एनएमसीजी ने प्राकृतिक खेती’ विषय पर वेबिनार श्रृंखला ‘इग्नाइटिंग यंग माइंड्स, रिजुवेनेटिंग रिवर’ के 10वें संस्करण का आयोजन किया

रविवार दिल्ली नेटवर्क

प्राकृतिक खेती अर्थ गंगा के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक- डीजी, एनएमसीजी

युवाओं और छात्रों को नदियों के संरक्षण एवं संवर्धन कार्यक्रमों से जोड़ने के उद्देश्य से आज एपीएसी न्यूज़ नेटवर्क के सहयोग से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इग्नाइटिंग यंग माइंड्स रिजूवनेटिंग रिवर वेबीनार के 10वें संस्करण का आयोजन किया गया। वेबीनार का विषय प्राकृतिक खेती था। इस विशेष सत्र में अर्थ गंगा परियोजना के अंतर्गत गंगा बेसिन राज्यों में प्राकृतिक खेती को प्रभावी ढंग से युवाओं को समझाने की तत्काल आवश्यकता पर विचार-विमर्श किया गया।
सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री जी अशोक कुमार ने की. वेबीनार के पैनलिस्टों में कृषि विशेषज्ञ डॉ दिनेश चौहान, जीएनएस यूनिवर्सिटी बिहार के वाइस चांसलर डॉ एनके सिंह, आईएमएस यूनिसन यूनिवर्सिटी देहरादून के वाइस चांसलर डॉ रविकेस श्रीवास्तव, एसजीटी यूनिवर्सिटी गुरुग्राम के वाइस चांसलर डॉक्टर विकास धवन समेत उत्तरांचल यूनिवर्सिटी के छात्र अभिषेक सिंह और वंदना रावत शामिल रहे। वेबिनार का समापन छात्रों के साथ संवाद सत्र के साथ हुआ।

सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री जी अशोक कुमार ने नमामि गंगे कार्यक्रम और गंगा नदी को निर्मल और अविरल बनाने के लिए उठाए जा रहे विभिन्न कदमों की जानकारी दी। श्री कुमार ने खेतों से नदी बेसिन में जा आर हे रसायनों समेत बेहतर जैव विविधता और पानी की गुणवत्ता के लिए गंगा नदी के तट पर रासायनिक मुक्त खेती की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। प्राकृतिक खेती के महत्व पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती अर्थ गंगा के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है और यह गंगा कायाकल्प से संबंधित कई मुद्दों का समाधान कर सकती है।

वर्ष 2019 में कानपुर की पहली राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक के दौरान माननीय प्रधानमंत्री जी के विजन को सामने रखते हुए उन्होंने प्राकृतिक खेती के साथ स्थायी कृषि की दिशा में एनएमसीजी के प्रयासों पर प्रकाश डाला, जो अर्थ गंगा मॉडल के स्तंभों में से एक है। उन्होंने प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करने और अशुद्ध पानी के उपचार के लिए डायवर्जन सिस्टम लगाने में नमामि गंगे के प्रयासों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि निर्मल जल केंद्रों की सहायता से नदियों में गुणवत्तापूर्ण पानी वापस डाला जा रहा है। प्राकृतिक खेती पर उन्होंने कहा कि खेती में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक उर्वरक वर्षा के पानी के साथ नदी में प्रवाहित होते हैं और जलाशयों को प्रदूषित करते हैं जोकि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत बन जाते हैं। उन्होंने जैव विविधता पर रसायनों के खतरनाक प्रभावों के बारे में बात करते हुए बताया कि कैसे प्राकृतिक खेती गंगा और हमारे पर्यावरण को स्वच्छ रखने का एक बेहतर तरीका है।

