जयपुर शहर के बीच जंगल, रोमांच और भय का अनोखा संगम

A unique confluence of jungle, adventure and fear amidst the city of Jaipur

शहरी विकास के साथ जंगल और वन्य जीवों का सह-अस्तित्व के उपाय अति आवश्यक

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

राजस्थान की राजधानी जयपुर को देश-दुनिया पिंक सिटी के नाम से जानती है। ऐतिहासिक किले, भव्य महल, नगर नियोजन, चौड़ी सड़कें और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इस शहर की पहचान रहे हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जयपुर एक नई और अनोखी पहचान के साथ सामने आया है। ऐसा शहर जहाँ एक नहीं बल्कि तीन-चार वन अभयारण्य हैं और जहाँ एक ओर जंगल सफारी का रोमांच है, तो दूसरी ओर शहर में घुसते हिंसक वन्यजीवों का खौफ और भय भी लगातार बढ़ता जा रहा है।

जयपुर की भौगोलिक बनावट इसे अन्य शहरों से अलग बनाती है। अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियाँ शहर के चारों ओर एक प्राकृतिक घेरा बनाती हैं। इन्हीं पहाड़ियों में आमेर-नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य फैला हुआ है, जो जयपुर का सबसे प्रमुख वन क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त जमवा रामगढ़ क्षेत्र, जल महल-मानसागर झील का इलाका, गलता तीर्थ, हरमाड़ा और दौलतपुरा जैसे क्षेत्र भी वन संपदा से समृद्ध हैं। इस कारण जयपुर शायद देश के उन चुनिंदा शहरों में है जहाँ जंगल सीधे शहरी जीवन से सटा हुआ है।

पिछले कुछ समय में जयपुर में लेपर्ड सफारी पर्यटन को बढ़ावा मिला है। नाहरगढ़ और आमेर की पहाड़ियों में तेंदुए, लकड़बग्घे, सियार, नीलगाय और अनेक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। पर्यटकों के लिए यह सफारी बेहद रोमांचक अनुभव है। खुले जंगल में तेंदुए को देखना, अरावली की पहाड़ियों की सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहरों का साथ-साथ यह सब जयपुर को एक विशिष्ट पर्यटन स्थल बनाता है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है और वन संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ती है लेकिन यही रोमांच आम नागरिकों के लिए कई बार डर में बदल जाता है। पिछले कुछ वर्षों में जयपुर के कई रिहायशी इलाकों में तेंदुए और अन्य वन्य जीवों की मौजूदगी देखी गई है। कभी वे कॉलोनियों में घुस जाते हैं,कभी स्कूल परिसरों या फैक्ट्रियों के आसपास दिखाई देते हैं। कई बार पालतू पशुओं पर हमला होता है और कुछ घटनाओं में मानव जीवन पर भी खतरा मंडराया है। इससे लोगों में भय का माहौल बन गया है, खासकर उन क्षेत्रों में जो जंगल से सटे हुए हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष के पीछे सबसे बड़ा कारण तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण है। जयपुर का विस्तार लगातार पहाड़ियों और वन क्षेत्रों की ओर हो रहा है। अवैध निर्माण, पहाड़ों की कटाई और प्राकृतिक गलियारों का टूटना वन्य जीवों के आवास को सीमित कर रहा है। जंगल में पानी और शिकार की कमी भी जानवरों को भोजन की तलाश में शहर की ओर आने पर मजबूर कर रही है।

जब जंगल और शहर की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं, तो संघर्ष स्वाभाविक है। वन विभाग के सामने यह एक बड़ी चुनौती है कि वह एक ओर वन्य जीवों की सुरक्षा करे और दूसरी ओर शहरवासियों की जान-माल की रक्षा भी सुनिश्चित करे। तेंदुओं को पकड़कर दूसरी जगह छोड़ना हमेशा समाधान नहीं होता, क्योंकि वे अक्सर अपने क्षेत्र में वापस लौट आते हैं। जरूरत इस बात की है कि जंगल और शहर के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। वन गलियारों का संरक्षण, शहरी नियोजन में वन क्षेत्रों की स्पष्ट सीमाएँ तय करना और संवेदनशील इलाकों में निर्माण पर सख्ती आवश्यक है।साथ ही, आम लोगों में भी जागरूकता की जरूरत है। जंगल से सटे इलाकों में रहने वालों को सावधानी बरतनी चाहिए।रात में खुले में निकलने से बचना, कचरा इधर-उधर न फैलाना और वन्य जीवों को छेड़ने से परहेज करना आदि। सफारी और पर्यटन गतिविधियों को भी जिम्मेदारी के साथ संचालित करना होगा, ताकि वन्य जीवों पर अनावश्यक दबाव न पड़े।

