मनीषा मंजरी
बीते साल के आख़री पड़ाव को लांघ कर जब हम नए साल में प्रवेश करते हैं, तो नया साल हमारे समक्ष उम्मीदों की नयी डायरी खोल कर बैठता है। जैसे हीं घड़ी सुइयां रात के बारह बजाती हैं, हम बीते साल की थकान, असफलताओं और अधूरे सपनों को पीछे छोड़ देने का संकल्प ले लेते हैं। मन में एक दृढ़ विश्वास जन्म लेता है कि यह साल, बीते साल से बेहतर और अलग होगा। हम कई तरह के संकल्प लेते हैं, और अंश में होता है, खुद को सुधारना, जीवन को नई दिशा देना, और अपने भीतर छिपी संभावनाओं को पहचानने का एक प्रयास।
संकल्पों का उत्सव : शुरुआती जोश
साल के शुरआती दिनों में हमारा संकल्प, उत्साह की चरम सीमा पर होता है। ठिठुराती ठण्ड भी इस जोश को कम नहीं होने देती। ना सुबह जल्दी उठना हीं कठिन लगता है, ना हीं नियमित व्यायाम परेशान करती है, नयी आदतें सहज सी लगने लगती हैं, और अपने अन्य लक्ष्यों के पीछे भी हम तीव्र गति से भागते हैं। हम अपने स्वास्थ्य, करियर, रिश्तों और आत्म-विकास से जुड़े संकल्प पूरे विश्वास के साथ अपनाते हैं। सोशल मीडिया पर स्क्रोल करते प्रेरक पोस्ट और लक्ष्य सूची इस उत्साह को और बढ़ा देती हैं। और लगता है जैसे इस बार बदलाव निश्चित है।
जब उत्साह धीमा पड़ने लगता है:
लेकिन बढ़ते समय वास्तविकता अपने धरातल को छूती है। रोजमर्रा की जिम्मेवारियां, काम का दवाब, मानसिक व शारीरिक थकान और साथ हीं वो पुरानी आदतें फिर से अपनी जगह बनाने लगती हैं। दस से बीस दिन नहीं होते कि हममें से कई लोग संकल्पों से समझौते करने लगते हैं। इसे हम असफलता नहीं, बल्कि मानवीय स्वभाव का हिस्सा कह सकते हैं। समस्या लिए गए संकल्पों में नहीं होती, बल्कि उन्हें निभाने की रणनीति में होती है।
बड़े लक्ष्य, छोटी हिम्मत:
अक्सर हम नए साल के उत्साह से वशीभूत होकर बहुत बड़े और कठोर लक्ष्य तय कर लेते हैं। अचानक से उस जीवन शैली को बदलने की कोशिश करते हैं, जिसे हम सालों से बंधे बैठे हैं। ऐसी परिस्थिति में जब अपेक्षाएँ हकीकत से टकराती हैं, तो निराशा जन्म लेती है। जिसके परिणामस्वरूप उत्साह धीरे-धीरे खत्म हो जाता है और हम खुद को दोषी की तरह देखने लगते हैं।
निरंतरता का महत्व:
कोई भी परिवर्तन एक दिन में सींची धरा का परिणाम नहीं होता। वास्तविक परिवर्तन के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक है। छोटे-छोटे कदम, रोज़ की मामूली कोशिशें और स्वयं के प्रति धैर्य, यही सब संकल्पों को जीवित रखते हैं। यदि कोई दिन लक्ष्य से चूक भी जाए, तो उसे अंत मान लेने के बजाय अगले दिन फिर से शुरुआत करना ही सफलता के शिखर की दिशा में ले जाता है।
आत्म-संवाद और आत्म-स्वीकृति:
नए साल के संकल्प सिर्फ एक बाह्य गतिविधि नहीं, ये सिर्फ बाहरी बदलाव से संभव नहीं है अपितु ये आंतरिक संवाद का भी हिस्सा होते हैं। स्वयं से ईमानदारी, अपनी सीमाओं की स्वीकृति और आत्म-करुणा हमारे संकल्पों को मजबूत बनाती है। जब हम खुद को अच्छे से समझते हैं, तब ये संकल्प बोझ नहीं, बल्कि आत्म-विकास का माध्यम बन जाते हैं।
तारीख़ से आगे की सोच:
ये समझना आवश्यक है कि बदलाव किसी तारीख का मोहताज नहीं होता। नया साल हमें सिर्फ़ यह याद दिलाता है कि शुरुआत कभी भी की जा सकती है। संकल्प तभी सार्थक होते हैं, जब हम उन्हें साल भर निभाने का साहस रखते हैं, न कि सिर्फ़ जनवरी या फरवरी तक।
संकल्प नहीं, संकल्प की यात्रा:
नए साल के ये नए संकल्प कोई परफेक्ट बनने का वादा नहीं है, बल्कि बेहतर बनने की एक नित्य प्रक्रिया है। अगर कभी संकल्प गिर जाए, तो उसे फिर से उठाना ही असली जीत है। उत्साह क्षणिक हो सकता है, लेकिन निरंतरता हीं स्थायी परिवर्तन की नींव रखती है। नया साल हमें खुद पर विश्वास रखना सिखाता है और साथ हीं ये संदेश देता है कि कोशिशें कभी बंद नहीं होनी चाहिए।





