दिलीप कुमार पाठक
जब से बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट हुआ है तब से बांग्लादेश में भारत विरोध की पराकाष्ठा हो रही है, ऐसा नहीं है कि भारत सख्त कार्रवाई नहीं कर सकता, भारत ऐसी शैतानी ताक़तों को कुचलने में देर नहीं करेगा, परंतु सोचना ज़रूरी है कि बांग्लादेश में भारत विरोध उनके मूल में है या कुछ आतंकियों की महत्वाकांक्षाएं बांग्लादेश के साथ भारत में भी अस्थिरता चाहती हैं l बांग्लादेश का आम जन मानस भारत विरुद्घ नहीं है, ये भी समझना ज़रूरी हो जाता है l
मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार भारी दबाव में काम कर रही है लेकिन उनकी समस्या यह है कि वे बहुत नरमी से पेश आ रहे हैं l जबकि इस वक्त सख्त पॉलिटिकल सिग्नल देने की जरूरत थी l सरकार का काम अगले साल की शुरुआत में चुनाव कराना है लेकिन साथ ही उन्हें कानून-व्यवस्था भी बनाए रखनी है l अवामी लीग के बैन होने और उसके नेताओं के गायब होने से देश का संतुलन बिगड़ गया है l राजनीति में एक बड़ा वैक्यूम पैदा हो गया है l पहले वहां एक स्थिर ध्रुव था जो अब नहीं है l इस खाली जगह को किसी संस्था ने नहीं बल्कि सड़क पर उतरी भीड़ ने भरने की निंदनीय कोशिश की है l यह भीड़ ऊर्जा से भरी है लेकिन बहुत ही बेसब्री और गुस्से में है, सड़क पर उतरी भीड़ की अपनी एक अलग लॉजिक होती है, उसका मकसद राजनीतिक समाधान निकालना नहीं होता l वह सिर्फ अपनी ताकत दिखाना चाहती है l और यही बांग्लादेश के लिए सबसे बड़ा खतरा है l
बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी के सदर्न चीफ़ ऑर्गेनाइजर हसनत अब्दुल्लाह ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर बांग्लादेश को अस्थिर किया गया तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों सेवन सिस्टर्स को अलग-थलग कर दिया जाएगा l पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड और त्रिपुरा को एक साथ सेवन सिस्टर्स कहा जाता है l नेशनल सिटिजन पार्टी इसी साल फ़रवरी में बनी थी और इसे बनाने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन शुरू किया था, इसी विरोध प्रदर्शन के बाद शेख़ हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा था और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी थी l हसनत अब्दुल्लाह बांग्लादेश से बैठकर ऐसे बोल रहा है जैसे भारत कोई खीर का कटोरा है जिससे सात चम्मच खीर निकाल ली जाएगी, मुझे लगता है कि भारत को ऐसे लोगों को कॉलर से खींचकर लाना चाहिए और बताना चाहिए कि भारत की हैसियत क्या है l अब भारत को ऐसी ताक़तों को कुचलना ही होगा, बांग्लादेश में बैठे कुछ साँप लगातर भारत के विरोध में ज़हर उगल रहे हैं, बांग्लादेश में बैठे ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि भारत कोई छोटा सा देश नहीं है जो तुम लोगों की नफ़रत हिंसक बकवास सुनेगा, भारत एक बार में ही अक्ल ठिकाने लगा देगा l
दुःखद अगर शेख़ हसीना सत्ता में होतीं तो बांग्लादेश जिस रास्ते पर बढ़ता दिख रहा है, वैसा नहीं होता l शेख़ हसीना को उनके विदेश विरोधियों ने बहुत ही संकीर्ण नज़रिए से देखा l बांग्लादेश का मूल्यांकन ऐसे किया गया मानो वह मतदान प्रतिशत की समस्या से जूझता डेनमार्क हो, न कि एक नाज़ुक, अत्यधिक घनी आबादी वाला देश, जिसकी पृष्ठभूमि हिंसक इस्लामवादी इतिहास और गहरी त्रासदी से गुज़री राजनीतिक संस्कृति की रही है l शेख हसीना कोई क्रांतिकारी नहीं थीं बल्कि एक शत्रुतापूर्ण माहौल में एक स्थिर शक्ति के रूप में देश-निर्माता रहीं हैं, उन्होंने जमात और उसके सहयोगी संगठनों को नियंत्रण में रखा, नागरिक-सैन्य संतुलन बनाए रखा, किसी भी यथार्थवादी विकल्प की तुलना में अल्पसंख्यकों की बेहतर सुरक्षा की और बांग्लादेश को आर्थिक के साथ भू-राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बनाए रखा l मैं बांग्लादेश में हुई इस हिंसक ‘क्रांति’ को लेकर संशय में रहा हूँ l ऐसा नहीं था कि हसीना में कमियां नहीं थीं, बांग्लादेश एक गहराई से विभाजित समाज है l हसीना देश के सबसे हिंसक तत्वों के ख़िलाफ़ एक मज़बूत दीवार थीं l
बांग्लादेश के बनने में भारत की अहम भूमिका रही है, ये तय बात है कि भारत ने पाकिस्तान को सबक नहीं सिखाया होता, दख़ल नहीं दिया होता तो आज बांग्लादेश का कहीं नामों निशान नहीं होता, परंतु आज बांग्लादेश में जो हालात हैं, उन्हें देखकर लगता है जैसे भारत बांग्लादेश का मित्र नहीं बल्कि दुश्मन है या यूं कहें कि सबसे बड़ा दुश्मन है l बांग्लादेश एक अच्छा मुल्क बनने की सारी संभावनाएं रखता था, पाकिस्तान की तुलना में बांग्लादेश बहुत अच्छी स्थिति में था, कुछ चुनौतियां थीं हालांकि ये सब नहीं हो रहा था जो अब घटित हो रहा है l बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरपंथी ताकते ऐसी हावी हुई कि आज एक साल से ज्यादा समय हो गया, बांग्लादेश में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है l





