प्रिंस अभिषेक
किसी देश का राष्ट्रीय वृक्ष गौरव का प्रतीक होता है,जो देश की पहचान का अभिन्न अंग है। भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद का पेड़ है ,जिसे वैज्ञानिक रूप से फिकस बेंगलेंसिस के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसके बीज सीधे जमीन पर गिरकर अंकुरित नहीं हो पाते इसलिए “बरगद” एक अधिपादप के रूप में अपना जीवन शुरू करता है । वनस्पति विज्ञान में अधिपादप उस वृक्ष को कहा जाता है जब एक पौधा किसी अन्य पौधा पर उगता है या किसी भवन के दरार या नमी वाले लकड़ी की दरार में अंकुरित होकर फिर अपना जीवन शुरू करता है।
बरगद छोटे जीव जंतु से लेकर बड़े पक्षियों को भोजन और आवास मुहैया करके पूर्ण परिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है। इसी कारण मशहूर पक्षीविद् डॉ सलीम अली का पसंदीदा वृक्ष बरगद ही था। उनका कहना था कि यदि कोई पक्षियों को अपने पास बुलाना चाहता है तो वह बरगद का पेड़ लगाए। इसकी एक विशेषता यह भी है कि जहां सारे वृक्ष रात में ऑक्सिजन ग्रहण कर कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं वहीं बरगद ही ऐसा पेड़ है जो रात में भी कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके जीवनदाई ऑक्सिजन छोड़ता है। बरगद का पेड़ बहुत लम्बा होता है और इसे अमर वृक्ष भी कहा जाता है।
बरगद के पेड़ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। भारत में सबसे बड़ा बरगद का पेड़ पश्चिम बंगाल में हावड़ा के शिवपुर में भारतीय वनस्पति उद्यान में है। यह लगभग 25 मीटर लम्बा है।
बरगद के पेड़ के साथ कई धार्मिक मान्यताएँ भी हैं। बरगद को हिंदुओं तथा बौद्ध धर्म में पवित्र वृक्ष के रूप में माना जाता है। हिन्दू धर्म में वट को तीन प्रमुख देवताओं का प्रतीक माना जाता है – इसके जड़ो में भगवान व्रह्मा , मध्य में भगवान विष्णु तो शाखाओं को भगवान शिव का वास कहा गया है । हिंदुओं ने तो अपना एक त्योहार वट वृक्ष को समर्पित किया हुआ है ।
पहले धीमी गति से बढ़ने वाला छायादार बरगद प्रहरी का काम भी करता था । इसका किसी जगह पर अंकुरित होना इसका भी संकेत था कि कहां मीठा पानी मौजूद है। इसी संकेत पर ग्रामीण कुआं खोदते थे। पहले इन पेड़ों की संख्या इतनी अधिक थी कि गांव के सभी कार्य जैसे पंचायतें,चौपालें,भोज,रामलीलाएं आदि इस पेड़ के नीचे होती थी और आज मनुष्य अपने स्वार्थ के अनुसार अपना पूरा ध्यान कम समय में तैयार होकर अधिक मुनाफा देने वाले पेड़ों को उगाने में ही लगा रहा है ,तर्क दिया जाता है कि बरगद का पौधा 30 से 40 साल में वृक्ष का रूप लेता है और फायदा उस पीढ़ी को न मिलकर अगली पीढ़ी को मिलता है।
छोटे जीव जंतु और बड़े पक्षी इस पेड़ की शरण में आकर सुरक्षा का एहसास पाते हैं। प्राथमिक उपभोक्ता कीट,गिलहरी, बुलबुल आदि से लेकर बड़े उपभोक्ता चील, उल्लू बाज आदि के संबंध होने के कारण इस वृक्ष पर एक से अधिक खाद्य श्रृंखलाऐं आपस में मिलती हैं और खाद्य जाल का निर्माण करती हैं। इस तरह यह वृक्ष एक पूर्ण परिस्थितिकी तंत्र की रचना करता है।
प्राणीशास्त्री डॉ एम एम त्रिगुणायत के अनुसार बढ़ते शहरीकरण के कारण बरगद की कटाई से पराग कणों को इधर-उधर बिखेरने वाला किट “वेस्प” विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है । यह किट बहुत ही छोटा और कुछ किलोमीटर तक उड़ सकने में सक्षम होता है साथ ही इसे जीवित रहने के लिए बरगद के फल ‘साइकोबियम’ जरूरत होती है। अगर यह फल इसे तीन-चार दिन के अंदर नहीं मिलता है तो यह नष्ट हो जाता है। अब बरगद के नए पौधे नहीं लगाए जा रहे हैं और पुराने वृक्षों को भी प्रदुषित पानी मिल रहा है जबकि यह वृक्ष मीठे पानी में होता है। इस कारण इसका नष्ट होना स्वाभाविक है।
बरगद से कई स्वास्थ्य लाभ हैं, यह अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण इंसुलिन स्राव को बढ़ाकर रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य करने में मदद करता है। यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी मदद करता है । आयुर्वेद के अनुसार यह अपने गुण के कारण दस्त एवं महिलाओं में ल्युकेरिया(श्वेत प्रदर) जैसी समस्याओं में उपयोगी है । यह अपने सूजन प्रतिरोधी और एनाल्जेसिक गुणों के कारण गठिया से जुड़े दर्द और सूजन को कम करने में मदद करता है । इसके छाल का लेप मसूड़ों के सूजन के लिए आरामदेह होता है।इसके पत्ते बालों के लिए रामबाण हैं। बरगद औषधीय गुणों से भरपूर पक्षियों का सबसे प्रमुख घर और पर्यावरण का मुख्य घटक है लेकिन अब यह वृक्ष दुर्लभ होने लगा है।
बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी में 13 सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं जो खेती के लिए काफी लाभदायक हैं। इसमे ओजोटोवेक्टर ,बैसिलस ,सुडोमोनास , नाइट्रोजन फ़िक्सर, फंगस, मोल्ड्स प्रोटोजोआ आदि पाए जाते हैं। इस पेड़ की नीचे की मिट्टी उत्तम जैविक खाद है । यह फसल के लिए बहुत लाभकारी है, आजकल जहरयुक्त रासायनिक खेती में इस मिट्टी के प्रयोग से हमें जैविक खाद की प्राप्ति होगी जिससे हमारा मिट्टी और हम दोनों का स्वास्थ अच्छा रहेगा।
इतने गुणों वाला होने पर भी बरगद के संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है । बरगद के वृक्ष के लुप्त होने में सरकार और वन विभाग भी कम जिम्मेदार नहीं है । वन विभाग ने आज तक बरगद के वृक्ष को बचाने के लिए कोई जागरूकता कार्यक्रम नहीं लाई है। आजकल नर्सरियों में बरगद का पौधा नहीं के बराबर मिलता है । बाहर का पौधा सफेदा ( यूकेलिप्टस) सभी जगह बड़ी मात्रा में लगाया जा रहा है जोकि जमीन से अधिक पानी खिंचता है लेकिन हमारा राष्ट्रीय धरोहर के तरफ कोई ध्यान नहीं है। सरकार को इसपर ध्यान देते हुए पंचायत स्तर से जागरूकता कार्यक्रम चलाना होगा ताकि अधिक ऑक्सिजन देने वाला हमारा राष्ट्रीय वृक्ष बरगद विलुप्त होने से बच सके।