पारिवारिक परंपरा को बोझ नहीं, वैश्विक समाधान समझें

Consider family tradition a global solution, not a burden

ललित गर्ग

वैश्विक परिवार दिवस, शान्ति और साझेदारी का एक दिन, संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिवर्ष 1 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी समारोह, ‘शान्ति में एक दिन’ से विकसित हुआ। समग्र विश्व एक वैश्विक ग्राम है और हम सभी इस बृहत्-परिवार का हिस्सा हैं। भारत ने तो वसुधैव कुटुम्बकम् का उद्घोष करते हुए समूची दुनिया को एक परिवार ही माना है। वैसे भारत की परिवार परम्परा दुनिया के लिये अनुकरणीय है। हम सभी एक परिवार हैं, चाहे हमारी नागरिकता, धर्म, जाति, सीमाएं या नस्ल कुछ भी हो। समग्र मानव जाति को एक साथ आना चाहिए और प्रेम और शान्ति में विश्वास करना चाहिए और विश्व में सुख और आशा लाने हेतु इसका अभ्यास करना चाहिए। संसार संघर्षों, युद्धों, उपद्रवों, कष्ट और पीड़ा से भरा पड़ा है। यदि हम सभी एक साथ आएं और दुनिया को प्रेम और धैर्य से ठीक करें, तो हम सभी खुशी से और अपने हृदयों में आशा के साथ रह सकते हैं। वैश्विक परिवार दिवस विविधता एवं एकता और विश्व शान्ति और अहिंसा महत्त्व के बारे में जागरूकता लाता है।

इस दिवस की शुरुआत 1997 में हुई जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नव सहस्राब्दी के पहले दिन से विश्व के बच्चों के लिए शांति और अहिंसा की संस्कृति के अंतर्राष्ट्रीय दशक की शुरुआत की। लिंडा ग्रोवर ने अमेरिका में इसे बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे बढ़ावा देने के अन्य प्रयासों में ‘वन डे इन पीस – जनवरी 1, 2000’ जैसी पुस्तकें शामिल थीं। यह पुस्तक भविष्य में एक ऐसे दिन की अवधारणा पर आधारित थी जहाँ केवल शांति हो और कोई युद्ध न हो। हालांकि, यह एक नए शांतिपूर्ण विश्व की शुरुआत मात्र थी और 1999 में, संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को उस वर्ष के पहले दिन को शांति निर्माण की रणनीतियों को विकसित करने के लिए समर्पित करने का निमंत्रण मिला। इस दिन के सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2001 में वैश्विक परिवार दिवस को वार्षिक आयोजन घोषित कर दिया।

प्रत्येक वर्ष परिवार की भूमिका, उसकी बदलती संरचना और सामाजिक प्रासंगिकता पर विचार करने का अवसर देने वाला वैश्विक परिवार दिवस आज के समय में केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं रह गया है, बल्कि वह आधुनिक समाज की सबसे गहरी विडंबनाओं और चुनौतियों को उजागर करने वाला एक चिंतन-दिवस बन गया है। परिवार मानव जीवन की वह मूल इकाई है, जहाँ व्यक्ति का भावनात्मक, नैतिक और सामाजिक निर्माण होता है। भारतीय संदर्भ में परिवार केवल रक्त-संबंधों का समूह नहीं रहा, बल्कि वह संस्कारों की पाठशाला, शांति, सहयोग एवं सौहार्द की प्रयोगभूमि और जीवन-मूल्यों का आधार रहा है। इसी परिवार-परंपरा ने भारत को सदियों तक सामाजिक स्थिरता, अहिंसा, सहिष्णुता और मानवीय करुणा का देश बनाए रखा। आज विडंबना यह है कि जिस भारतीय परिवार व्यवस्था को दुनिया एक आदर्श मॉडल के रूप में देख रही है, उसी भारत में वह धीरे-धीरे उपेक्षा और विस्मृति का शिकार होती जा रही है।

वैश्वीकरण, शहरीकरण, प्रतिस्पर्धा और उपभोक्तावादी जीवनशैली ने परिवार को सुविधा-केंद्रित इकाई में बदल दिया है। संयुक्त परिवारों का विघटन, एकल परिवारों का बढ़ना और रिश्तों में औपचारिकता का प्रवेश इस परिवर्तन की स्पष्ट पहचान है। माता-पिता दोनों के कार्यरत होने की स्थिति में बच्चों के साथ समय बिताना एक चुनौती बन गया है। परिणामस्वरूप बचपन, जो कभी परिवार के स्नेह, संवाद और अनुभवों से संवरता था, आज स्क्रीन, अकेलेपन और भावनात्मक रिक्तता के बीच पनप रहा है। बच्चों के जीवन में माता-पिता की अनुपस्थिति केवल समय की कमी नहीं है, बल्कि वह सुरक्षा, संवाद और मार्गदर्शन की कमी भी है। परिवार का वह सहज वातावरण, जहाँ प्रश्न पूछे जा सकते थे, गलतियाँ स्वीकार की जा सकती थीं और भावनाएँ साझा की जा सकती थीं, आज धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है।

