सरकारी संपत्ति की लूट,आम हो या खास सबकी बपौती

Looting of government property is the inheritance of everyone, whether common or special

अजय कुमार

यह एक कड़वी सच्चाई है कि सरकारी संपत्ति, जो राष्ट्र की साझा धरोहर है, अक्सर आम लोगों के लालच का शिकार बन जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लखनऊ दौरे के दौरान एक पार्क के उद्घाटन पर सजावट के लिए लगाए गए करीब 6 हजार गमले चोरी हो गए। लग्जरी कारों और स्कूटरों पर सवार लोग खुले आम गमलों को उठाकर भागते नजर आए। यहां तक कि एक पुलिसकर्मी को पानी का खाली जार और वॉटर कूलर ले जाते देखा गया। यह घटना पूरे देश की उस फितरत को उजागर करती है, जहां लोग सार्वजनिक संपत्ति को निजी मान लेते हैं। कल्पना कीजिए, एक तरफ राष्ट्र निर्माण की भव्य योजनाएं, दूसरी तरफ उसी राष्ट्र की संपत्ति पर डाका। लखनऊ के इस पार्क में पीएम के स्वागत के लिए शहर की सड़कों और मार्गों पर फूलों से सजे गमले लगाए गए थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही भीड़ उमड़ पड़ी। लोग न केवल गमले उखाड़ रहे थे, बल्कि उन्हें गाड़ियों में लादकर फरार हो गए। वीडियो फुटेज में साफ दिखा कि अमीर-गरीब सभी इसमें शरीक थे। यह केवल लखनऊ तक सीमित नहीं पूरे भारत में ऐसी घटनाएं बार-बार दोहराई जा रही हैं।

इस घटना से लखनऊ में कुछ साल पहले हुए डिफेंस एक्सपो की याद ताजा कर दी है।तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आयोजन स्थल से चोरी होने वाले सामान की तस्वीरें सार्वजनिक करने की बात कही थी। वहां भी टेंट, कुर्सियां, बल्ब और सजावटी सामग्री गायब हो गई थी। योगी ने सख्त चेतावनी दी थी कि ऐसे लुटेरों को बेनकाब किया जाएगा। लेकिन क्या बदला? कुछ नहीं। उल्टा, ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यही हाल कुछ महीने पहले प्रयागराज कुंभ मेले का था। करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए लगाए गए टेंट, शौचालय और पंडालों का सामान चोरी हो गया। प्लास्टिक चेयर से लेकर जनरेटर तक, सब कुछ गायब। स्थानीय मीडिया ने रिपोर्ट किया कि चोरी करने वाले स्थानीय ही थे, जो मेले के बाद फ्री सामान ले जाते दिखे। प्रशासन ने दर्जनों मामले दर्ज किए, लेकिन सजा मिली क्या?
यह उत्तर प्रदेश तक नहीं सीमित है। पूरा देश इससे ग्रस्त है। दिल्ली के हालिया जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी यही नजारा देखने को मिला। भारत की मेजबानी में लग्जरी होटलों और सड़कों पर सजावट की गई थी। सम्मेलन खत्म होते ही फूलों के गमले, बैनर और सजावटी लाइटें गायब हो गईं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में सरकारी वाहनों से उतरते लोग सामान लादते दिखे। दिल्ली पुलिस ने कुछ को पकड़ा भी, लेकिन ज्यादातर बच निकले।

मुंबई में 2023 के एशियाई खेलों के स्वागत के लिए सजाए गए बैंडस्टैंड और गमलों की चोरी हुई। समुद्र किनारे के चौपाटी पर लगे सामान रातोंरात गायब। स्थानीय निवासियों ने कबूल किया कि ये तो सरकारी चीजें हैं, कोई पूछने वाला नहीं। इसी तरह, कोलकाता में दुर्गा पूजा पंडालों के लिए लगाए गए सरकारी लाइट और साउंड सिस्टम चोरी हो गए। पश्चिम बंगाल सरकार ने शिकायत की, लेकिन दोषी कौन पकड़े गए? ज्यादातर मामलों में मामला ठंडा पड़ गया। तमिलनाडु के चेन्नई में हाल ही में प्रधानमंत्री के दौरे पर सजावट के गमले चोरी हो गए। वहां तो एक विधायक का बेटा भी पकड़ा गया, जो लग्जरी एसयूव में गमले लाद रहा था। दक्षिण भारत तक फैली यह फितरत बताती है कि समस्या क्षेत्रीय नहीं, राष्ट्रीय है।

सवाल उठता है, आखिर क्यों? सरकारी संपत्ति को राष्ट्र की संपत्ति मानने की भावना क्यों कमजोर हो गई? इसका जवाब हमारी सामाजिक-आर्थिक फितरत में छिपा है। पहला कारण -गरीबी और बेरोजगारी। कई लोग सोचते हैं कि सरकार अमीर है, एक-दो गमला क्या ले लूंगा? लेकिन लालच अमीरों तक सीमित नहीं। लग्जरी कारों वाले भी इसमें शामिल हैं। दूसरा, नैतिक पतन। बचपन से सिखाया जाता है झूठ, चोरी, लालच न करो, लेकिन प्रैक्टिस में विपरीत। सोशल मीडिया पर फ्री में लो की संस्कृति ने इसे बढ़ावा दिया। तीसरा, प्रशासनिक लापरवाही। कार्यक्रम खत्म होते ही सिक्योरिटी हटा ली जाती है। पुलिस वाले खुद चोरी करते पकड़े जाते हैं, तो आम आदमी कैसे संकोच करेगा? चौथा, राजनीतिक संस्कृति। नेता आते हैं, सजावट करवाते हैं, जाते हैं। जनता सोचती है ये तो शोपीस था, अब फेंक दिया जाएगा।लेकिन ये टैक्सपेयर्स का पैसा है। पांचवां, कानूनी कमजोरी। चोरी के मामले में सजा मिलना दुर्लभ है। योगी जी ने तस्वीरें जारी करने की बात की, लेकिन अमल कितना?

