शिवकुमार बिलगरामी
साहित्य समाज के लिए सदैव उपयोगी रहा है । किसी काल विशेष में किसी देश या समाज की सामाजिक , राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थिति कैसी थी, यह समझने के लिए साहित्य सर्वोत्तम साधन है । साहित्य न केवल उस काल की घटनाओं का प्रलेखीकरण करता है अपितु उस काल विशेष में जनसाधारण की मनोदशा का चित्रण भी करता है । साहित्य अपने समय की कुरीतियों और विसंगतियों के साथ-साथ उस समय के अत्याचार और अन्याय की ओर भी इंगित करता है । इसीलिए साहित्य को समाज की आत्मा कहा जाता है । साहित्य समाज के विचारों को दिशा देता है , संवेदनाओं को गहराई देता है और संस्कृति को स्थायित्व प्रदान करता है । यह समाज की परिस्थितियों, समस्याओं और उपलब्धियों को दर्शाता है। साथ ही साहित्य लोगों में सामाजिक , नैतिक और राष्ट्रीय चेतना का संचार करता है । यह लोगों को अज्ञानता और शोषण के विरुद्ध जागरूक करता है और जन सामान्य में करुणा सहानुभूति और संवेदनशीलता के गुण विकसित करता है । हम कह सकते हैं कि साहित्य व्यक्ति को मानवता का पाठ पढ़ाता है । साहित्य किसी भी समाज की अस्मिता को बनाए रखने का सशक्त साधन है । अपने साहित्य सृजन के माध्यम से साहित्यकार सामाजिक परंपराओं, मान्यताओं और सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखता है और इन्हें आने वाली पीढ़ियां तक पहुंचाता है । साहित्य जीवन की कठिनाइयों से जूझ रहे व्यक्तियों को संबल और साहस प्रदान करता है और उनमें आशा और विश्वास का संचार करता है । इतना ही नहीं साहित्य समाज को परिवर्तन के लिए तैयार करता है ।
लेकिन अफसोस की बात है कि वर्तमान में साहित्य पूरी तरह हाशिए पर है । समाज की प्राथमिकताएं बदल गई हैं और तकनीक के कारण जन जागरूकता के अन्य सशक्त माध्यम प्रचलन में आ गए हैं। जहां कभी साहित्य समाज का मार्गदर्शन और जन चेतना का साधन था वहीं अब यह केवल एक एकेडमिक विषय बनकर रह गया है। इसका मुख्य कारण बाजारवाद और उपभोक्तावाद के साथ-साथ सरकारी उपेक्षा भी है । समकालीन समाज में साहित्य की बजाय तकनीकी और टीवी उपभोग वाले माध्यम , जैसे कि टीवी, वेब सीरीज और सोशल मीडिया अधिक प्रभावी हैं । इनके प्रचलन के कारण गहन और अर्थपूर्ण चिंतन लगभग समाप्त हो गया है । सरकारें विज्ञान और वैज्ञानिक प्रयोगों को बढ़ावा देने के लिए तो भरपूर बजट उपलब्ध कराती हैं लेकिन गहन और लोक कल्याणकारी चिंतन के लिए उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराने हेतु आवश्यक ढांचागत सुविधाओं के लिए किसी तरह का कोई बजट उपलब्ध नहीं कराती । इतना ही नहीं सरकारें विकास के नाम पर नैसर्गिक वातावरण को भी विरूपित कर रही हैं । वर्तमान में अधिकतर साहित्यकार भी आर्थिक लाभ और ख्याति-सम्मान प्राप्ति के उद्देश्य से बहुत ही सतही और मनोरंजनात्मक साहित्य का सृजन कर रहे हैं। यद्यपि सोशल मीडिया के इस दौर में साहित्यकारों की संख्या में असीमित वृद्धि हुई है फिर भी उनकी रचनाओं में गहन और मौलिक चिंतन का अभाव है । हालांकि समाज में अब भी एक ऐसा बहुत बड़ा वर्ग है जो गूढ़ गहन और मौलिक साहित्य की प्यास रखता है लेकिन उसे अपने वर्तमान रचनाकारों से निराश होना पड़ रहा है ।
पठन-पाठन में कम होती अभिरुचि इस बात की ओर इंगित कर रही है कि अच्छे साहित्य को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठए जायें। इसके लिए सबसे पहले स्कूलों और विश्वविद्यालयों में साहित्य को केवल परीक्षा पास करने का साधन न बनाकर, संवेदनाओं और जीवन दृष्टि का आधार बनाया जाए। विद्यार्थियों को नाट्य मंचन, काव्य-पाठ और कहानी-पाठ जैसी गतिविधियों से जोड़ा जाए। इसके साथ ही पठन संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए। पुस्तकालयों को सुलभ और आकर्षक बनाया जाए तथा डिजिटल माध्यमों पर साहित्य उपलब्ध कराया जाए। साहित्यकारों और पाठकों के बीच सेतु निर्माण ज़रूरी है। न केवल गोष्ठियों, संवाद कार्यक्रमों और पुस्तक मेलों के माध्यम से लेखकों को जनता से जोड़ा जाये अपितु देश की वास्तविक समस्याओं और विकास कार्यों का अध्ययन करने के लिए साहित्यकारों का ग्रामीण क्षेत्रों में आवधिक प्रवास सुनिश्चित करने की कोई व्यवस्था की जानी चाहिए । मीडिया और तकनीक का उपयोग कर साहित्य को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए तथा सोशल मीडिया, यूट्यूब, पॉडकास्ट और दूरदर्शन जैसे प्लेटफॉर्मों पर साहित्यिक कार्यक्रमों का अधिकाधिक प्रसारण किया जाना चाहिए । सरकारी और संस्थागत सहयोग भी आवश्यक है। लेखकों को प्रोत्साहन, अनुवाद परियोजनाएँ और आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि साहित्य राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंचे। इसके अतिरिक्त हमें पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी साहित्यिक वातावरण तैयार करना होगा। बच्चों को घरों में कहानियाँ और कविता सुनानें जैसे छोटे कदम भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं । साहित्य को जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाने के लिए समाज के हर स्तर पर सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। तभी अच्छे साहित्य की परंपरा जीवित रह सकेगी और नई पीढ़ी तक पहुँच पाएगी।





