ऑनलाइन और ऑफलाइन का संधि काल भी शांत होगा

सुरेश खांडवेकर

डिजिटल यानी ईमेल से संवाद 1971 से शुरू हुआ । उन्नत होते होते इस डिजिटल‌ माध्यम ने सारा विश्व का वार्तालाप, संवाद और लेन-देन घेर लिया है। अब बिना डिजिटल के बात ही नहीं होती। इससे भौतिक बचते भी बहुत हुई है। आजकल इसे ही सजग आधुनिकता कहने लगे हैं । कागजी कार्रवाई लगभग एक चौथाई रह गई है। समाचार पत्रों की स्थिति आपके सामने हैं। सोशल मीडिया ने इसे संभाल रखा है। आजकल कागज छपाई में कम पैकेजिंग में ज्यादा लगता है।

इस समय सबसे ज्यादा कष्ट व्यापारियों को हो रहा है डिजिटल इन लाइन लेनदेन की वजह से। रुपयों की लेन-देन भी डिजिटल और वस्तुओं की ऑनलाइन मार्केटिंग मार्केटिंग। इस कारण सारे परंपरागत व्यवहार धरातल पर आने लग गए हैं। उपभोक्ता की हर सामग्री अब घर बैठे घर आने लगी है। इससे परंपरागत व्यापारी एजेंसियों के कर्ता-धर्ता बहुत दुखी हो गए है। अपनी सजी-सजाई और भरी दुकानों मैं हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं । क्योंकि खरीददार वैसे नहीं आ रहे हैं जैसे पहले आते थे। रिटेल ही नही थोक व्यापार भी अब लाइन माध्यम से हो रहा है। विशेष यह की इसमें तरह-तरह के प्रलोभन और विकल्प दिए जा रहे हैं जो ग्राहकों को बुरी तरह से आकर्षित कर रहे हैं।

अब चल रहा है ऑनलाइन और ऑफलाइन का व्यापार का संधि काल। इसमें परंपरागत लेनदेन के कारोबारियों की‌ जड़े हिलने लगी है। संधि काल में ऐसे ही होता है जब कोई नया फैशन शुरू हो जाता है । तो पुराना चलन चरमराने लग जाता है। नया चलन चालू हो जाता है तो उस की उसकी अच्छाई ही ज्यादा दिखने लगती है । जैसे अंधे प्रेम में प्रेमी को प्रेमिका की या प्रेमिका को प्रेमी की बुराई नहीं दिखाई देती। ‌

ऐसे ही नया चलन ज्यादा सहज और आसान मालूम पड़ता है ।‌ उसमें अनेक सुविधाएं दिखने‌ं लगती है। लाइन बिजनेस भी इसी तरह आकर्षित कर रहा है । मोबाइल फोन में यह कंप्यूटर में वस्तु दिखाई तो देती है किंतु आप उसे छू नहीं सकते । उसका वजन आकार प्रकार और उसका ठोस पर नहीं देख सकते। ऑनलाइन वालों ने इसके लिए भी नए तरीके ढूंढ रखे हैं। वे उसकी जांच के लिए अपने स्टोर्स में ग्राहकों को बुलाते हैं। कीमतों में भी भारी छूट देते हैं। ‌

परीक्षा ही सही, एक्सपेरिमेंट के तौर पर सामान्य उपभोक्ता भी उसी को अपनाना चाहता है। एक बार तो अनुभव कर ही लेना चाहता है। देखें तो सही ऑनलाइन लेनदेन कैसे होती है ? यदि एक बार का अनुभव‌ कर देखें तो ऐसे कितने लोग हैं जो एक बार ऐसा ऑनलाइन का व्यवहार करते हैं ।कभी जूते, कपड़े, खिलौने, गद्दी, तोलिए इलेक्ट्रॉनिक चीजें, घड़ियां, फोन खरीदते हैं। धोखा भी खाते हैं पर खरीदते जरूर है। दोस्तों में अपने अनुभव शेयर करते हैं। इस तरह ऑनलाइन लेनदेन के प्रति प्रति आकर्षण हो जाता है । उसी को देख कर खुश हो जाता है।

‌नया ग्राहक सोचता है कि यह चीजे एक बार तो खरीद ले ऑनलाइन से। देखें‌ क्या अनुभव होता है? ऐसे उपभोक्ताओं की भी बहुत लंबी सूची है। फिर प्रैक्टिस होने के बाद तो यह सिलसिला शुरू हो जाता है। न बाजार जाने की झंझट । पार्किंग की समस्या । ना समय की समस्या। लेन देन घर बैठे। ऐसे भी घरों को को देखा जाता है हर तीसरे दिन जहां हर तीसरे दिन कोई मोटरसाइकिल रूकती है । जो ऑनलाइन चीजें बेचने वाला डिलीवरी ब्वॉय होता है । यह परिवार यह दिखाना चाहता है कि वह कितना आधुनिक है और कितना समय बचाता है।

लोगों ने बड़े बड़े शोरूम बरसों से नए-नए रूप रंग में सजा कर रखे हैं अब वे खाली दिखाई देते हैं।

परंपरागत व्यापारियों में इस समय उदासीनता छाई हुई है। दुकानों पर पहले जैसे ग्राहक दिखाई नहीं देते।

इस समय डिजिटल मार्केटिंग और परंपरा और ट्रेडिशनल मार्केटिंग का संधिकाल चल रहा है। युवा वर्ग नई मार्केटिंग व्यवस्था के प्रति आकर्षित होता है जबकि पुराना उपभोक्ता अपनी पुरानी परंपरा को अपनाते हुए बाजार जाता है। आज का नया युवा ग्राहक मोबाइल फोन पर बाजार की वस्तुएं देखना चाहता है तो पुराना ग्राहक परंपरागत दुकानों को देखते हुए मनोरंजन करते हुए परंपरागत‌ पुराने लोगों से दुकानदारों से मिलते हुए चीजें करता है। हाल-चाल पूछ कर एक दूसरे की एनर्जी बढ़ाते हैं। ग्राहकों का और दुकानदारों का पुराना संबंध होता है वह अपने संबंधों को नए धागे में पिरोते हैं।

जबकि जो नए ग्राहक है आधुनिकता से ग्रस्त है अपनों में स्मार्ट रहना है । धोखा खाकर भी उसे मनोरंजक दृष्टांत के रूप में दिखाते हैं। वे स्वयं को आधुनिक दिखाना चाहते हैं। इसलिए वह ऑनलाइन को ज्यादा अपनाने लगे हैं।

जैसे कि पहले बताया यह ऑनलाइन और ऑफलाइन मार्केटिंग का संधि काल है। संधि काल में दोनों काल एक दूसरे से टकराते हैं। पुराने और नए के बीच को जोड़ने वाला काल। काल के गर्भ में नया पुराना सभी होता है इसलिए ऑफलाइन वालों को घबराने की जरूरत नहीं है। चुनौतिया जरूर है किंतु परंपराएं कभी मरती नहीं। परंपराएं भी मानवी विकास का एक ठहरा हुआ ‌क्रम है।

जनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार तो भौगोलिक सीमाओं में बंधे होते हैं। परंतु व्यापार तो सर्वकालिक होता है सर विश्व में कारोबार होता है। अतः ऑनलाइन कारोबार की आंधी से घबराने की जरूरत नहीं है आंधी शांत होती है और संधि काल में दो धूरी को आपस में समाविष्ट करने का प्रयास करती है। यह होगा निश्चित होगा।