दिलीप कुमार पाठक
आज के राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस न केवल बिखरी हुई है, बल्कि वह अपने अस्तित्व के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। जब पीएम मोदी ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा बुलंद करते हैं, तो विरोधी दल और राजनीतिक विश्लेषक भी इस बात को पूरी तरह खारिज नहीं कर पाते, क्योंकि चुनावी आंकड़ों में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरा है। यह कहना कि कांग्रेस पूरी तरह खत्म हो गई है, जल्दबाजी होगी, लेकिन यह कड़वा सच है कि वह अब वैसी मजबूत शक्ति नहीं रह गई है जैसा उसका गौरवशाली इतिहास रहा है। आज पार्टी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर बेहद कमजोर स्थिति में है। राजनीति के मौजूदा वातावरण में यह स्पष्ट है कि कांग्रेस के पुनरुद्धार के लिए केवल सतही सुधार काफी नहीं हैं। इसके लिए संगठन की जमीनी संरचना से लेकर शीर्ष नेतृत्व के विजन तक, दोनों ही स्तरों पर व्यापक, साहसिक और आमूल-चूल परिवर्तनों की आवश्यकता है, जिसकी चर्चा आज गलियारों से लेकर जनमानस तक में निरंतर होती रहती है।
कांग्रेस पार्टी के इतिहास और वर्तमान को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि पार्टी बाहरी चुनौतियों से ज्यादा अंदरूनी कलह और आपसी मतभेदों के कारण टूटी और बिखरी है। राजनीति में वैचारिक मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन कांग्रेस में यह मतभेद अक्सर व्यक्तिगत गुटबाजी का रूप ले लेते हैं, जिससे पार्टी की एकजुटता को भारी क्षति पहुँचती है। इस तरह के आंतरिक संघर्षों का सार्वजनिक होना पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाता है और मतदाताओं के बीच अविश्वास पैदा कर सकता है। कांग्रेस के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे आंतरिक मतभेदों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करें और सामूहिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें ताकि वे एकजुट होकर काम कर सकें।
इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी ने कांग्रेस को पुनर्जीवित करने और आगे बढ़ाने के लिए अपनी पूरी क्षमता के साथ अपना सर्वोत्तम योगदान दिया है। भारत जोड़ो यात्रा जैसे अभियानों के माध्यम से उन्होंने न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरा, बल्कि जनता के बीच सीधे पहुँच बनाकर खुद को एक ‘जन नायक’ के रूप में भी स्थापित किया है। राहुल गांधी का संघर्ष और उनकी दृढ़ता कई मौकों पर पार्टी के लिए संबल बनी है। परंतु, राजनीति निरंतर परिवर्तन की मांग करती है। आज समय की पुकार है कि मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेता, जिन्होंने संकट के समय पार्टी की कमान संभाली, उन्हें अब पूरे मान-सम्मान के साथ पद से विदा कर संगठन में नई ऊर्जा का संचार किया जाए। कांग्रेस के लिए अब केवल चेहरों का बदलाव पर्याप्त नहीं है; उसे अपने सांगठनिक ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे। पार्टी को अब कागजी रणनीतियों से बाहर निकलकर ‘बूथ स्तर’ पर अपने तंत्र को सबसे अधिक मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। जब तक ग्रासरूट स्तर पर कार्यकर्ता सक्रिय और सशक्त नहीं होगा, तब तक राष्ट्रीय स्तर पर पुनरुद्धार की कल्पना करना कठिन है। कांग्रेस को अब नए नेतृत्व, आधुनिक रणनीति और सशक्त बूथ प्रबंधन के साथ अपनी अगली राजनीतिक पारी की शुरुआत करनी चाहिए।
अब यह अनिवार्य हो गया है कि कांग्रेस पार्टी अपने पुराने ढर्रे को छोड़कर नई पीढ़ी के नेताओं को निर्णायक शक्ति सौंपे। सीनियर नेताओं के अनुभव का सम्मान अपनी जगह है, लेकिन अब समय की मांग है कि युवा नेतृत्व को अग्रिम पंक्ति में लाया जाए। जब ऊर्जावान और नए चेहरे सामने आएंगे, तभी मैदान पर वह ‘नई शक्ति’ दिखाई देगी जो सोशल मीडिया की सक्रियता से लेकर ज़मीनी स्तर पर बूथ मैनेजमेंट को आधुनिक और चुस्त-दुरुस्त बना सके। विशेष रूप से, पिछले कुछ वर्षों में प्रियंका गांधी ने जिस प्रकार की राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया है, वह काबिले तारीफ है। वे न केवल कांग्रेस की मूल विचारधारा को प्रखरता से जनता के सामने रखती हैं, बल्कि कार्यकर्ताओं के साथ उनका सहज जुड़ाव और संवाद करने की शैली अद्भुत है। पक्ष और विपक्ष, दोनों के बीच अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखने की उनकी कला उन्हें एक अत्यंत लोकप्रिय राजनेता के रूप में स्थापित करती है। प्रियंका गांधी के व्यक्तित्व में उनकी दादी (इंदिरा गांधी) का अक्स और उनकी माँ सोनिया गांधी का धैर्य दिखाई देता है, जो पार्टी को पुनः मुख्यधारा में लाने की क्षमता रखता है।
अब वह निर्णायक समय आ गया है जब सोनिया गांधी, गहलोत, और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे दिग्गज नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका अपना लेनी चाहिए और पार्टी की सीधी बागडोर प्रियंका गांधी के हाथों में सौंप देनी चाहिए। उनके नेतृत्व में एक ऐसी टीम का गठन हो जो तकनीक और जमीन दोनों पर मजबूत पकड़ रखती हो। कांग्रेस को इस विषय पर बहुत जल्द और गंभीरता से विचार कर इसे अमल में लाना होगा, क्योंकि राजनीति की दौड़ में ठहराव का मतलब पिछड़ जाना है। यदि अब भी साहसिक निर्णय नहीं लिए गए, तो पुनरुद्धार की रही-सही गुंजाइश भी समाप्त हो जाएगी और बहुत देर हो जाएगी।





