संसद का शीतकालीन सत्र 2025: उपलब्धियों, बहसों और विधायी सक्रियता का सत्र

Parliament Winter Session 2025: A Season of Achievements, Debates and Legislative Activity

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

संसद का शीतकालीन सत्र जोकि 1से 19 दिसंबर तक चला, शुक्रवार को सम्पन्न हो गया। अब फरवरी माह में लंबे चले वाले बजट सत्र पर सभी माननीय एक बार फिर से संसद भवन में जुटेंगे।

इस बार शीतकालीन सत्र में कुछ विशेष बातें हुई जोकि इसे बाकी सत्रों से अलग और महत्वपूर्ण बनाती हैं। इस बार संसद का सत्र अपनी उत्पादकता के लिए चर्चा में रहा। लोकसभा की उत्पादकता 111 प्रतिशत और राज्यसभा की उत्पादकता 121 प्रतिशत दर्ज की गई, जोकि पिछले सत्रों की तुलना में काफी बेहतर थी। सदन ने समय का अच्छा उपयोग करते हुए कई महत्वपूर्ण विषयों पर काम किया।

लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला ने सत्र की समाप्ति पर बताया कि 18वीं लोकसभा का छठा सत्र संपन्न हो गया है। इस सत्र की प्रॉडक्टिविटी 111प्रतिशत रही। छठे सत्र में लोकसभा की 15 बैठकें हुईं तथा कुल लोकसभा 92 घंटे 25 मिनट तक चलीं। लोकसभा में 10 सरकारी विधेयक भी पेश हुए तथा 8 विधेयक पारित हुए। वंदे मातरम पर 11 घंटे 32 मिनट चर्चा में 65 सदस्यों ने भाग लिया। चुनावी सुधारों पर 13 घंटे तक चर्चा में 63 सदस्यों ने भाग लिया। छठे सत्र में 408 मामले उठाए गए। इसी प्रकार राज्य सभा के सभापति सभापति राधाकृष्णन ने शीतकालीन सत्र समापन पर कहा कि यह सत्र उत्पादक रहा, सदस्यों ने सहभागिता दिखाई, लेकिन कुछ व्यवहार सदन के अनुरूप नहीं थे और भविष्य में सांसदों से उन्होंने अधिक शालीन और संवैधानिक तरीके से कार्य करने की अपेक्षा व्यक्त की। साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,सदन के नेता और सभी का सहयोग और प्रोत्साहन के लिए उन्होंने आभार जताया।

संसद का शीतकालीन सत्र 2025 कई मायनों में विशेष और उल्लेखनीय रहा। आम तौर पर सीमित अवधि वाला यह सत्र इस बार न केवल अपनी उच्च उत्पादकता के कारण चर्चा में रहा, बल्कि सरकार और विपक्ष के बीच तीखे विमर्श, महत्वपूर्ण विधेयकों के पारित होने और राष्ट्रीय सरोकारों पर हुई व्यापक बहसों के कारण भी सुर्खियों में रहा। यह सत्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सक्रियता और संसद की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करने वाला सिद्ध हुआ। इस सत्र की सबसे बड़ी विशेषता संसद की बेहतर कार्य उत्पादकता रही। हाल के वर्षों में बार-बार हंगामे और स्थगन के कारण संसदीय कार्य प्रभावित होता रहा है, लेकिन इस बार लोकसभा और राज्यसभा दोनों में अपेक्षाकृत अधिक समय तक कार्य हुआ। सरकार ने अपने विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्रियता दिखाई, वहीं विपक्ष ने भी कई मुद्दों पर गंभीर बहस कराई। इससे संसद का सत्र औपचारिकता से आगे बढ़कर सार्थक विमर्श का मंच बना।

शीतकालीन सत्र 2025 में कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए गए, जिनका सीधा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था, रोजगार और नीतिगत ढांचे पर पड़ने वाला है। बीमा क्षेत्र से जुड़े सुधारों, ग्रामीण रोजगार योजना में बदलाव, अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने और वित्तीय प्रावधानों से संबंधित विधेयकों ने सरकार की सुधारोन्मुखी सोच को सामने रखा। सरकार का तर्क रहा कि इन कानूनों से निवेश बढ़ेगा, प्रशासनिक बोझ घटेगा और विकास की गति को बल मिलेगा। वहीं विपक्ष ने इन विधेयकों पर सवाल उठाते हुए सामाजिक प्रभाव और राज्यों के हितों पर चिंता व्यक्त की।इस सत्र में प्रश्नकाल और विशेष चर्चाओं की भी अहम भूमिका रही। जिसमें वायु प्रदूषण, महंगाई, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सांसदों ने सरकार से जवाब मांगे। खासतौर पर राजधानी दिल्ली सहित बड़े शहरों में प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर हुई चर्चा ने सरकार को ठोस कदम उठाने के लिए दबाव में रखा। इसके अलावा चुनाव सुधार, संघीय ढांचे और सामाजिक न्याय से जुड़े विषयों पर भी सदन में विचार-विमर्श हुआ।

शीतकालीन सत्र का एक महत्वपूर्ण पक्ष सरकार और विपक्ष के बीच टकराव भी रहा। कुछ मुद्दों पर तीखी नोकझोंक, वॉकआउट और विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। हालांकि, इसके बावजूद सत्र पूरी तरह बाधित नहीं हुआ, जो इस बात का संकेत है कि दोनों पक्षों ने किसी हद तक संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया। लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि असहमति के साथ संवाद भी बना रहे, और इस सत्र में इसकी झलक देखने को मिली।

इस 2025 के संसद शीतकालीन सत्र में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) की जगह एक नया अधिनियम विकसित भारत-रोजगार की गारंटी और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक,कानून पारित हुआ। जिसे आमतौर पर वीबी-जी राम जी बिल कहा जाता है। इस नए अधिनियम में मनरेगा को पूरी तरह से बदलने के लिए संसद में पेश किया गया और पारित किया गया। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार और आजीविका की गारंटी देना है, लेकिन इसे विकसित भारत@2047” की राष्ट्रीय विकास दृष्टि के तहत देखा जा रहा है। इस बिल के तहत ग्रामीण परिवारों को हर वित्तीय वर्ष में 125 दिनों का रोजगार मिलने की कानूनी गारंटी दी जाती है, जो मनेरगा के 100 दिनों की गारंटी से अधिक है।

यह बदलाव संसद में राजनीतिक बहस का विषय भी रहा, खासतौर पर मनरेगा से “महात्मा गांधी” का नाम हटने और उसके स्थान पर नया नाम रखने को लेकर। विपक्ष ने इसका विरोध किया, जबकि सरकार ने इसे रोजगार के व्यापक और आधुनिक ढांचे के रूप में पेश किया।

कुल मिलाकर, संसद का शीतकालीन सत्र 2025 विधायी सक्रियता, राजनीतिक बहस और राष्ट्रीय मुद्दों के संतुलित मिश्रण के रूप में याद किया जाएगा। यह सत्र इस बात का उदाहरण रहा कि यदि इच्छाशक्ति हो तो सीमित समय में भी संसद प्रभावी ढंग से कार्य कर सकती है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए ऐसे सत्र आवश्यक हैं, जहां सत्ता और विपक्ष दोनों मिलकर जनहित से जुड़े प्रश्नों पर गंभीरता से चर्चा करें और देश को आगे बढ़ाने वाली नीतियों का मार्ग प्रशस्त करें।