बुजुर्ग, जो कभी परिवार की धुरी हुआ करते थे, अनुभव और संस्कार के संवाहक थे, आज कई घरों में हाशिये पर खड़े दिखाई देते हैं। उनके पास समय नहीं, धैर्य नहीं और कभी-कभी सम्मान भी नहीं बचा। यह स्थिति केवल पीढ़ियों के बीच दूरी नहीं बढ़ा रही, बल्कि समाज को उसके नैतिक आधार से भी वंचित कर रही है।

दूसरी ओर, यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि वैश्विक स्तर पर आज परिवार की भूमिका को नए सिरे से समझा जा रहा है। पश्चिमी देशों में, जहाँ अत्यधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता ने सामाजिक अकेलेपन को जन्म दिया, अब परिवार, साझेदारी और सामूहिक जीवन की पुनर्स्थापना पर गंभीर विमर्श हो रहा है। इसी क्रम में वैश्विक परिवार दिवस को केवल परिवार के रूप में नहीं, बल्कि शांति, सहयोग और साझेदारी के प्रतीक के रूप में भी देखा जाने लगा है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में इस दिवस को शांति और साझेदारी के वैश्विक दिवस के रूप में भी परिवार और मानवीय संबंधों के महत्व को रेखांकित किया जाता है। यह संकेत देता है कि परिवार केवल निजी जीवन की इकाई नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और सामाजिक संतुलन की आधारशिला भी है।

दुनिया भर में संस्कृतियाँ और धर्म अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि पूरी मानव जाति एक बड़ा परिवार है जो एकजुट होकर ही जीवित रह सकती है। इस वर्ष वैश्विक परिवार दिवस की थीम “परिवार, शिक्षा और कल्याणः आज और भविष्य” इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि परिवार की भूमिका केवल बच्चों को पालने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह शिक्षा का पहला केंद्र और कल्याण का स्थायी आधार है।

वैश्विक परिवार दिवस की प्रासंगिकता इसी बिंदु पर सबसे अधिक उभरकर सामने आती है कि परिवार केवल रहने की व्यवस्था नहीं, बल्कि जीने की संस्कृति है। परिवार में बिताया गया समय निवेश है, व्यय नहीं। बच्चों के साथ संवाद, बुजुर्गों के साथ सहभागिता और रिश्तों के बीच संवेदनशीलता समाज के दीर्घकालिक स्वास्थ्य की गारंटी है। यदि आज परिवार टूट रहे हैं, तो उसका प्रभाव केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वह सामाजिक असंतुलन, मानसिक तनाव और मूल्यहीनता के रूप में व्यापक रूप से सामने आएगा। इस संदर्भ में आवश्यक है कि हम परिवार को नए दृष्टिकोण से देखें। आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। कार्य और परिवार के बीच प्राथमिकताओं का पुनर्निर्धारण हो। डिजिटल सुविधाओं के साथ मानवीय संवाद को भी उतना ही महत्व दिया जाए। बच्चों के लिए समय निकालना दायित्व नहीं, बल्कि भविष्य के समाज में निवेश के रूप में समझा जाए। बुजुर्गों को केवल सहारा नहीं, बल्कि मार्गदर्शक के रूप में पुनः स्वीकार किया जाए।

वैश्विक परिवार दिवस और शांति व साझेदारी का वैश्विक संदेश हमें यह सिखाता है कि परिवार जितना सशक्त होगा, समाज उतना ही शांत और सहयोगी बनेगा। परिवारों में संवाद होगा तो समाज में टकराव कम होंगे। परिवारों में साझेदारी होगी तो राष्ट्रों के बीच भी सहयोग की भावना मजबूत होगी। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत अपनी पारिवारिक परंपरा को बोझ नहीं, बल्कि वैश्विक समाधान के रूप में देखे। अंततः वैश्विक परिवार दिवस हमें आत्ममंथन का अवसर देता है। यदि परिवार सशक्त हुए तो शांति, साझेदारी और मानवीय मूल्यों का भविष्य सुरक्षित रहेगा। भारतीय परिवार परंपरा आज भी प्रासंगिक है, आवश्यक है कि हम उसे समयानुकूल रूप देते हुए अपने जीवन के केंद्र में पुनः स्थापित करें, क्योंकि मजबूत परिवार ही मजबूत समाज और शांत विश्व की आधारशिला होते हैं।