बहरहाल, यह नई समस्या नहीं। स्वतंत्रता के बाद नेहरू जी के समय दिल्ली के इंडिया गेट पर लगे बल्ब चोरी होते थे। 1980 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में इस पर बहस छेड़ी थी। आजादी के आंदोलन में गांधी जी ने कहा था-सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा राष्ट्रभक्ति है। लेकिन आज वही गांधी के देश में चोरी का बाजार गर्म। बात नुकसान की कि जाये तो एक गमला 500-1000 रुपये का। 6 हजार गमले मतलब 30-60 लाख का नुकसान। सालाना ऐसी घटनाओं से अरबों का। पर्यावरण को नुकसान – पौधे मर जाते हैं। शहर की सौंदर्यता प्रभावित। सबसे बड़ा नुकसान सामाजिक विश्वास। लोग सोचते हैं अगर सब चोर हैं, तो मैं क्यों न रहूं?

खैर,ऐसा नहीं है कि यह ‘रोग’ लाइलाज है। इसका समाधान संभव है। पहला, सख्त कानून। चोरी पर तुरंत एफआईआर और पब्लिक शेमिंग हो। योगी मॉडल को पूरे देश में लागू करें। दूसरा, जागरूकता अभियान। स्कूलों से शुरू करो-सरकारी संपत्ति मेरी संपत्ति। तीसरा, तकनीकी हल। सीसीटीवी और जीपीएस ट्रैकर गमलों की जगह लगायें जायें। चौथा, सामुदायिक जिम्मेदारी। मोहल्ला समितियां बनाएं। पांचवां, राजनीतिक इच्छाशक्ति। नेता खुद उदाहरण पेश करें। पूरे देश की यह फितरत बदलनी होगी। लखनऊ की यह घटना आईना है। राष्ट्र की धरोहर को बचाना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। अगर हम नहीं चेते, तो विकास की सारी मेहनत व्यर्थ। आइए, संकल्प लें – चोरी नहीं, संरक्षण। तभी सच्चा विकसित भारत बनेगा।

लूट में नेता भी नहीं रहते हैं पीछे

लखनऊ में पीएम मोदी के कार्यक्रम के बाद कुछ लोग गमले व अन्य सामान चोरी करते देखे गये इस पर बहस भी छिड़ गई है,लेकिन सवाल यह भी है आम जनता ही नहीं बड़े-बड़े नेता और अधिकारी भी मौका मिलने पर पीछे नहीं रहते हैं। यह लोग सरकारी आवास खाली करते समय वहां से सरकारी सम्पति जैसे टोटी,सोफा,फ्रिज,टीवी,गमले आदि समान उठा ले जाते हैं। सपा प्रमुख अखिलेष यादव की तो बाकायदा षिकायत तक हुई थी कि उन्होंन जब सीएम वाला सरकारी आवास खाली करा तो वहां से वह टोटी निकाल ले गये। लखनऊ में पीएम मोदी के राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल उद्घाटन कार्यक्रम के बाद गमलों की चोरी ने शहर की तहजीब पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वायरल वीडियो में लोग बेखौफ होकर सजावटी गमले उठा ले जाते दिखे। लेकिन यह समस्या आम जनता तक सीमित नहीं, बड़े नेता और अधिकारी भी सरकारी संपत्ति पर हाथ साफ करते पाए जाते हैं।

2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री आवास खाली किया। बीजेपी ने आरोप लगाया कि उन्होंने बाथरूम की टोटियां, टाइल्स और अन्य सामान निकाल लिया। अखिलेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो टोटियां लहराते हुए चुनौती दी कि साबित करें तो बदल देंगे। यह मामला राजनीतिक हथियार बना और सोशल मीडिया पर छाया रहा। बिहार में उपमुख्यमंत्री पद से हटने पर तेजस्वी यादव ने 5 देशरत्न मार्ग स्थित सरकारी बंगला खाली किया। बीजेपी ने दावा किया कि सोफा सेट, एसी, बेड, वॉश बेसिन, टोटियां, लाइट्स और जिम उपकरण गायब हैं। आरजेडी ने इन्वेंट्री जारी करने की मांग की, लेकिन विवाद बढ़ गया। सम्राट चौधरी को आवंटित बंगले का निरीक्षण कर बीजेपी ने चोरी का आरोप लगाया।

दिल्ली में आप के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के कार्यालय से 250 कुर्सियां, टीवी, साउंड सिस्टम, एसी, सोफा और दरवाजे गायब पाए गए। बीजेपी नेता रविंदर नेगी ने इसका खुलासा किया। बिहार में कांग्रेस विधायक मुरारी गौतम के सरकारी आवास से पंखा, कूलर और टोटियां चोरी हो गईं। ऐसे कई मामले सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग को उजागर करते हैं। कुल मिलाकर आम आदमी से लेकर उच्च पदस्थ नेता तक का यह रवैया लोकतंत्र की नींव हिला रहा है। सरकारी संपत्ति जनता की है, इसे निजी बनाने का चलन रोकना जरूरी। सख्त कानून और पारदर्शी हस्तांतरण प्रक्रिया ही समाधान है। ये घटनाएं समाज को आईना दिखाती हैं कि अवसरवादिता कहां तक फैल चुकी है।