सुनील कुमार महला
डिजिटल क्रांति, सोशल मीडिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) ने मानव जीवन को जितना सुविधाजनक बनाया है, उतना ही उसकी कुछ पुरानी और उपयोगी आदतों को धीरे-धीरे हाशिये पर भी धकेल दिया है। आज का बच्चा काग़ज़ से ज़्यादा स्क्रीन से जुड़ा है। हाथों में अख़बार या पुस्तक की जगह मोबाइल फोन, टैबलेट और लैपटॉप ने ले ली है। परिणामस्वरूप बच्चों में फिज़ीकली(हाथ में अखबार की हार्ड कापी लेकर अख़बार पढ़ना) अख़बार पढ़ने की आदत लगातार कम होती जा रही है, जो समाज और शिक्षा दोनों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
अख़बार केवल समाचारों का संग्रह नहीं होता, बल्कि वह ज्ञान, भाषा, विचार और दृष्टिकोण को विकसित करने का सशक्त माध्यम है। अख़बार पढ़ने से बच्चों में शब्द-भंडार बढ़ता है, भाषा शुद्ध होती है और समसामयिक घटनाओं की समझ विकसित होती है। प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से भी अख़बार अत्यंत उपयोगी है। इसके बावजूद आज के बच्चे त्वरित और सतही जानकारी के आदी होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर कुछ सेकंड के वीडियो, अधूरी खबरें और भ्रामक सूचनाएँ उन्हें सहज तो लगती हैं, लेकिन गहराई से सोचने की क्षमता को कमजोर कर देती हैं। डिजिटल माध्यमों पर उपलब्ध समाचार एल्गोरिद्म के अनुसार परोसे जाते हैं, जिससे बच्चों को वही दिखता है जो उनकी रुचि या पसंद से जुड़ा होता है। इसके विपरीत अख़बार पढ़ने से व्यक्ति राजनीति, अर्थव्यवस्था, विज्ञान, खेल, संस्कृति और साहित्य-सभी विषयों से एक साथ जुड़ता है। यह व्यापक दृष्टिकोण आज के बच्चों में धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। पुस्तकालयों की ओर घटता रुझान भी इसी प्रवृत्ति का परिणाम है, जहां कभी अध्ययन और चिंतन का वातावरण हुआ करता था। एआइ और इंटरनेट का उपयोग आज के आधुनिक दौर में निस्संदेह आवश्यक और लाभकारी है, लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब ये साधन ही जीवन का उद्देश्य बन जाएँ। बच्चों में एकाग्रता की कमी, धैर्य का अभाव और पढ़ने से अरुचि इसी का संकेत है।
अख़बार पढ़ना एक अनुशासन सिखाता है।सुबह समय निकालकर बैठना, खबरों को क्रम से पढ़ना और तथ्यों को समझना, बहुत ही अच्छी आदत है। वास्तव में कहना ग़लत नहीं होगा कि यह आदत बच्चों के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। आज के समय में यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि माता-पिता, शिक्षक और समाज मिलकर बच्चों में अख़बार पढ़ने की रुचि फिर से जगाएँ। घर और विद्यालयों में ‘अख़बार पठन समय’ तय किया जाए, पुस्तकालयों को आकर्षक बनाया जाए और बच्चों को चर्चा-परिचर्चा के माध्यम से पढ़ी गई खबरों पर बोलने के अवसर दिए जाएँ। डिजिटल युग में रहते हुए भी अगर हम काग़ज़ के अख़बार से बच्चों का रिश्ता बनाए रख सकें, तो यह उनके बौद्धिक और नैतिक विकास के लिए एक सुदृढ़ आधार सिद्ध होगा। सोशल मीडिया और एआइ के इस दौर में तकनीक के साथ संतुलन बनाना ही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अख़बार पढ़ने की आदत बच्चों को न केवल बेहतर नागरिक बनाती है, बल्कि उन्हें सोचने-समझने वाला जागरूक इंसान भी बनाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स और एआइ के इस युग में आज हमारे युवाओं में अखबार पढ़ने की संस्कृति का लगातार विलोप होता चला जा रहा है। यह आज के समय की विडंबना ही कही जा सकती है कि आज की हमारी युवा पीढ़ी इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर (अब एक्स), यू-ट्यूब, व्हाट्स एप पर अपना ज्यादा समय बिताती है। पहले एक दौर था जब युवा पीढ़ी अखबार पढ़ने में तल्लीन व खुश नज़र आती थी। वास्तव में अखबार केवल खबरों का ही संग्रह नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, जागरूकता और समझ का असली दर्पण है। नियमित रूप से अखबार पढ़ना व्यक्ति को बौद्धिक रूप से समृद्ध और समाज के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
