आत्महत्या करने को क्यों मजबूर हो रहे हैं लोग?

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

विश्व में 10 सितंबर को वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य आत्महत्या को कम करना होता है लेकिन हाल ही में जारी आंकड़ों में आत्महत्या की दर में तीव्र वृद्धि देखी गई है। जीवन पृथ्वी पर सबसे अनमोल चीज मानी गई है। पुराणों और शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इस नश्वर संसार में अमरत्व प्राप्त करने का कोई तरीका नहीं है। प्रत्येक मनुष्य के जन्म और मृत्यु का समय निश्चित है लेकिन जब इसी समय के खिलाफ जाकर कोई शरीर छोड़ने की सोचता है तो वह आत्महत्या की ओर प्रेरित होता है। आत्महत्या के कई कारण हो सकते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पेशे या करियर से संबंधित समस्याएं, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्याएं, मानसिक विकार, शराब की लत और वित्तीय नुकसान देश में आत्महत्या की घटनाओं के मुख्य कारण हैं।

कितनी बढ़ी है आत्महत्या?

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार भारत में 2020 में आत्महत्या के कुल 1,53,052 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में सात प्रतिशत अधिक कुल 1,64,033 मामले दर्ज किए गए थे। इसमें कहा गया है कि आत्महत्या की दर में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2017 से 2021 के बीच 26% की वृद्धि दर्ज की गई है। महाराष्ट्र ऐसा राज्य है, जहां आत्महत्या के सर्वाधिक मामले दर्ज हैं। तमिलनाडु और मध्य प्रदेश आत्महत्या के मामलों में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।

पूरे भारत में ऐसे 1,64,033 मामले दर्ज किए गए। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल देश में महाराष्ट्र में आत्महत्या के सर्वाधिक 22,207 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद तमिलनाडु में 18,925, मध्य प्रदेश में 14,965, पश्चिम बंगाल में 13,500 और कर्नाटक में 13,056 मामले दर्ज किए गए जो आत्महत्या के कुल मामलों का क्रमश: 13.5 प्रतिशत, 11.5 प्रतिशत, 9.1 प्रतिशत, 8.2 प्रतिशत और आठ प्रतिशत है।देश में दर्ज किए गए आत्महत्या के कुल मामलों में से इन पांच राज्यों में 50.4 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए।

आत्महत्या की स्थिति क्यों आ रही है?

आत्महत्या के विचार आने की समस्या से पीड़ित व्यक्ति को खुद का जीवन नष्ट करने के विचार आने लगते हैं, इसके साथ-साथ इस दौरान उसको डिप्रेशन और बिहेवियरल बदलाव भी महसूस होने लगते हैं। खुदकुशी का विचार आना एक सामान्य समस्या है और ज्यादातर लोग इसे तब महसूस करते हैं, जब वे तनाव या डिप्रेशन से गुजर रहे होते हैं। समाज की अलग – अलग संस्कृतियों और तबकों में आत्महत्या की वजहें अलग – अलग हैं। लेकिन हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि आत्महत्या, मृत्यु का सबसे निरोध्य कारण है, यानी इसे रोका जा सकता है। आत्महत्या की कोशिशें अक़्सर मदद की एक पुकार ही होती हैं और अब तो तेज़ी से एक मनोवैज्ञानिक इमरजेंसी के तौर पर देखी जा रही हैं।

सुसाइड के कुछ कारणों को देखे तो पाते हैं कि किसी अपने के मौत पर उस शख्स से हमेशा के लिए दूर हो जाने की भावना, निजी रिश्ते में किसी प्रकार की समस्या , किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार होने पर, जीवन में कोई लक्ष्य ना होने पर, अपने जीवन पर काबू ना होने पर, किसी तरह का आर्थिक घाटा होने पर। अत्यधिक केसों में इन सबमें से ही कोई न कोई कारण होता है सुसाइड करने का।

आत्महत्या को कैसे रोका जाए?

आत्महत्या को रोकने की ज़िम्मेदारी हम सब की है। आत्महत्या को रोकना सरकार का काम नहीं है और सरकार यह काम कर भी नहीं सकती। यह जिम्मेदारी परिवार तथा समाज की है। सबसे ज्यादा जिम्मेदारी तो परिवार की ही है। अकेलापन, शिक्षा तथा करियर में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा, प्रेम में विफलता, बीमारियां, उम्मीदों के मुताबिक नतीजे न मिलना, घर का नकारात्मक माहौल जैसे कई कारण हैं जो युवा पीढ़ी को अवसाद में ले जाते हैं। अवसाद के लक्षण बहुत साफ नजर आ जाते हैं। अवसाद में जाने के बाद संबंधित व्यक्ति के हाव-भाव, बोलचाल, उसका व्यवहार बदल जाता है। ये परिवर्तन स्पष्ट दिखते हैं लेकिन परिवार तथा आसपास के लोग पीड़ित की बीमारी समझ नहीं पाते। बचपन में अगर बच्चों को सही मार्गदर्शन और माता-पिता का पर्याप्त स्नेह एवं संबल मिले तो आगे चलकर बच्चे किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए मानसिक रूप से मजबूत हो जाते हैं।

