संदीप ठाकुर
एक कहावत है…..चढ़ जा बेटा सूली पे, भगवान भला करे। सांसद व गांधी
परिवार के चश्मे चिराग राहुल गांधी पर यह युक्ति पूरी तरह चरितार्थ हाे
रही है। वे कांग्रेस अध्यक्ष बनना नहीं चाहते लेकिन पुराने घाघ कांग्रेसी
उन्हें ही अध्यक्ष बनाना चाहते हैं,आखिर क्याें ? क्याें काेई अनुभवी
कांग्रेसी पार्टी का भार अपने कंधाें पर लेने काे तैयार नहीं है। पार्टी
नेताओं और राहुल के बीच लंबे समय से चल रही इस रस्साकशी के बीच कांग्रेस
अध्यक्ष के चुनाव का कार्यक्रम जारी हो गया है। अध्यक्ष का चुनाव आगामी
21 सितंबर से 17 अक्टूबर के बीच होगा। पहले चुनाव 20 अगस्त से 21 सितंबर
के बीच हेने वाला था। लेकिन तिथि आगे बढ़ा दी गई और इस तरह कांग्रेस
नेताओं को राहुल गांधी काे मनाने का एक महीने का समय और मिल गया। इस एक
महीने में राहुल मानते हैं या नहीं यह देखना दिलचस्प हाेगा। सनद रहे कि
राहुल ने 2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद अध्यक्ष पद
से इस्तीफा दे दिया था। फिलहाल, सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं।
विगत रविवार यानी 28 अगस्त को कार्य समिति की ऑनलाइन बैठक हुई थी। उसमें
लगभग सभी नेताओं ने राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की बात कही। कांग्रेस
के सबसे सीनियर और अनुभवी नेताओं में से एक मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि
राहुल गांधी अध्यक्ष बनें, पूरी पार्टी उनके पीछे खड़ी है। दूसरे वरिष्ठ
और बुजुर्ग नेता अशोक गहलोत ने भी यह बात दोहराई कि राहुल अध्यक्ष बनें।
तीसरे वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता सलमान खुर्शीद ने भी कहा कि राहुल को
अध्यक्ष बनना चाहिए। सोचें, एक तरफ गुलाम नबी आजाद कह रहे हैं कि राहुल
के पार्टी की कमान संभालने के बाद वरिष्ठ नेताओं से सलाह-मशविरा करने का
सिस्टम खत्म हो गया तो दूसरी ओर पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल के पीछे
एकजुट हो रहे हैं ! पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक पृथ्वीराज चव्हाण
ने जरूर कहा है कि यदि राहुल अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं होते हैं तो
चुनाव करा कर किसी को चुना जाए।
सनद रहे कि श्री चव्हाण जी-23 समूह के नेता हैं, जिन्होंने संगठन चुनावों
को लेकर सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। इस समूह के नेता एक-एक करके
कांग्रेस से दूर हो रहे हैं। गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ दी है और
कपिल सिब्बल समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा में जाने के बाद
कांग्रेस से अलग ही हो गए हैं। मनीष तिवारी ने अपने को कांग्रेस में
हिस्सेदार बता कर किराएदार वाली हैसियत भी गंवा दी है। इस समूह के बाकी
बड़े नेताओं में भूपेंदर सिंह हुड्डा को हरियाणा की कमान मिल गई है और
मुकुल वासनिक को भी राज्यसभा मिल गई है। सो, जी-23 का अब कोई खास मतलब
नहीं है। जी-23 समूह के बचे खुचे नेताओं को भी राहुल गांधी के अध्यक्ष
बनने में कोई आपत्ति नहीं है। यह लगभग तय है कि राहुल हां करते हैं तो
उनका कोई विरोध नहीं होगा। जयराम रमेश ने कहा है कि कोई भी अध्यक्ष पद के
लिए नामांकन कर सकता है। लेकिन वह तब होगा, जब परिवार के बाहर का कोई
व्यक्ति चुनाव लड़ेंगे। राहुल लड़ेंगे तो कोई नामांकन नहीं होगा।
राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने से इनकार की कई
वजहें हैं। पहली वजह है कि 2024 के चुनाव में सभी विपक्षी दल उनके
नेतृत्व पर सहज नहीं होगे। पार्टी का कोई और वरिष्ठ नेता अध्यक्ष पद
संभालता है, तो विपक्षी एकता की संभावना बढ़ जाएगी। इसके साथ पार्टी पर
परिवारवाद का लगा ठप्पा भी हट जाएगा। वैसे देखा जाए ताे जिम्मेदारी
स्वीकार करने में राहुल हमेशा हिचकिचाते रहे हैं।यूपीए सरकार में कई बार
ऑफर के बावजूद कोई मंत्री पद स्वीकार नहीं किया। पार्टी का अध्यक्ष पद भी
उन्होंने 2017 में जाकर संभाला और 2019 के चुनाव में हार के बाद इस्तीफा
दे दिया। एक बड़ी वजह यह भी लगती है कि राहुल नहीं चाहते की एक बार फिर
2024 का लोकसभा चुनाव उनके बनाम मोदी हो। यदि ऐसा हुआ ताे भाजपा फिर से
चुनाव जीत सकती है। चुनाव जीतने के लिए परसेप्शन का बदलना जरूरी है,और
इसके लिए राहुल काे पीछे जाना हाेगा।