अखबार न केवल हमें देश-दुनिया की ताज़ा घटनाओं से जोड़ता है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व और हमारी सोच को भी समृद्ध करता है। अखबार में ताज़ा और विश्वसनीय जानकारी जानकारी होती है और अखबार के माध्यम से हमें राजनीति, अर्थव्यवस्था, खेल, विज्ञान, शिक्षा और समाज से जुड़ी सटीक व प्रमाणिक जानकारी मिलती है, जिससे हम समय के साथ अपडेट रहते हैं। अखबार हमारे ज्ञान और सामान्य जानकारी में वृद्धि करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि रोज़ अखबार पढ़ने से सामान्य ज्ञान बढ़ता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए तो यह अत्यंत उपयोगी साबित होता है। अखबार पढ़ने से हमारे अंदर भाषा और शब्द-भंडार का विकास होता है।सच तो यह है कि अखबार पढ़ने से भाषा पर पकड़ मजबूत होती है, नए शब्द सीखने को मिलते हैं और लेखन व अभिव्यक्ति क्षमता में सुधार होता है। अखबार हमारे अंदर विचारशीलता और विश्लेषण क्षमता का विकास करते हैं। संपादकीय और विचार लेख पढ़ने से घटनाओं को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने की आदत पड़ती है, जिससे तार्किक और संतुलित सोच विकसित होती है। अखबार हमें समाज व देश की विभिन्न समस्याओं, विभिन्न सरकारी योजनाओं और अधिकार-कर्तव्यों से अवगत कराता है, जिससे एक जागरूक नागरिक बनने में मदद मिलती है। सुबह-सुबह अखबार पढ़ना एक अच्छी आदत है, जो दिन की सकारात्मक शुरुआत कराता है और समय का रचनात्मक उपयोग सिखाता है। अखबार में विभिन्न सम-सामयिक विषयों की जानकारी होने से बातचीत, बहस और मंच पर बोलते समय आत्मविश्वास बढ़ता है। छात्रों का सामान्य ज्ञान बढ़ाने, उन्हें देश-दुनिया की खबरों से जोड़ने और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करने के उद्देश्य से सरकारें अब स्कूलों में अखबार पढ़ने पर जोर दे रही हैं। अख़बार केवल खबरों का पुलिंदा नहीं है, बल्कि सामाजिक संवाद और सामूहिक बौद्धिकता का माध्यम है। बुज़ुर्गों की वह तल्लीनता दरअसल अनुभव, धैर्य और सोच की गहराई की परिचायक थी। वे खबर को सिर्फ पढ़ते नहीं थे, बल्कि उसके निहितार्थ समझते थे-देश, समाज और आने वाली पीढ़ी के संदर्भ में उस पर विचार करते थे। गांव की चौपाल, चाय की थड़ी या दुकान पर रखा एक अख़बार कई लोगों को जोड़ देता था। अलग-अलग विचार, सहमति-असहमति और तर्क-वितर्क के बीच लोकतांत्रिक चेतना स्वतः पनपती थी, लेकिन समय के साथ तस्वीर बदल गई। मोबाइल फोन और सोशल मीडिया ने सूचनाओं की बाढ़ तो ला दी, पर ठहराव और गहराई छीन ली। अब खबर पढ़ने से ज़्यादा स्क्रॉल करने की आदत बन गई है। चर्चा-परिचर्चा की जगह त्वरित प्रतिक्रिया, अधूरी जानकारी और भावनात्मक टिप्पणियों ने ले ली है। इसका असर यह हुआ कि सामूहिक चिंतन की परंपरा कमजोर पड़ती चली गई। फिर भी यह कहना गलत होगा कि अख़बार की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है।
आज भी अख़बार विश्वसनीयता, विश्लेषण और संतुलन का प्रतीक हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम पुरानी परंपरा के सार को नई पीढ़ी तक पहुंचाएं-उन्हें खबर पढ़ने, समझने और उस पर संवाद करने की संस्कृति से जोड़ें। यदि गांवों की चौपालों और शहरों की चाय की दुकानों पर फिर से अख़बार के इर्द-गिर्द संवाद शुरू हों, तो यह न केवल सूचना का स्तर ऊंचा करेगा, बल्कि समाज को सोचने-समझने वाली दिशा भी देगा। इसी क्रम में, यहां पाठकों को बताता चलूं कि पहले 24 जून को हिमाचल प्रदेश सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों की सुबह की प्रार्थना सभा में बच्चों द्वारा रोज अखबार पढ़ने की व्यवस्था करने के निर्देश दिए थे।अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी राज्य के सभी बेसिक और सैकेंडरी सरकारी स्कूलों में छात्रों के लिए अखबार पढ़ना अनिवार्य कर दिया है। वास्तव में, इसका उद्देश्य बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित करना, उनका सामान्य ज्ञान बढ़ाना और वाद-विवाद व आत्मविश्वास के साथ बोलने की क्षमता को मजबूत करना है, ताकि वे भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सकें।23 दिसंबर को जारी आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव (बेसिक व सैकेंडरी शिक्षा) पार्थसारथी सेन शर्मा ने कहा है कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के समाचार पत्रों को स्कूल शिक्षा का जरूरी हिस्सा बनाया जाए। इससे बच्चों का मोबाइल फोन पर समय कम होगा और वे उपयोगी जानकारी से जुड़ेंगे। आदेश के अनुसार, हर दिन स्कूल की प्रार्थना सभा में 10 मिनट का समय तय किया जाएगा, जिसमें बच्चे बारी-बारी से अखबार की खबरें पढ़ेंगे। इससे उन्हें देश-विदेश की महत्वपूर्ण घटनाओं, खेल जगत की खबरों और अन्य समसामयिक विषयों की जानकारी मिलेगी।अधिकारियों का यह मानना है कि अखबार पढ़ने से बच्चों का सामान्य ज्ञान बढ़ेगा, वे सही-गलत की पहचान करना सीखेंगे और आगे के जीवन में यह ज्ञान उनके बहुत काम आएगा। निश्चित रूप से आज के प्रतिस्पर्धी समय में अखबार पढ़ने की आदत बहुत लाभकारी है। इसलिए अन्य राज्य सरकारों को भी अपने स्कूलों में ऐसी व्यवस्था लागू करनी चाहिए।





