर रही हैं, लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए कोई ठोस और दीर्घकालिक समाधान नहीं निकाल पा रही हैं। सच तो यह है कि जो कदम अभी तक उठाए गए हैं, वे अधिक प्रभावी व कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं और इसका नतीजा यह कि दिल्ली वायु गुणवत्ता सूचकांक(एक्यूआइ) लगातार बिगड़ता जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो दिल्ली व एनसीआर में आज प्रदूषण की समस्या बेहद गंभीर हो चुकी है, लेकिन इसके असली कारणों की न तो ईमानदारी से पहचान हो रही है और न ही यह साफ है कि हालात कब सुधरेंगे। यह काबिले-तारीफ है कि सरकार ने ट्रकों की आवाजाही रोकने, निर्माण कार्य बंद करने और ग्रेप-4 जैसी सख्त पाबंदियां लागू कर दी हैं।यह ठीक है कि सरकार अपने स्तर पर सावधानी बरतने की सलाह भी दे रही है, तो वहीं दूसरी ओर भारत में सिंगापुर उच्चायोग ने भी दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले अपने नागरिकों को भी संभलकर रहने की सलाह दी है,
लेकिन फिर भी प्रदूषण कम नहीं हो रहा, यह चिंताजनक बात है। इससे सवाल उठता है कि जब उपाय मौजूद हैं, तब नतीजे क्यों नहीं दिख रहे ?इसका सीधा अर्थ यह है कि या तो कारणों को सही ढंग से समझा नहीं गया है, या फिर उन्हें दूर करने में प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक संकोच आड़े आ रहे हैं। अब केवल पाबंदियां लगाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार विभागों की जवाबदेही तय कर ठोस और प्रभावी कार्रवाई करना जरूरी है। वैसे भी प्रदूषण कम करने की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ सरकार की ही नहीं है, वास्तव में यह हम सभी का कर्तव्य और जिम्मेदारी है। प्रदूषण को कम करना किसी व्यक्ति विशेष व सरकार का ही नहीं बल्कि हम सभी का सामूहिक कर्तव्य और जिम्मेदारी है। अंत में यही कहूंगा कि इन दिनों पूरी दिल्ली लगातार ज़हरीली हवा की चपेट में है। न हवा चल रही है, न ही बारिश हो रही है, इसलिए प्रदूषण जमा होकर आसमां में, हवा में ठहर सा गया है। हालात इतने खराब हैं कि जो आंकड़े बताए जा रहे हैं, असली स्थिति उससे भी ज्यादा गंभीर हो सकती है। वास्तव में सच तो यह है कि ठंड, कोहरा और प्रदूषण मिलकर लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं, खासकर बच्चों और बुजुर्गों की। अस्पतालों में मरीज लगातार बढ़ रहे हैं और लोगों को बहुत जरूरी होने पर ही घर से निकलने की सलाह दी जा रही है। प्रदूषण से लड़ने के सभी इंतजाम मौसम के आगे लगभग-लगभग बेअसर दिख रहे हैं। उड़ानें लगातार रद्द हो रही हैं, यातायात प्रभावित है और आम लोगों की परेशानी बढ़ गई है। सर्वोच्च न्यायालय भी चिंतित है और उसने सवाल उठाया है कि अगर बड़े शहरों की जीवनशैली से प्रदूषण बढ़ रहा है, तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों को क्यों झेलना पड़े ? अदालत मानती है कि सिर्फ आदेश देना काफी नहीं, उन्हें लागू करना भी जरूरी है।कुल मिलाकर, प्रदूषण धीरे-धीरे लोगों की जिंदगी को नुकसान पहुंचा रहा है।वास्तव में
दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण कम करने के लिए समन्वित और स्थायी प्रयास जरूरी हैं। इसके लिए सबसे पहले वाहनों से निकलने वाले धुएं को नियंत्रित करना होगा, जिसमें सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और पुराने प्रदूषणकारी वाहनों पर सख्ती शामिल है। निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल को रोकने के लिए साइटों पर ढकाव, पानी का छिड़काव और सड़कों की नियमित सफाई अनिवार्य होनी चाहिए। पराली और कचरा जलाने पर पूरी तरह रोक लगाकर किसानों व स्थानीय निकायों को व्यावहारिक विकल्प प्रदान किए जा सकते हैं। उद्योगों में स्वच्छ ईंधन के उपयोग और कड़ी निगरानी से औद्योगिक प्रदूषण काफी हद तक घटाया जा सकता है। साथ ही बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण, हरित क्षेत्रों का विस्तार और आपात स्थितियों में ऑड-ईवन जैसे कदम जरूरी हैं। इन सबके साथ नागरिकों की भागीदारी, जागरूकता और जिम्मेदार व्यवहार ही दिल्ली की हवा को साफ करने की दिशा में निर्णायक साबित हो सकते हैं।सच तो यह है कि प्रदूषण का स्थायी समाधान सरकारों, प्रशासन और समाज-सबको मिलकर सामूहिक रूप से निकालना होगा। जब तक ऐसा नहीं होता, लोगों को खुद सतर्क रहना होगा और प्रदूषण रोकने की कोशिश करनी होगी।





