डॉ वेदप्रताप वैदिक
कल सुबह जैसे ही मैंने लिखा कि वर्तमान संकट में पाकिस्तान की मदद के लिए भारत को पहल करनी चाहिए, शाम तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान आ गया। मोदी ने पाकिस्तान के लोगों की तकलीफ के बारे में जैसी भावभीनी प्रतिक्रिया की है, वह सचमुच बड़ी मार्मिक थी। पाकिस्तान के कई नेताओं, पत्रकारों और समाजसेवियों ने मोदी के उस बयान की सराहना की है लेकिन पाकिस्तान की सरकार या उसके दिल्ली स्थित दूतावास ने अभी तक कोई इशारा भी नहीं किया है कि यदि भारत मदद की पेशकश करेगा तो वे उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। दुर्भाग्य है कि दोनों देशों के फौजी और राजनीतिक रिश्ते ऐसे विकट रहे हैं कि इस भयानक विभीषिका के दौरान भी वे एक-दूसरे से खुलकर बात नहीं करते हैं। पाकिस्तान के कुछ उच्चस्तरीय और नामी-गिरामी नेताओं ने बातचीत में मुझसे कहा है कि यदि मोदी सरकार खुद मदद की पहल करेगी तो शाहबाज सरकार को उसे स्वीकार करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है कि शाहबाज़ सरकार के विरोधी उसके खिलाफ अभियान चला दें। उनकी राय थी कि कुछ गैर-सरकारी भारतीय संगठन मदद के लिए आगे आ जाएं तो बहुत अच्छा होगा। यों भी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ और पाकिस्तानी सेनापति जनरल कमर जावेद बाजवा भारत के प्रति पिछले दिनों नरमी का रूख अपनाते हुए लग रहे थे। वे भारत से बातचीत शुरु करने की संभावनाएं तलाश रहे थे। अभी-अभी पाकिस्तान के वित्तमंत्री मिफ्ता इस्माइल ने कहा है कि बाढ़ की वजह से हमारी फसलें नष्ट हो गई हैं। अब हमें भारत से सब्जियां और अनाज तुरंत आयात करने होंगे। पिछले तीन साल से भारत-पाक व्यापार भी ठप्प पड़ा हुआ है। चीन के साथ गलवान घाटी में खूनी मुठभेड़ हुई है लेकिन इस बीच भारत-चीन व्यापार में अपूर्व बढ़ोतरी हुई है। पाकिस्तान के व्यापारी तो व्यापार के दरवाजे खुलवाना चाहते हैं लेकिन नेताओं और जनरलों को कौन समझाए? पाकिस्तानी फौज और पार्टियों में भी दो अलग-अलग राय वाले धड़े बन गए हैं। इस समय शाहबाज शरीफ और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो यदि भारत से रिश्ते सुधारने की पहल करें तो इमरान खान भी उसका विरोध नहीं करेंगे। इमरान तो भारत से संबंध सुधारने की बात कई बार कह चुके हैं। जहां तक धारा 370 और 35 ए को खत्म करने की बात है, पाकिस्तान ने उसका डटकर विरोध किया है लेकिन पिछले 3 साल में अब उसकी समझ में यह आ गया है कि इस बारे में अब कुछ नहीं किया जा सकता। यदि मोदी स्वयं भी शाहबाज को फोन करके मदद भिजवाने के लिए कह दें तो उनका कुछ बिगड़नेवाला नहीं है। यदि शाहबाज या कोई नेता उसका विरोध करेगा तो उसकी छवि पाकिस्तान की जनता के दिल में खराब ही होगी। यदि तालिबान की सरकारवाले अफगानिस्तान को भारत मदद भिजवा सकता है तो शाहबाज शरीफ के पाकिस्तान को मदद भिजवाने में मोदी को झिझक क्यों होनी चाहिए? इस समय नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान को मदद भिजवाकर भारत ने जो पुण्य कमाया है, उससे भी बड़ा मानव-सेवा का पुण्य पाकिस्तान की विपदग्रस्त जनता की सेवा से मिलगा।