नीति गोपेंद्र भट्ट
नई दिल्ली।भारतीय संस्कृति में पितृ ऋण से उऋण होने का विशिष्ट महत्व है,क्योंकि यह माना जाता है किपितरों की तृप्ति से ही आत्मा को पूर्ण रुप से मुक्ति मिलती है। हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म को माना जाता है। लोगइस धारणा में आस्था और विश्वास रखते है कि पितरों को जब तक पूर्ण तृप्ति नही मिलती है तब तक उनकोमोक्ष की प्राप्ति नही होती और उन्हें बार-बार मृत्यु लोक की 84 लाख योनियों में जन्म लेना पड़ता है। हालाँकिअब तक कोई भी यह पहेली सुलझाने में सफल नही हुआ है कि मृत्यु के बाद जीव स्वर्ग अथवा नरक कहाँ जाताहै? अलबत्ता अब विज्ञान भी यह मानने लगा है कि पुनर्जन्म होता है ।
हिन्दू धर्म में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्धपक्ष को अहम माना गया है ।पितृपक्ष को श्राद्धपक्ष भी कहा जाता है।यह एक पखवाड़ा यानि पन्द्रह दिनों तक चलता है लेकिन इस वर्ष बारह वर्षों के बाद श्राद्ध पक्ष 16 दिन का होगा। ज्योतिष शास्त्र में इसे शुभ नहीं माना गया है। इससे पहले वर्ष 2011 में 16 दिन का श्राद्ध पक्ष पड़ा था। श्राद्धपक्ष का बढना आम जन के लिए शुभ नहीं होता है। इससे अशांति का माहौल बढ़ता है तथा इसे रोकने के लिएपितृ पक्ष की अमावस्या के दिन विशेष तर्पण करने को कहा गया है।साथ ही श्रीमद भागवत गीता के 18 वेंअध्याय का पाठ के अतिरिक्त विष्णु सहस्रनाम और गजेन्द्र मोक्ष के पाठ भी करने को कहा जाता है ताकि लोगोंके जीवन में सुख शांति और समृद्धि आएँ। मान्यता है कि इससे पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है। हालाँकिपितृ कृपा प्राप्त करने के लिए पूरे वर्ष में पितृ पक्ष में समर्पित भाव से श्राद्ध करने को ही सबसे अधिक बेहतरमाना गया है।
भारतीय पंचांग के अनुसार पितृपक्ष का प्रारंभ भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या कोसमाप्त होता है।
इस बार पितृपक्ष का प्रारंभ 10 सितंबर 2022 शनिवार से हो रहा है, जो 25 सितंबर तक रहेगा। 25 सितंबरपितृ विसर्जन की तिथि है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा पर 10 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू होगा, जो आश्विन कृष्णअमावस्या पर 25 सितंबर तक रहेगा। हालांकि इस बीच 17 सितंबर को कोई श्राद्ध नहीं होगा। पहले दिन 10 सितंबर को पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध रहेगा। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को ही पितृपक्ष कहा जाता है।
पितृपक्ष की तिथियां इस प्रकार हैं – 10 सितंबर, शनिवार : पूर्णिमा का श्राद्ध/ प्रतिपदा का श्राद्ध, 11 सितंबर, रविवार : द्वितीया का श्राद्ध, 12 सितंबर, सोमवार : तृतीया का श्राद्ध, 13 सितंबर, मंगलवार : चतुर्थी का श्राद्ध, 14 सितंबर, बुधवार : पंचमी का श्राद्ध, 15 सितंबर, गुरुवार : षष्ठी का श्राद्ध, 16 सितंबर, शुक्रवार : सप्तमी काश्राद्ध, 17 सितंबर, शनिवार : सप्तमी-अष्टमी का श्राद्ध, 18 सितंबर, रविवार : अष्टमी का श्राद्ध, 119 सितंबर, सोमवार : नवमी श्राद्ध/ इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है। 20 सितंबर, मंगलवार : दशमी का श्राद्ध, 21 सितंबर, बुधवार : एकादशी का श्राद्ध, 22 सितंबर, गुरुवार : द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध, 23 सितंबर, शुक्रवार : त्रयोदशी का श्राद्ध, 24 सितंबर, शनिवार : चतुर्दशी का श्राद्ध 25 सितंबर, रविवार : अमावस्या काश्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध, महालय श्राद्ध है।
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार कुतप काल मेंही श्राद्ध करना श्रेयस्कर होता है। अतः इन सभी तिथियों में श्राद्ध करने का सही समय कुतप काल को ही कहागया है। धर्माशात्रो में इसकी विशेष मान्यता है। श्राद्ध पक्ष के सोलह दिनों में सदैव कुतप बेला में ही श्राद्ध संपन्नकरना चाहिए। दिन का आठवां मुहूर्त कुतप काल कहलाता है। दिन के अपरान्ह 11:36 मिनिट से 12:24 मिनिटतक का समय श्राद्ध कर्म के विशेष शुभ होता है। इस समय को कुतप काल कहते हैं। इसी समय पितृगणों केनिमित्त धूप डालकर, तर्पण, दान व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। पितृ प्रसन्न तो देव भी प्रसन्न होते हैं।इसीलिए इन दिनों प्रत्येक व्यक्ति को अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव रखकर श्राद्ध एवं ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।