उन्होंने “प्रति बूंद अधिक आय” अभियान का आह्वान किया, जो प्रति बूंद अधिक पैदावार’ नारे से एक कदम आगे की अवधारणा है, जो प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसानों के खर्च को कम करके मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में फसलों की बिक्री से शुद्ध आय पर जोर देता है। यह रसायनों के उपयोग को कम करने और फसल उत्पादन के प्राकृतिक साधनों को नियोजित करने के अनुरूप है। चूंकि इस समय कृषि क्षेत्र में देश के 85-90 प्रतिशत जल का उपयोग होता है, ऐसे में हम प्राकृतिक खेती से 50-70 प्रतिशत पानी बचा सकते हैं। यह पानी के बेहतर उपयोग और पेयजल जैसे अन्य उद्देश्यों के पानी की बचत को सुनिश्चित करेगा।

जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि नमामि गंगे द्वारा विशेषज्ञों के माध्यम से किसानों के साथ चर्चा की जा रही है, ताकि किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभों के बारे में शिक्षित किया जा सके और उनकी खेती के तरीकों में व्यवहारिक बदलाव लाया जा सके। उन्होंने किसानों से आने वाली उपज को ब्रांड बनाने में मदद करने के लिए कटाई के बाद की मार्केटिंग रणनीतियों की वकालत की। “यह प्राकृतिक खेती के माध्यम से फसल उगाने वाले किसानों के लाभ को बढ़ाने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि नमामि गंगे की प्राकृतिक कृषि परियोजना के माध्यम से लोगों को नदियों से जोड़ने के माननीय प्रधान मंत्री के विजन को प्राप्त किया जा सकता है।
जागरूकता और भागीदारी के महत्व के बारे में अपनी विचार साझा करते हुए श्री रविकेश श्रीवास्तव ने स्कूली शिक्षा के माध्यम से स्वच्छ जल की प्रासंगिकता के बारे में मानसिकता में सुधार के बारे में बात की। उन्होंने गंगा बेसिन के पास प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रहने वाले समुदायों की सक्रिय भागीदारी पर बात की। उन्होंने गंगा परियोजनाओं के जमीनी प्रभाव को देखने के लिए मौद्रिक मूल्यांकन के अभ्यास पर जोर दिया। उन्होंने प्राकृतिक खेती के माध्यम से उत्पादित फसलों को प्रीमियम उत्पाद का दर्जा देने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने भारत के कृषि विश्वविद्यालयों में प्राकृतिक खेती पर अधिक केंद्रित रिसर्च जारी रखने के सुझाव के साथ अपना संबोधन समाप्त किया।

डॉ. एमके सिंह ने प्राकृतिक और रासायन आधारित खेती की प्रथाओं को मिलाने की बात की। उन्होंने शून्य बजट खेती समेत विभिन्न अध्ययनों पर भी चर्चा की, जिसमें खेती की लागत कम हुई और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के कारण किसान की आय में वृद्धि हुई। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती से मिट्टी के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है।

प्राकृतिक और जैविक खेती के बीच अंतर के बारे में बोलते हुए श्री दिनेश चौहान ने कहा कि भारत को उन कृषि प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो पर्यावरण और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव दिखाएं। उन्होंने ‘बीज से बाजार तक’ के नारे को याद कर प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को चुनने की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। जैविक खेती से फसलों को बेचने के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र हासिल करने के साथ ही उन्होंने बिना उचित प्रमाणन के छोटे किसान का अपनी उपज के लिए सही धन प्राप्त करने में असमर्थ होने का जोखिम पर भी बात की। उन्होंने बारकोड की मदद से की जा रही प्राकृतिक खेती के माध्यम से उत्पादित फसलों की ट्रेसबिलिटी को नियोजित करने के महत्व पर भी बात की। जिसके माध्यम से फसलों के सत्यापन के साथ ही फसलों की लाभप्रदता बढ़ेगी और स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देगी।

डॉ. विकास धवन ने आधुनिक युग में प्राकृतिक भोजन के माध्यम से स्वस्थ जीवन जीने के तरीकों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है, जिससे पर्यावरण और उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित हो सके।