सैलानियों को वैकल्पिक स्थलों की ओर मोड जंगली की ओर मोड़ा जा सकता है। इसके प्रयास भी किए जा रहे है । जयपुर शहर से सटे नाहरगढ़ जैविक उद्यान में संचालित दो प्रमुख सफारियां टाइगर सफारी और लायन सफारी इन दिनों जयपुर वासियों और बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र बनी हुई हैं और जयपुर के नाहरगढ़ जैविक उद्यान में पर्यटकों का सैलाब उमड़ रहा है। सर्दी के मौसम एवं सुहावने मिजाज के बीच पर्यटक प्रकृति की गोद में खींच आते हैं और नाहरगढ़ जैविक उद्यान का भ्रमण कर वन्य जीवों का नजदीक से अवलोकन करने का आनन्द ले रहे है। इस दौरान लायन सफारी और टाइगर सफारी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण बनती है। दोनों सफारियों का रोमांचक अनुभव से पर्यटक शेर और बाघ की चंचल अदाओं को देख रोमांचित है। एक ओर बाघों की गर्जना और शेरों के शाही ठाठ-बाठ पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करते है। यहां पर्यटन सीजन में सैलानियों का सैलाब उमड़ रहा है। जयपुर के नाहरगढ़ जैविक उद्यान में रविवार को पर्यटकों का सैलाब उमड़ पड़ा। बदलते मौसम के सुहावने मिजाज और छुट्टी के दिन के उत्साह भरे पर्यटकों को प्रकृति की गोद में खींच लाया। हजारों सैलानियों ने नाहरगढ़ जैविक उद्यान का भ्रमण कर वन्य जीवों का नजदीक से अवलोकन किया। विगत 20 दिनों में नाहरगढ़ जैविक उद्यान में 30 हजार से अधिक सैलानी टाइगर एवं लायन सफारी का रोमांचक अनुभव उठा चुके हैं। जयपुर शहर के मध्य में प्राकृतिक हरियाली और वन्य जीवों का यह संगम, लोगों को पारिवारिक सैर और रोमांच का अनूठा अनुभव प्रदान कर रहा है। वन विभाग की सतत निगरानी और प्रबंधन के कारण नाहरगढ़ जैविक उद्यान आज राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय वन्यजीव पर्यटन स्थलों में शुमार हो गया है। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है, बल्कि पर्यटकों के लिए शिक्षाप्रद और मनोरंजक अनुभव का केंद्र भी बन गया है। निष्कर्ष के रूप में जयपुर आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ विकास और प्रकृति आमने-सामने हैं। यह शहर एक ऐसा बेजोड़ उदाहरण बन सकता है कि किस तरह शहरी विकास के साथ जंगल और वन्य जीवों का सह-अस्तित्व संभव है।

राजस्थान के अन्य शहरों झीलों की नगरी उदयपुर,जयसमंद एवं राजसमंद,हिल सिटी डूंगरपुर-बांसवाड़ा,पहाड़ों की रानी माउन्ट आबू और लैपर्डस का स्वर्ग पाली जिले का जवाई बाँध के साथ राज्य के विश्व प्रसिद्ध वन अभ्यारणों सवाईमाधोपुर के रणथंबोर,अलवर के सरिस्का, चम्बल से सटे आदि इलाकों में भी शहरी विकास के साथ जंगल और वन्य जीवों का सह-अस्तित्व संभव करने के उपाय करना अति आवश्यक हो गया है। यदि समय रहते यह संतुलन नहीं साधा गया, तो शहरों से सटे जंगल का रोमांच डर में बदल सकता है लेकिन सही नीति, संवेदनशील प्रशासन और जागरूक समाज के साथ जयपुर सहित अन्य सभी शहरों और कस्बों में वास्तव में ऐसे इलाके बन सकते है,जहाँ आबादी के बीच जंगल भी सुरक्षित साँस ले सके।