पंकज श्रीवास्तव
नीतीश ने 2017में जब राजद का साथ छोड़कर राजग में जाने का फैसला किया तो माना यही गया कि सृजन घोटाले जैसे किसी घोटाले में नीतीश फंस गए हैं और भाजपा उनको ब्लैकमेल कर रही है।नीतीश ने जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 और नागरिकता संशोधन कानून जैसे कई मुद्दों पर अपने पूर्व घोषित नीतियों के खिलाफ जिस प्रकार भाजपा के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया,उससे नीतीश और उनकी पार्टी जदयू की राजनीतिक साख कम हुई।1महीने पहले तक कई मीडिया समूह यह खबर ला रहे थे कि नीतीश कुमार राजद के साथ जा सकते हैं,तो उन समाचारों को कोई विश्वसनीय नहीं मान रहा था।
इसके विपरीत नरेंद्र मोदी और भाजपा का आत्मविश्वास लगातार बढ़ता ही गया है और मोदी अजेय दिखने लगे हैं। भाजपा के आत्मविश्वास का आलम यह है कि पटना में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एलान कर दिया कि अब कोई क्षेत्रीय दल अपना वजूद बचाकर नहीं रख पाएंगे और सब के सब भाजपा में विलीन हो जाएंगे।मोदी और भाजपा का आईटी सेल पिछले 8 शवर्षों से लगातार नेहरू गांधी पर झूठ मनगढ़ंत और बेबुनियाद बातें फैलाता रहा है दूसरी तरफ कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और भाजपा और मोदी के सबसे प्रखर विरोधी राहुल गांधी को पप्पू साबित करने में जुटा रहा है और आज कांग्रेस अपने ऐतिहासिक विरासत को बचाने में अक्षम दिख रही है।
अपने सबसे बुरे दिन में भी कांग्रेस के पास 2019के आम चुनाव में भाजपा के बाद सबसे ज्यादा लगभग 12करोड़ वोट मिले थे।लेकिन,उसकी राजनीतिक साख इतनी कम रह गई है कि ममता बनर्जी जो महज एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं और जिनके महज 24सांसद हैं,जिनकी अपनी टीएमसी कांग्रेस से अलग होकर ही बनी है,वह भी 2024के आम चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाना नहीं चाहती।
आज अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी-आप-मोदी के गढ़ गुजरात में ही गंभीर चुनौती पेश कर रही है।कांग्रेस पिछले आठ-दस वर्षों में मोदी को चुनौती देने वाले या हरा पाने में सक्षम पार्टी और नेता को अप्रत्यक्ष सहयोग करती रही है। 2020के दिल्ली के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े तो किए थे,लेकिन जीतने की कोशिश नहीं की थी।उसी प्रकार 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वामपंथियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की कोशिश की।लेकिन,जब यह तय हो गया कि बीजेपी को ममता बनर्जी सलटा देंगी तो कांग्रेस ने अपने को पीछे कर लिया और ममता की बड़ी जीत सुनिश्चित की। गुजरात विधानसभा के आगामी चुनाव में कांग्रेस संभव है आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को इसी प्रकार अप्रत्यक्ष सहयोग करे।दिख यह रहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों को अनदेखी करते हुए कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी 150दिन के भारत जोड़ो यात्रा पर निकल रहे हैं।यानि कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को वाकओवर देने जा रही है। ऐसे में,गुजरात विधानसभा के चुनाव में भाजपा और आप पार्टी के बीच सीधी टक्कर होगी।शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने बेहतरीन उपलब्धि दर्ज की है,उसका प्रचार प्रसार स्वत: गुजरात में होता रहा है। दूसरी तरफ गुजरात में अंबानी-अडानी को नरेंद्र मोदी चाहे जितना भी लाभ पहुंचा पाए हों सच यह है कि सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे गुजरात में है,सबसे ज्यादा एनीमिया की शिकार महिलाएं गुजरात में है,नवजात शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा गुजरात में है।