स्वीकृत 92044 पद में 9248 पद खाली क्यों ?
प्रमोद शर्मा
दिल्ली हमेशा आतंकवादियों के निशाने पर होता है। लाल किला के पास का ताजा विस्फोट इसका ज्वलंत उदाहरण है। दिल्ली की छोटी-छोटी घटनाएं दूसरे देशों की सुखिर्यां होती है। सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली में हर दूसरे दिन विदेशी मेहमानों और राजनयिकों का आना जाना लगा रहता है। ऐसे में दिल्ली की करीब सबा दो करोड़ की आबादी की सुरक्षा संभालने वाली दिल्ली पुलिस में कर्मचारियों की कमी गले नहीं उतरती। केंद्र सरकार ने यहां की जनसंख्या के हिसाब से पुलिस बलों की स्वीकृत पद 92044 तय की है लेकिन इसमें 9248 पद खाली है। इसे भरे बिना क्या परेशानी सामने आ रही है यह पुलिस के अधिकारियों के सिवाए किसी को पता नहीं हो सकता। पदों का खाली होने से कानून व्यवस्था को मुस्तैद करने से लेकर अकस्मात आए संकट के समय भी मुश्किल भरा होता है। थाने से लेकर सब डिविजन और जिले के साथ विशेष ईकाई स्पेशल सेल, अपराध शाखा, हवाई अड्डा, नारकोटिक्स तक में पुलिस वालों की कमी है। वीवीआईपी मूवमेंट के समय पुलिस के हाथ पांव फूले रहते हैं कि कहीं कोई अप्रिय घटना न घट जाए। कभी कभी क्षेत्र के हिसाब से तैनात पुलिस वालों पर भी नजर रखने की कमी हो जाती है। भला ऐसे में दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगे तो कोइ अतिशयोक्ति नहीं कहा जा सकता।
दिल्ली पुलिस में सिपाही से लेकर उपायुक्त (डीसीपी) तक के 9248 पद खाली हैं। इनमें सबसे ज्यादा सिपाही, हवलदार, एएसआई और सब-इंस्पेक्टर के पद खाली है। दिल्ली पुलिस के पदों के हिसाब से (रैंकवार) कुल स्वीकृत पद 92,044 है। इस समय दस फीसदी से ज्यादा पद रिक्त हैं। राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद प्रकाश चिक बाराईक द्वारा पूछे सवाल के जवाब में यह जानकारी दी है। इसके बाद यह चर्चा पुलिस बलों में तेज हो गई है कि आखिर स्वीकृत पदों को भरने में सरकार देर क्यों कर रही है। इस कमी से आने वाली परेशानियों से दो चार हो रहे दिल्ली पुलिस के एक उपायुक्त ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि जब दस फीसद पद भरें जाएंगे तो हर थाने, जिले और अन्य यूनिट में संख्या बढ़ेगी और फिर तय मानकों के मुताबिक सुरक्षा व्यवस्था मुस्तैद रहेगी। उपायुक्त ने बताया कि दिल्ली में 15 जिले हैं और 200 थाने। अगर सिपाही, हवलदार, सहायक सब इंसपेक्टर, सहायक इंसपेक्टर, इंसपेक्टर, एसीपी के पदों को जिले और थाने के हिसाब से देखा जाए तो इस कमी को पूरा करने के बाद कई मामले में जिले के अधिकारी की मुश्किलें कम हो सकती है। यही नहीं ताजा आकड़े तो यह भी कह रही है कि यहां रसोइया के पदों पर भी भारी कमी बताई गयी है।
इस साल 30 नवंबर (2025) तक बताए गए आंकड़ों में दिल्ली पुलिस में सभी पदों पर (रैंक-वार) कुल स्वीकृत पदों की संख्या इस प्रकार है। पुलिस आयुक्त का एक, विशेष आयुक्तों के 11, संयुक्त आयुक्तों के 22, अतिरिक्त आयुक्तों के 20, उपायुक्त / अतिरिक्त उपायुक्तों के 60, अतिरिक्त उपायुक्त 54, सहायक पुलिस आयुक्तों के 346, इंस्पेक्टर के 1453, सब-इंस्पेक्टर के 8087, एएसआई के 7320, हवलदार के 23724, सिपाही के 50946 सहित कुल स्वीकृत पद 92044 है। जबकि इसके उलट इस समय जो आंकड़े हैं उसमें उपायुक्त / अतिरिक्त उपायुक्तों के 13, अतिरिक्त उपयुक्त (जेएजी) जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड 15, सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) के 125, इंस्पेक्टर के 108, सब-इंस्पेक्टर के 1039, एएसआई के 300, हवलदार के 3057 और सिपाही 4591 सहित कुल 9248 पद खाली है।
यही नहीं बल्कि सूचना के अधिकार के तहत कार्यकर्ता जीशान हैदर को यह भी जानकारी पुलिस से दी गई है कि इसके अलावा दिल्ली पुलिस में सिर्फ आला अधिकारियों और कनिष्ठों के पद ही खाली नहीं है। खाना बनाने वाले रसोइए की भी कमी का मामला सामने आया है। सूचना के अधिकारी के तहत मांगी गई एक आंकड़े के मुताबिक राजधानी के 83 थानों में रसोइये की कमी है। इससे पुलिसकर्मियों को भोजन सहित अन्य कई प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ता है। आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली पुलिस में रसोइयों के 839 पदों में 533 पर ही अभी रसोइये तैनात हैं। 