अतुल सचदेवा
नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में ‘ज़रा याद करो क़ुर्बानी’ नाम से मंगलवार को एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह और ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के कार्यक्रमों की शृंखला के तहत विश्वविद्यालय के वाइस रीगल लॉज के कन्वेंशन हॉल में किया गया। कवि सम्मेलन में मुख्यातिथि के तौर पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल पहुंचे जबकि सम्मेलन की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह द्वारा की गई। कवि सम्मेलन में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से खूब राष्ट्रप्रेम के रंग बिखेरे।
कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि भारत अब तेजी से आगे बढ़ रहा है। अब उसे संभालने वाले लोग चाहियें और उस संभाल के लिए संस्कार व देश से प्यार होना जरूरी है; इसीलिए इस कवि सम्मेलन को ‘ज़रा याद करो क क़ुर्बानी’ का नाम दिया गया है। उन्होने “हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के” पंक्तियों के माध्यम से देश के विकास की यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि ये कश्ती अब जहाज बन गई है और आगे और भी बड़ा जहाज बनेगी; लेकिन बड़े देश खतरे में ज्यादा आ जाते हैं, इसलिए उन्हें संभालने वाले मजबूत हाथों की जरूरत होती है। उन्होने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय सदा से राष्ट्र सेवा में अपनी अग्रणी भूमिका निभाता रहा है और जैसे देश को जरूरत होगी उसके अनुरूप ये विश्वविद्यालय आगे भी खरा उतरेगा।
समारोह के मुख्यातिथि राष्ट्रीय कवि सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल ने कवि सम्मेलन में आए कवियों का परिचय करवाया। उन्होने कहा कि आज हम सब यहाँ पर उन शहीदों का स्मरण कर रहे हैं जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपनी भूमिका निभाई। उन्होने कहा कि अगर किसी से पूछा जाए कि उन क्रांतिकारियों के नाम गिनवाएँ जिन्होंने देश को आजादी दिलवाई तो कुछ ही नामों की चर्चा कर पाएंगे; लेकिन इस देश को आजादी दिलवाने के लिए लाखों लोग शहीद हुए हैं, तब जाकर हमको आजादी मिली। उन्होने डीयू में भगत सिंह से संबंधित कोठरी का जिक्र करते हुए कहा कि कोशिश कीजिये कि उनके जो सपने रहे होंगे, उन्हें हम पूरा करें। उन्होने भारत के विभाजन को लेकर बड़ी बात करते हुए कहा कि हम कोशिश करेंगे कि जो टुकड़े हुए हैं उन्हें दुबारा से इक्कट्ठा करने का काम करें, तभी हमारा जीवन सार्थक होगा। उन्होने भगत सिंह द्वारा जेल में भी किताबें पढ़ने और नोट्स बनाने का जिक्र करते हुए विद्यार्थियों से आह्वान किया कि आप पढ़ाई भी अच्छे से करें, लेकिन देश के प्रति अपने कर्तव्य को कभी न भूलें। उन्होने काव्य पंक्तियों “उम्र छोटी है मगर मुकाम बड़ा हो, तुझ से ज्यादा तेरा नाम बड़ा हो” के माध्यम से युवाओं को गहरा संदेश दिया।
इस अवसर पर डॉ. हरिओम पंवार, गजेंद्र सोलंकी, डॉ सुदीप भोला, डॉ अशोक बत्रा, पी. के. आज़ाद, यश कंसल, कल्पना शुक्ला व डॉ रुचि चतुर्वेदी आदि कवियों ने अपने-अपने अंदाज से आजादी के अमृत महोत्सव में अपनी आहुती डाली। राष्ट्रीय कवि संगम के संरक्षक एवं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि डा. हरिओम पंवार ने संविधान की पीड़ा को अपने शब्दों में कुछ इस तरह से ब्यान किया:
मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ,
मेरा अन्तर्मन घायल है, दिल की गांठें खोल रहा हूँ।
मैं जब से आजाद हुआ हूँ, अपनों से बर्बाद हुआ हूँ,
मैं ऊपर से हरा भरा हूँ, संसद में सौ बार मरा हूँ॥
जाने माने कवि पी. के. आज़ाद ने राष्ट्र भक्ति से ओतप्रोत अपनी कविता के माध्यम से राष्ट्र के प्रति अपने सपनों का व्याख्यान कुछ यूं किया:
वतन में अमन कायम हो, कहीं पर भी न दंगा हो,
हर एक भूखे को रोटी हो, हर एक प्यासे को गंगा हो,
जीऊँ मैं देश की ख़ातिर मेरे दिल की तमन्ना है,
सफर जब आखिरी हो तो कफ़न मेरा तिरंगा हो।
कवि यश कंसल ने अपनी कलम के माध्यम से वीरों को नमन करते हुए कुछ इस तरह से शहीदों का सम्मान किया:
ऐं लेखनी तू कर नमन उन वीर, धीरों को सभी
जिनकी वजह से आज हम स्वतंत्र जीते है अभी,
जो शीश अर्पण कर गए थे राष्ट्र के सम्मान में
जिनके लहू का है ऋणी हर व्यक्ति हिन्दुस्तान में।
कवित्री कल्पना शुक्ला ने देश में बेटियों के योगदान को अपनी कविता के माध्यम से बारीकी से उजागर किया। उन्होने देश से निकल कर विदेशों तक भारत की बेटियों द्वारा देश का नाम रोशन करने पर राष्ट्र को गौरवान्वित करते हुए कहा:
बेटियों को कम आंकते हो हम बेटियों ने हिमवान छुआ है,
गीता, कुरान, पुराण छुआ है तो तीर, कमान, कृपाण छुआ है ।।
जल में, थल में और अम्बर में अरे कोई बताओ कहाँ न छुआ है,
हिन्दुस्तान की बात नहीं हमने यह विश्व महान छुआ है॥
डा. अशोक बत्रा, सोनीपत ने अपनी कविता को कुछ इस अंदाज में पेश किया:
देश की आवाज़ है कविता मेरी, दुश्मनों पर गाज़ है कविता मेरी।
जो परिंदे जाल बुनते हैं वतन में, उनकी खातिर बाज है कविता मेरी॥
उधर कवि गजेन्द्र सोलंकी ने लोकतन्त्र की गरिमा का गुणगान करते हुए आजादी के अमृत महोत्सव की मंगल कामनाएं कुछ इस तरह से दी:
अपने प्यारे लोकतन्त्र की गरिमा का गुणगान रहे,
भारत की पावन संस्कृति और परम्परा का ध्यान रहे।
गर्मी, सर्दी, बरसातों ने मेहनत से इतिहास लिखा,
आजादी की अमृत बेला का मन में सम्मान रहे।
जबलपुर से आए कवि सुदीप भोला ने ‘हर घर तिरंगा’ को मूल में लेकर अपनी कविता कुछ इस तरह से प्रस्तुत की:
तिरंगा लहर लहर लहराये,
घर घर अमर तिरंगा हर भारतवासी फहराए,
आजादी का अमृत उत्सव ऐसे ही नहीं आया,
कितना गरल पिया होगा तब जाकर अमृत पाया।
कवित्री रुचि चतुर्वेदी ने एक सैनिक की वीरांगना पत्नी की उद्गारों को कुछ इस तरह पेश किया:
लाल महावर लगे मेरे इन पाँवों की चिंता मत करना,
सीमा पर जागे रहना तुम गाँव की चिंता मत करना।
ठिठुरन हो या कड़ी धूप हो छांव की चिंता मत करना,
लगे युद्ध में चोट अगर तो घाव की चिंता मत करना॥
कवि सम्मेलन के अंत में डीयू रजिस्ट्रार डॉ विकास गुप्ता ने आए हुए सभी अतिथियों का आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी, डीयू साउथ दिल्ली कैंपस के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. के रत्नाबली, शताब्दी समारोह समिति की कनवीनर प्रो. नीरा अग्निमित्र, डीयू पीआरओ अनूप लाठर और शताब्दी समारोह समिति की कोर्डिनेंटर डॉ. दीप्ति तनेजा सहित अनेकों लोग उपस्थित थे।