भारत जोड़ों से पहले कांग्रेस को पार्टी जोड़ों आंदोलन की जरूरत

सुशील दीक्षित विचित्र

एक ओर राहुल गांधी भारत जोड़ो का आंदोलन शुरू करने वाले है दूसरी ओर उनकी पार्टी बिखरती जा रही है | पायेदार नेता एक -एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं | कांग्रेस की जमीन रोज घटती जा रही है लेकिन न राहुल गांधी के कान पर जूं रेंग रही हैं और न उनके दरबारी उन तक कान पर रेंगने वाली जूं पहुँचने दे रहे हैं | जिसने पार्टी छोड़ी उसे गांधी परिवार और उसके समर्थकों ने भाजपा एजेंट बताने में देर नहीं की | जब जरूरत पार्टी के पराभव के कारणों और नेतृत्व की कमियों की समीक्षा करने की है तब कांग्रेसी अपने गिरते स्तम्भों के पीछे मोदी और भाजपा तलाश लेते हैं | गुलाम नबी आजाद ने जैसे ही त्यागपत्र दिया , कांग्रेस की एक कोर टीम उन पर झपट पडी | अशोक गहलोत ने तो उनका भाजपाई डीएनए ही तलाश कर लिया |

गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ते समय अपने पत्र में साफ़ लिखा कि राहुल गांधी ने उपाध्यक्ष बनने के बाद चापलूसों का ग्रुप बन लिया | वही पार्टी चला रहा है | कुछ ऐसा ही आरोप असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा ने भी कई वर्षों पहले कांग्रेस छोड़ते समय अपने पत्र में लगाया था और यहीं आरोप कुछ दिन पहले कांग्रेस छोड़ने वाले जयवीर शेरगिल ने भी लगाया था | ऐसी ही उपेक्षा का आरोप कभी ज्योतिरानंद सिंधिया और जितिन प्रसाद ने भी लगाया था और कुछ महीने पहले कांग्रेस छोड़ने वाले कांग्रेस के पुराने नेता आर पी एन सिंह ने भी लगाया था | पार्टी छोड़ने वाले हर नेता का एक ही दर्द था कि राहुल को घेरे रहने वाला काकश उनकी आवाज हाई कमान तक पहुँचने ही नहीं देता | इसीलिये आजाद को भी कहना पड़ा कि राहुल गांधी अपरिपक्व नेता हैं और अनुभवहीन सनकी कोर ग्रुप से घिरे हैं | पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के आरोपों से राहुल एन्ड कम्पनी भले ही असहमत हो लेकिन विगत आठ वर्षों का इतिहास बताता है कि कैसे पार्टी के निष्ठावान नेता पार्टी से किनारा करते चले गए |

इसका नतीजा कांग्रेस के लिए बहुत खराब निकला | जो नेता पार्टी से किनारा करते गए वे अपने क्षेत्र में कांग्रेस को भी किनारे करते गए | हेमंत विस्वा ने पूर्वोत्तर भारत में कांग्रेस को किनारे लगा कर भाजपा को स्थापित कर दिया | आंध्र प्रदेश से कांग्रेस के ही जगन रेड्डी ने पार्टी छोड़[कर नयी पार्टी बनायी और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया | पश्चिम बंगाल से कांग्रेस बाहर हो चुकी है |

ज्योतिरानंद सिंधिया मध्य प्रदेश में पार्टी की जड़े खोदेंगे और अब गुलाम नबी आजाद कश्मीर में कांग्रेस के बचे खुचे जनाधार को खुरच डालेंगे | उत्तर भारत कभी कांग्रेस का आधार क्षेत्र होती थी | यह उसका गढ़ था जो हमेशा संजीवनी देता रहा | चुनाव में दुर्गति को प्राप्त होने का एक कारण यह भी है कि राहुल गांधी ने पायेदार नेताओं की सीख को दरकिनार किया | उन्हें सीख दी गयी थी कि वे मोदी पर व्यक्तिगत हमले मत करें लेकिन राहुल गांधी इसी लाइन पर बढ़ते रहे हुए हारते रहे | इन पराजयों से उत्तर भारत की लाइफ लाइन कांग्रेस से पूरी तरह या तो कट गयी है या बस कटने ही वाली है | इस सबके लिए अगर पूरी कांग्रेस में कोई जिम्मेदार है तो वे हैं राहुल गांधी | यह किसी और का नहीं बल्कि कांग्रेस के लोगों का ही कहना है | राहुल के नेतृत्व में आठ वर्षों में कांग्रेस दो लोकसभा चुनाव और दर्जनों विधानसभा चुनाव हार चुकी है |