306 रसोइयों के पद खाली पड़े हैं। कमी के कारण सिर्फ थाने में ड्यूट कर रहे पुलिसकर्मियों को ही परेशानी नहीं हो रही है बल्कि अन्य 83 यूनिटों में कमी की मार झेलने को पुलिस वाले लाचार हैं। दरअसल पुलिस वाले की ड्यूटी का कोई निर्धारित समय नहीं होता। नए साल के जश्न से लेकर वीवीआईपी मूवमेंट और फिर अन्य आयोजनों में समय से ज्यादा देर तक पुलिस वाले को रहना पड़ता है। बदले में वे जिस यूनिट में तैनात होते हैं वहां एक रसोइया उन्हें पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराता है ताकि उन्हें अपने घर के खाने की कमी न महसूस हो। लेकिन दिल्ली पुलिस में इस ओर अधिकारियों का ध्यान नहीं है। दिल्ली पुलिस में रसोईए, माली, दर्जी, हेल्पर और धोबी जैसे पदों पर एमटीएस (मल्टी टासकिंग स्टाफ) से भर्ती होती है। इन्हें भी बाजाप्ता स्वीकृत पद निकालकर (वैकेंसी) नियुक्त करती है। कई बार दूसरे थाने से विशेष परिस्थितियों में ड्यूट पर आए कर्मचारियों को भी भोजन उपलब्ध कराया जाता है। ऐसे में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई कार्यकर्ता जीशान हैदर को मिली जबाब में जो आंकड़े पुलिस की तरफ से उपलब्ध कराए गए वह चौंकाने वाले है। पिछले दा सालों से इन पदों पर नियुक्ति नहीं हुई है। इस दौरान कुछ रिटायर भी हुए लेकिन नई भर्ती की तरफ कोई सकारात्मक ध्यान नहीं दिख रहा।
दिल्ली पुलिस महासंघ के अध्यक्ष रिटायर एसीपी वेदभूषण कहते हैं कि केद्रीय गृह और वित्त मंत्रालय को इस कमी को तुरंत भरने के लिए विचार करनी चाहिए। नियुक्ति से लेकर प्रशिक्षण, वेतन, भत्ते, पेंशन, स्वास्थ्य सुविधा और आवास सहित अन्य सभी मूलभूत चीजों को तय करने की जिम्मेवारी इन्हीं दोनों विभागों के उपर है। कमी के आंकड़ों से यह तय है कि राजधानी की कानून व्यवस्था, सुरक्षा, सर्तकता, हवाई अड्डे, पड़ोसी राज्यों की सीमा से लेकर वीवीआईपी मूवमेट में पुलिस वालों की कमी होना स्वाभाविक है। आखिर सरकार स्वीकृत पद तय करने के समय हर चीजों को गंभीरता से देखती है। होना तो यह चाहिए कि यहां ज्यादा नियुक्त कर विशेष अवसरों और अकस्मात आए मुसीबतों पर तुरंत भेजने की व्यवस्था रहे।
दिल्ली पुलिस रिटायर्ड अराजपत्रित अधिकारी एसोसिएशन के अध्यक्ष छिद्दा सिंह रावत का कहना है कि पुलिस वालों में काम के प्रति तनाव जग जाहिर है। तय समय से ज्यादा काम करने के बाद भी उनके साथ सरकार का रैवैया सहानुभूति जनक नहीं रहता है। इसका असर उसके काम पर और स्वास्थ्य पर पड़ता है. दिल्ली में पुलिस की कमी और संसद में यह मामला गृह मंत्रालय का स्वीकारना बहुत ही दुखद है। इसके साथ ही थाने में रसोईया की कमी पर रावत का कहना है कि आखिर पुलिस वाले 24 घंटे काम करेंगे तो फिर खाना खाने के लिए कहां जाएंगे ? इसलिए सरकार को तुरंत पुलिस सुधार विधेयक संसद में लाना चाहिए और पुलिस वालों के लिए दूसरे राज्यों की तरह सभी सुविधाएं मिलनी चाहिए। छिद्दा सिंह रावत का कहना है कि हमने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में भी अर्जी लगाई है जिस पर बहुत जल्दी फैसला आने वाला है। केंद्र सरकार को इस बाबत अपने स्तर से संज्ञान लेना चाहिए और पुलिस वालों की समस्या पर ध्यान देना चाहिए।
दिल्ली पुलिस में रसोईया (एमटीएस स्टाफ ) की कमी के बारे में दिल्ली पुलिस महासंघ के अध्यक्ष व एसीपी रहे वेदभूषण कहते हैं कि यह दुर्भाग्य है कि जो पुलिस वाले सबसे ज्यादा काम करते हैं उनकी तरफ ही सरकार का सरकार का ध्यान नहीं है। वेदभूषण कहते हैं कि दिल्ली पुलिस के तत्कालीन आयुक्त वाईएस डडवाल ने एक बार निर्देश जारी कर शाम तक आला अधिकारियों के यहां क्षमता से ज्यादा कर्मचारियों को तुरंत वापस बुला लिया था। दिल्ली पुलिस में एमटीएस रसोईया ही नहीं अन्य कर्मियों को भी उपायुक्त से लेकर संयुक्त और विशेष आयुक्त के घर और दफ्तर में इधर उधर घूमते देखा जा सकता है। इन आला अधिकारियों के यहां सभी प्रकार के पुलिस वाले क्षमता से ज्यादा तैनात हैं। इनमें रसोइए से लेकर निजी सहायक, माली, धोबी और गाड़ी के चालक तक शामिल है। यहां तक कि रिटायर अधिकारी भी सालों इस प्रकार के कर्मचारियों को अपने घर में काम करवाते हैं। तत्कालीन आयुक्त डडवाल ने कड़ा आदेश जारी कर अधिकारियों के यहां बैठे- ठाले समय काट रहे और मोटी तनख्वाह लेने वाले पुलिसकर्मियों को शाम तक बुलाकर हड़कंप मचा दिया था।