जीवन को जीने लायक बनाए जाने की कोशिशें युगों से जारी हैं और जीवन को ठुकरा देने की भी। नई आत्महत्याएं खबरों में पुरानी आत्महत्याओं को धुंधला कर देती हैं। इस दरम्यान न आत्महत्या करने के तरीके बहुत बदलते हैं और न ही उन पर ख़बर करने के। इस सिलसिले में स्वामी विवेकानंद की बात भी याद कर लेनी चाहिए – ”जीवन में मैंने एक महत्त्वपूर्ण बात सीखी, वह यह कि आपका ध्येय जितना ऊंचा होगा, उतने ही आप दुखी होंगे। इस सृष्टि में मुख्यत: दो प्रकार के लोग मिलते हैं। पहले प्रकार के लोग दृढ़, मन के पक्के, शांत, प्रकृति के आगे समर्पित होने वाले, कल्पना-शक्ति के फेरे में न पड़नेवाले, किंतु अच्छे, सज्जन, दयालु, मधुर स्वभाव के होते हैं। यह सृष्टि ऐसे ही लोगों के लिए है। ये लोग सुखी होने के लिए ही जन्म लेते हैं। इसके विपरीत दूसरे प्रकार के लोग अत्यंत संवेदनशील स्वभाव के, कल्पना-प्रधान होते हैं। इनकी भावना अत्यंत तीव्र होती है। इस तरह के लोग एक पल में ही ऊंची उड़ान भरते हैं, तो दूसरे ही पल एकदम जमीन पर होते हैं। ऐसे लोगों के भाग्य में सुख नहीं होता है।” इसे समझे तो कह सकते हैं कि ये दूसरे प्रकार के लोग ही आत्महत्या करते हैं।

क्या कहता है विश्व स्वास्थ्य संगठन ?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक वैश्विक आत्महत्या मृत्यु दर को एक तिहाई तक कम करने में देशों की मदद करने के लिये नए दिशा-निर्देश प्रकाशित किये थे। इसमें प्रमुख है- आत्महत्या करने वाले कारकों को उनसे दूर रखने का प्रयास करना है। जिसमें अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों और आग्नेयास्त्रों जैसे आत्महत्या के साधनों तक पहुँच सीमित करना होगा ।आत्महत्या की ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग पर मीडिया को भी शिक्षित करने की आवश्यकता है , जिससे कि मीडिया द्वारा किसी खास को ट्रोल होने से बचाया जा सके। इसके आलावे किशोरों में सामाजिक-भावनात्मक जीवन कौशल को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। आत्मघाती विचारों और व्यवहार से प्रभावित किसी व्यक्ति की प्रारंभिक पहचान, मूल्यांकन, प्रबंधन और अनुवर्ती कार्रवाई करनी होगी। इन्हीं स्थिति विश्लेषण, बहु-क्षेत्रीय सहयोग, जागरूकता बढ़ाने हेतु क्षमता निर्माण, वित्तपोषण, निगरानी और मूल्यांकन जैसे मूलभूत स्तंभों के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत है।

मन मे आत्महत्या का ख़्याल आये तो क्या करें?

यदि मन में सुसाइड का ख्याल आ रहा है तो किसी अपने और भरोसेमंद व्यक्ति के साथ बैठकर अपने मन की सभी बातें बोल दें। जी भर कर रोएं, ऐसा करने से आत्महत्या की सोच दिल से कम हो जाती है। यदि आप आशाहीन महसूस कर रहे हैं या ऐसा महसूस कर रहे हैं कि आप अब और जीने के लायक नहीं हैं। तो ऐसे में याद रखें कि उपचार की मदद से आप फिर से अपने जीवन के दृष्टिकोण को प्राप्त कर सकते हैं और जीवन को बेहतर बना सकते हैं। उत्तेजित होकर कुछ ना करें। पीड़ित के परिवार के सदस्य और दोस्त उसके बोलने और व्यवहार करने के तरीके से यह पता लगा सकते हैं कि वह इस समस्या के जोखिम पर है। इस दौरान वे पीड़ित व्यक्ति के साथ बात करके और उचित सपोर्ट प्रदान करके उसकी मदद कर सकते हैं जैसे पीड़ित व्यक्ति को डॉक्टर के पास लेकर जाना।

आत्महत्या के बारे में सोच रहा व्यक्ति लंबे समय से परेशान रहने लगता है। एक सेकेंड में खुदकुशी का ख्याल हजार में से किसी एक व्यक्ति के दिल में ही आता है। इसलिए अपने करीबियों पर ध्यान दें कहीं वो किसी बात को लेकर इतना परेशान तो नहीं कि अपनी जिंदगी खत्म करने का सोच रहे हों। ऐसे लोगों के सामने उनकी सफलताओं की बातें फिर से दोहराएं। लोगों को उनका उदाहरण देकर समझाएं कि वो कितने मजबूत हैं। ऐसा करने से आत्महत्या का विचार खत्म हो जाता है। व्यक्ति समझ जाता है कि वो अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बन सकता है इसलिए वो जिंदगी को सकारात्मक ढंग से जीने लगता है। जिंदगी ख़ुद को सुधारने का एक मौका हर किसी को जरूर देती है लेकिन सुसाइड तो जिन्दगी ही छीन लेती है । ज़रूरत है कि जिंदगी के महत्व को समझें और समझ कर ऐसे कुविचारों से बचें क्योंकि इससे समस्या का समाधान नहीं होता है उल्टे आपके चहेतों को जख्म दे कर चला जाता है। “मन कितना भी मजबूर क्यों न करे मरने को, दिल उतना ही मजबूत करो हौसलों से जीने को।”