सुनील कुमार महला
24 दिसंबर को पूरे भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है।वास्तव में,राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य क्रमशः उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना, उन्हें शोषण, ठगी और भ्रामक विज्ञापनों से बचाना, उन्हें यह समझाना कि वे केवल खरीदार नहीं, बल्कि सशक्त नागरिक हैं तथा न्याय पाने के लिए उपलब्ध कानूनी उपायों की जानकारी देना है। राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस हमें यह याद दिलाता है कि जागरूक उपभोक्ता ही मजबूत बाजार व्यवस्था की नींव होता है। जब उपभोक्ता अपने अधिकारों को जानता है, तभी शोषण पर रोक लगती है और ईमानदार व्यापार को बढ़ावा मिलता है। अब यहां सबसे पहला प्रश्न यह उठता है कि आखिर उपभोक्ता से मतलब क्या है अथवा उपभोक्ता कहते किसे हैं ? तो इसका सीधा सा उत्तर यह है कि उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है जो किसी वस्तु या सेवा को मूल्य देकर अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए खरीदता या प्राप्त करता है। वास्तव में, इसमें वह स्थिति भी शामिल होती है जब भुगतान पूरा न होकर आंशिक हो या उधार पर किया गया हो। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार, उपभोक्ता वस्तुओं या सेवाओं का उपयोग अपने लिए करता है, न कि उन्हें पुनः बेचने या बड़े व्यावसायिक लाभ के उद्देश्य से। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु या सेवा का उपयोग स्व-रोज़गार के माध्यम से अपनी आजीविका चलाने के लिए करता है, तो उसे भी उपभोक्ता की श्रेणी में रखा गया है। सरल शब्दों में कहा जाए तो जो व्यक्ति अपनी आवश्यकता या जीवनयापन के लिए वस्तु या सेवा लेता है, वही उपभोक्ता कहलाता है। बहरहाल, यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर आज उपभोक्ता अधिकारों की जरूरत आखिर क्यों है ? तो इसका सीधा सा उत्तर यह है कि आज उपभोक्ता अधिकारों की आवश्यकता इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि आज बाजार, तकनीक और व्यापार के तरीके तेजी से बदल गए हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के समय में बाजार में वस्तुओं(तरह तरह के उत्पादों) और सेवाओं की भरमार है, लेकिन उनके साथ मिलावट, नकली सामान, घटिया गुणवत्ता और भ्रामक विज्ञापनों का खतरा भी बढ़ गया है। उपभोक्ता अधिकार वे अधिकार वे अधिकार हैं जो किसी भी उपभोक्ता को धोखाधड़ी से बचाने का कानूनी संरक्षण प्रदान करते हैं। आज ऑनलाइन का जमाना है और घर बैठे या कहीं पर भी बैठे ऑनलाइन खरीद-फरोख्त और डिजिटल भुगतान के बढ़ते चलन में डेटा चोरी, फर्जी वेबसाइट, गलत डिलीवरी और रिफंड से जुड़े विवाद आम हो गए हैं। ऐसे में ये उपभोक्ता अधिकार ही हैं जो उपभोक्ता को सुरक्षित और भरोसेमंद लेन-देन का अधिकार प्रदान करते हैं। आज बाजार में बड़ी बड़ी कंपनियां मौजूद हैं तथा इन बड़ी कंपनियों के पास पूंजी, तकनीक, कानूनी विशेषज्ञ और विज्ञापन जैसी मजबूत ताकत होती है, जबकि उपभोक्ता आमतौर पर अकेला होता है और उसके पास सीमित जानकारी व संसाधन होते हैं। कंपनियाँ अपने उत्पादों की कीमत, शर्तें और नियम तय करती हैं, जिन्हें उपभोक्ता को अक्सर बिना मोलभाव स्वीकार करना पड़ता है। भ्रामक विज्ञापन, जटिल अनुबंध और छोटी-छोटी शर्तें उपभोक्ता के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं। किसी