अब हालत यह है कि साबरमती नदी पर पैदल पुल का उद्घाटन करने भी नरेंद्र मोदी पहुंच जा रहे हैं और अपने विचारों में गुजरात में कुपोषण समाप्त करने का वादा कर रहे हैं।पिछले 25साल से ज्यादा समय से भाजपा गुजरात में सत्तासीन है और इन वादों की कोई विश्वसनीयता ही नहीं बची है।अपने को कट्टर हिंदू और प्रखर राष्ट्रवादी होने का सर्टिफिकेट मोदी ही नहीं केजरीवाल भी देते रहे हैं और इन मुद्दों पर मोदी केजरीवाल को हराने से रहे।ऐसी स्थिति में अगर अरविंद केजरीवाल मोदी को हरा पाने में सफल होते हैं तो मोदी और भाजपा का सबसे मजबूत किला ढह जाएगा और तब आरएसएस मोदी को बचाने के लिए आगे आने से रहा।
नीतीश आरएसएस की सत्ताभिमुखता को बखूबी जानते हैं। वह जानते हैं कि जनसंघ भले आरएसएस का राजनीतिक संगठन रहा हो,जनसंघ की कांग्रेसविरोधी पृष्ठभूमि भी रही थी,लेकिन 1980 और 1984के आम चुनाव के दौरान जब भाजपा की हालत खस्ता थी तो आरएसएस ने कांग्रेस का सहयोग किया था।आरएसएस आडवाणी-जोशी जैसे तपे-तपाए नेता को नेपथ्य में ढकेल कर सत्ता की बागडोर मोदी को सौंपने से परहेज नहीं किया।यह आरएसएस था जिसने शीला दीक्षित के सामने अरविंद केजरीवाल को खड़ा किया और अगर अरविंद केजरीवाल गुजरात में मोदी को हरा देते हैं तो आरएसएस और मोदी का हनीमून उसी दिन समाप्त हो जाएगा।आरएसएस के सामने मोदी के बरक्स अरविंद केजरीवाल और योगी आदित्यनाथ विकल्प होंगे।मोदी जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए थे,तो भाजपा राजग का नेतृत्व कर रही थी।आज राष्ट्रीय स्तर पर एक भी महत्वपूर्ण पार्टी भाजपा के साथ राजग में नहीं है।यही नहीं, मुठभेड़ की राजनीति में मोदी शाह ने राजनाथ सिंह,नितिन गडकरी और येदियुरप्पा को किनारे लगाया है,यह आरएसएस को रास नहीं आया है।लेकिन अपनी सत्ताभिमुखता के कारण आरएसएस चुप है।जिस दिन मोदी वोटबटोरू नहीं रह जाएंगे आरएसएस के लिए उनकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाएगी।मोदी अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया जैसे नेता ही नहीं,भारतीय मजदूर संघ,स्वदेशी जागरण मंच,विश्व हिन्दू परिषद् जैसे संगठन को भी अप्रासंगिक कर चुके हैं।अगर, गुजरात मोदी के लिए वाटरलू साबित होता है,तो आरएसएस अपने वजूद को लेकर सचेत हो जाएगा।गांव-टोले की स्तर पर लगने वाली शाखाएं पहले ही बंद हैं,प्रचारक ऐसी कमरों और हवाई यात्राओं के आदी हो गए हैं।
यहीं पर नीतीश अपने लिए एक संभावना देख रहे हैं।वह देख रहे हैं कि कांग्रेस के पास 2019 में 12करोड़ वोट थे,ढीला-ढाला ही सही उसके पास अखिल भारतीय संगठन है।देश की समस्याओं पर चिंतन करने वाले थिंकटैंक को आकर्षित करने वाली विरासत है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की घोषणा होते ही सिविल सोसायटी के सैकड़ों संगठन ने शामिल होने की हामी भरी है।लेकिन उनके पास अखिल भारतीय अपील रखने वाला कोई नेता नहीं है।1991में नरसिम्हाराव और 2004में डॉ मनमोहन सिंह के रूप में कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के लोगों को प्रधानमंत्री पद सौंपा भी है।संभव है,पर्दे के पीछे कांग्रेस और नीतीश के बीच ऐसी डील हो गई हो कि 2024के आम चुनाव के लिए कांग्रेस उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान ले।
जिस प्रकार,केसीआर,नवीन पटनायक,शरद पवार ने नीतीश के प्रति अपनी स्वीकार्यता दिखाई है,उससे भी नीतीश का आत्मविश्वास बढ़ा है।