इन्टरनैट के मायाजाल में उलझता मासूम बचपन

श्याम सुन्दर श्रीवास्तव ‘कोमल’

परिवर्तन पृकृति का अनिवार्य एवं आवश्यक नियम है। प्रकृति के संतुलन के लिए यह जरूरी भी है। परिवर्तन में एक नवीन ऊर्जा, उल्लास एवं आकर्षण होता है। समय के साथ-साथ बहुत कुछ बदलता जाता है। बदल रहा है और यह प्रक्रिया अनवरत होती है, इसे कोई करता नहीं है। और न ही इसे कोई रोक सकता है। बस इसे संतुलित किया जा सकता है।

समय और परिस्थिति के अनुसार खान-पान, रहन-सहन, पहनावा-ओढावा, रीति-रिबाज, जीवन शैली और आवश्यकताएं सभी कुछ बदल रही हैं । कुछ परिवर्तन तो सहज और स्वाभाविक हैं और कुछ ब्यक्ति अपनी सुविधा और पसंद के अनुसार कर रहा है ।

इस तेजी से हो रहे परिवर्तन से बचपन भी अछूता नहीं है।
अब बचपन भी डिजिटल सा हो गया है। आज का बचपन

अब मैदानों में नहीं दिखता, पंछियों के पीछे नहीं दौड़ता, बाग और बगीचे में जाकर आम और अमरूद नही तोड़ता। कोयल के मधुर गीत नहीं सुनता । वह पेड़ों पर नहीं चढ़ता।

कल का बचपन मैदानों में खेलता था, दौड़ता-भागता था, उसके खेल सब शारीरिक श्रम से सम्बंधित होते थे। जिससे बच्चों का शारीरिक विकास तो होता ही था और साथ मे मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी होता था।

आज बच्चे का सारा संसार मोबाइल, लेपटॉप, टेबलेट एवं टी.वी. में ही सिमट कर रह गया है। बच्चों की शिक्षा, बच्चों का मनोरंजन उनके खेल सब कुछ इसी पर केंद्रित हो गए हैं । आज का मासूम बचपन इसकी चपेट में आकर इंटरनेट के मोहजाल में फंसता जा रहा है ।

अब सोचना समझना यह है कि जब बच्चे शारीरिक श्रम नहीं करेंगे, मैदानों में जाकर दौड़ेंगे कूदेंगे नहीं तो उनका शारीरिक विकास कैसे होगा, जब बच्चा प्रकृति के पास जाएगा ही नहीं तो उससे होने वाले लाभ को कैसे प्राप्त कर पायेगा। हमारे तीज त्योहार, खान-पान, रीति -रिबाज सब कुछ हमारे विकास से जुड़े है। हमारे संस्कारो से जुड़े है। जब हम इससे दूर होते जाएंगे तो आने वाला कल कैसा होगा इसकी कल्पना हम स्वयं कर सकते है।

यह कमजोर, अविकसित, संस्कार विहीन पीढ़ी आगे क्या करेगी यह तो भविष्य ही बताएगा किन्तु हम उसकी एक धुंधली सी झलक देख ही सकते हैं।

नन्हें-नन्हें प्यारे-प्यारे से बच्चे मोटे-मोटे लेंस के चश्में लगाए लेपटॉप और मोबाइलों में नजर गड़ाए दिखाई दे रहे है। शिक्षा भी अधिकतर इंटरनेट माध्यमों पर ही केंद्रित हो गई है। बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर विचार होना चाहिए।

बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ेगा या प्रतिकूल इस पर मनोचिकित्सक, बाल रोग विशेषज्ञ एवं बच्चों से जुड़े स्वास्थ्य संगठन और संस्थाएं विचार करें, और संतुलित एवं सकारात्मक निष्कर्ष समाज के सामने प्रस्तुत करके अपने दायित्व का निर्वहन करें।

सफलता पूर्वक जीवन यापन के लिए शारीरिक और बौद्धिक दोनों प्रकार के विकास का होना आवश्यक है। अब भारत के स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करने वाली यह पीढ़ी जो हमारे भारत का स्वर्णिम भविष्य है क्या कर सकेगी यह तो भविष्य बताएगा किन्तु इस पर स्वस्थ विचार-मंथन और विमर्श तो किया ही जा सकता है।