समस्या की स्थिति में कंपनी के खिलाफ शिकायत या कानूनी कार्रवाई करना उपभोक्ता के लिए समय, धन और मेहनत का विषय बन जाता है। इसी कारण कहा जाता है कि बड़ी कंपनियों और उपभोक्ता के बीच शक्ति का संतुलन नहीं, बल्कि असंतुलन मौजूद है। ऐसे में उपभोक्ता अधिकार इस असमानता(कंपनी और उपभोक्ता के बीच) को संतुलित करते हुए उपभोक्ता को शिकायत दर्ज करने, सुनवाई और न्याय पाने का अवसर देते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि उपभोक्ता अधिकार आम आदमी में जागरूकता बढ़ाते हैं, जिससे उपभोक्ता अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझता है तथा गलत प्रथाओं का विरोध कर सकता है। गौरतलब है कि उपभोक्ता अधिकार केवल ‘सेवा में कमी’ के मामलों तक सीमित नहीं होते हैं। ये अधिकार तब भी लागू होते हैं जब उपभोक्ता को दोषपूर्ण या घटिया वस्तु दी जाए, भ्रामक या झूठा विज्ञापन किया जाए, निर्धारित मूल्य से अधिक राशि वसूली जाए, अनुचित व्यापार व्यवहार अपनाया जाए या उपभोक्ता से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई जाए। इसके अलावा यदि कोई वस्तु उपभोक्ता के स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरा बनती है, तब भी उपभोक्ता अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। इस प्रकार उपभोक्ता अधिकारों का उद्देश्य केवल सेवा की गुणवत्ता पर निगरानी रखना नहीं है, बल्कि उपभोक्ता को हर प्रकार के शोषण, धोखाधड़ी और अन्याय से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करना है। उपभोक्ता अधिकारों के संदर्भ में ‘सेवा में कमी’ का अर्थ है कि किसी सेवा प्रदाता द्वारा उपभोक्ता को दी जाने वाली सेवा में लापरवाही, देरी, त्रुटि या वादा पूरा न किया जाना। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार उपभोक्ता को समय पर, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण सेवा प्राप्त करने का अधिकार है। यदि बैंक समय पर लेन-देन न करे, बीमा कंपनी दावा निपटाने में अनावश्यक देरी करे, अस्पताल इलाज में लापरवाही बरते, स्कूल या कोचिंग संस्थान निर्धारित सेवाएँ न दें या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उचित सेवा प्रदान न करे, तो यह सेवा में कमी मानी जाती है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को शिकायत दर्ज कराने, मुआवजा मांगने और उपभोक्ता आयोग के माध्यम से न्याय पाने का कानूनी अधिकार प्राप्त है। निष्कर्षतः, हम यह बात कही सकते हैं कि उपभोक्ता अधिकार केवल संरक्षण का साधन नहीं हैं, बल्कि एक निष्पक्ष, पारदर्शी और जिम्मेदार बाजार व्यवस्था की नींव हैं। आज के समय में उपभोक्ता अधिकारों के बिना उपभोक्ता शोषण से मुक्त नहीं रह सकता। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि 24 दिसंबर 1986 को भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू हुआ था, यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष इसे 24 दिसंबर के दिन मनाया जाता है। गौरतलब है कि इस कानून ने पहली बार उपभोक्ताओं को कानूनी सुरक्षा और न्याय का अधिकार दिया तथा वर्ष 2019 में नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हुआ, जिससे ई-कॉमर्स और डिजिटल ठगी जैसे नए मुद्दे भी कानून के दायरे में आए। यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि उपभोक्ताओं