पिछले आठ वर्षों में तो जैसे कांग्रेस छोड़ो आंदोलन ही चल पड़ा हो | 2016 से 2020 के बीच 170 विधायक पार्टी छोड़ गए | कांग्रेसी और मीडिया का एक हिस्सा यह प्रचारित कर रहा था कि प्रियंका गांधी के आने से हालात बदलेंगे | जनवरी 2019 में प्रियंका गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बनी और बहुत जोर शोर से सक्रिय हुईं लेकिन उसक कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला | 2019 से अब तक 23 बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ी | यूपी में प्रियंका की सक्रियता के बाबजूद राहुल गाँधी अमेठी से हार गए और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ सोनिया गांधी की ही रायबरेली वाली सीट बचा पायी थी | 2022 में प्रियंका गाँधी की अगुआई में लड़ा गया यूपी विधान सभा का चुनाव भी कांग्रेस बुरी तरह हारी | उसके केवल दो ही प्रत्याशी जीत पाये | यूपी के साथ ही चार अन्य विधानसभा चुनाव हुए उसमें भी कांग्रेस के हाथ कुछ नहीं आया | हर हार के बार लगता था कि कांग्रेस और राहुल को कुछ चेतना आयेगी लेकिन चेतना की जगह वहां और गफलत फ़ैल गयी | ऐसी गफलत कि मोदी के अंधविरोध में राहुल जाने अनजाने कांग्रेस के लिए ही गड्ढा खोदते चले गए |

सोनिया गांधी को भेजे अपने पत्र में आजाद ने एक बात और मार्के की कही कि कांग्रेस का अब कुछ नहीं हो सकता | यह नाउम्मीदी यूँ ही नहीं है | आजाद एक अनुभवी नेता है और वे जानते हैं कि जब तीन साल में राहुल गांधी का गैरजम्मेदारी वाला रवैया नहीं बदला तो आगे भी नहीं बदलने वाला | यहाँ पर भाजपा और कांग्रेस का फर्क साफ़ नजर है | कोई डैमेज होने की संभावना होते ही भाजपा के अध्यक्ष से लेकर सभी जिम्मेदार नेता सक्रीय हो जाते हैं | असंतुष्ट को संतुष्ट करने के संतुलित उपाय किये जाते हैं और सबसे बड़ी बात संवाद बनाये रखा जाता है | कांग्रेस में असंतुष्ट को भाजपा का दलाल होने का सर्टीफिकेट दे दिया जाता है | कुछ ऐसा अपमान किया जाता है कि असंतोष की खाईं और चौड़ी हो जाती है | ऐसा उत्साह दिखाया जाता है मानो आजाद या उन जैसे नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ने से पार्टी का जनाधार बढ़ गया हो और वह पाप मुक्त हो गयी हो | दरबारी और जोर से काम करने की घोषणाये करते हैं लेकिन मौका आते ही सब कुछ गालबजाऊ साबित होता है और पार्टी जमीन में कुछ और धस जाती है |

पंजाब में जब अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़ी थी तब उन्होंने यही सब कहा था जो आजाद ने कहा | राहुल गांधी के खेमें से भी यही सब कहा गया था जो आजाद के इस्तीफे पर कहा गया | इसका नतीजा भी वही निकला जो असम में निकला था और जो मध्यप्रदेश में निकला कि पार्टी ने एक और राज्य पंजाब खो दिया | एक बात ध्यान देने वाली है कि कांग्रेस जिस राज्य से एक बार बाहर हुई दोबारा उसकी वहां वापसी नहीं हो सकी | जबकि कई राज्यों में तो मुख्यमंत्री ही मूल रूप से कांग्रेसी है जिन्होंने पार्टी छोड़ कर या तो नई पार्टी बनायीं या भाजपा में चले गये | इन नेताओं ने कांग्रेस की राह में ऐसे कांटे बोये कि फिर कांग्रेस उनके राज्य के सिंहासन की सीढ़ी कभी नहीं चढ़ पायी | आंध्र प्रदेश के जगन रेड्डी पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी , असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा कांग्रेस से ही निकले नेता हैं और तीनों राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बहुत खराब है |

यह सब हालात बताते हैं कि गांधी परिवार कांग्रेस की विरासत संभालने में न सिर्फ असफल रहा बल्कि उसने राष्ट्रीय पार्टी को , व्यापक जनाधार वाली पार्टी को उन क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बना दिया जो निकले ही कांग्रेस से थे | राहुल गाँधी के खेमें से यह कहा जाना भी मुगालते में पड़े रहना है कि पार्टी ने इन नेताओं को बहुत कुछ दिया | पार्टी अपने आप नहीं चलती बल्कि पूरा का पूरा संगठन चलाता है | 23 जी के नेताओं को पार्टी ने तभी कुछ दिया जब उन्होंने पार्टी के लिए अपनी उपयोगिता सिद्ध की | संगठन अनुभवी लोगों की बात सुनने से ही मजबूत होता है लेकिन कांग्रेस में अनुभवी लोगों की सलाहों को विपक्षी पार्टी का एजेंडा बता कर किनारे करने की परम्परा पड़ गयी है इसीलिए कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद और मनीष तिवारी को कहना पड़ा कि कांग्रेस का कुछ नहीं हो सकता | राजनीतिक पर्यवेक्षक भी पार्टी को डूबता जहाज बताया जा रहा है | वैसे यह गलत भी नहीं लगता क्योंकि राहुल एन्ड कम्पनी पार्टी के जहाज में रोज एक नया छेद कर देती है और ऐसा करने से रोकने वाले लोग जहाज छोड़कर भाग रहे हैं | यह सिलसिला हाल के दिनों में तेज होने की ही संभावना है क्योंकि इसे रोकने में किसी को खास कर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को कोई दिलचस्पी नहीं |