को मुख्य रूप से क्रमशः सुरक्षा का अधिकार,सूचना पाने का अधिकार,चयन का अधिकार, सुने जाने का अधिकार,न्याय पाने का अधिकार तथा उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार जैसे अधिकार प्राप्त हैं। यहां उल्लेखनीय है कि विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है, तथा इस वर्ष इसकी थीम/विषय ‘टिकाऊ जीवनशैली की ओर एक उचित परिवर्तन’ रखी गई थी, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को ऐसी जीवनशैली अपनाने के लिए सशक्त करना है जो स्वास्थ्यकर, टिकाऊ और सबके लिए उपलब्ध/किफ़ायती हो। बहरहाल, यहां सरल शब्दों में कहें तो उपभोक्ता सिर्फ वही नहीं है जो बाजार से कोई सामान खरीदता है, बल्कि वह व्यक्ति भी उपभोक्ता है जो बैंक, बीमा, अस्पताल, स्कूल, कोचिंग, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या किसी भी तरह की सेवा लेता है। उपभोक्ता संरक्षण कानून के अनुसार, उपभोक्ता को शिकायत करने के लिए वकील रखना भी जरूरी नहीं है, तथा वह खुद अपनी बात उपभोक्ता अदालत में रख सकता है और यह किसी भी उपभोक्ता के लिए अपने आप में एक बहुत बड़ी सुविधा ही कही जा सकती है। जैसा कि ऊपर भी इस आलेख में चर्चा कर चुका हूं कि आज के डिजिटल दौर में ऑनलाइन खरीदारी और ई-कॉमर्स पर भी यह कानून लागू है, जिससे ठगी, खराब सामान या खराब सेवा के खिलाफ सुरक्षा मिलती है। मतलब यह है सिर्फ बाजार से फिजीकली कोई सामान खरीदने पर ही नहीं ऑनलाइन खरीदारी पर भी उपभोक्ताओं के अधिकार सुरक्षित हैं और वे बेख़ौफ़ होकर सामान खरीद सकते हैं। मतलब कि सामान में कोई गड़बड़ी होने पर वे न्याय के लिए दरवाजा खटखटा सकते हैं। अच्छी बात यह है कि आज के समय में उपभोक्ता मामलों के जल्दी निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता आयोग बनाए गए हैं और नए कानून में तो गलत या भ्रामक विज्ञापन देने पर कंपनियों के साथ-साथ प्रचार करने वाले सेलिब्रिटी और इंफ्लुएंसर भी जिम्मेदार माने जाते हैं। उपभोक्ता अपनी शिकायत 1915 नंबर पर कॉल करके या एनसीएच(नेशनल कंज़्यूमर हेल्पलाइन) ऐप के जरिए ऑनलाइन भी दर्ज करा सकता है। दरअसल एनसीएच भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक मोबाइल ऐप है, जिसकी मदद से उपभोक्ता अपनी शिकायत आसानी से ऑनलाइन दर्ज कर सकता है। गौरतलब है कि यह ऐप उपभोक्ता कार्य मंत्रालय के अंतर्गत उपभोक्ता की सहायता और अधिकारों की रक्षा के लिए काम करता है तथा इस ऐप की सहायता से क्रमशः खराब सामान या खराब सेवा की शिकायत, ऑनलाइन शॉपिंग, बैंक, बीमा, टेलीकॉम, स्कूल, अस्पताल आदि से जुड़ी समस्या को दर्ज करना, शिकायत की स्थिति (स्टेटस) ट्रैक करने के साथ ही साथ कंपनियों से समाधान दिलाने में मदद प्राप्त की जा सकती है। अंत में यही कहूंगा राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है।यह दिन उपभोक्ता को शोषण, धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं से संरक्षण का संदेश देता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि एक सशक्त उपभोक्ता ही स्वस्थ और पारदर्शी बाजार व्यवस्था की नींव होता है।सरकार, कंपनियों और उपभोक्ताओं-तीनों की यह जिम्मेदारी और कर्तव्य है कि वे उपभोक्ता हितों का सम्मान करें, जैसा कि एक जागरूक उपभोक्ता ही न्यायपूर्ण और संतुलित अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकता है।





