दीपक कुमार त्यागी
उत्तर प्रदेश के नोएडा की एक पॉश कॉलोनी की सोसाइटी में 5 अगस्त को दो पड़ोसियों के विवाद ने कुछ लोगों की कृपा से ऐसा रंग दिखाया है कि एक माह बाद भी विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। जिस विवाद का सोसाइटी के लोगों या चौकी इंचार्ज के स्तर पर ही निपटारा हो जाना चाहिए था, वह चंद लोगों व राजनेताओं की ओछी राजनीति के चलते एक माह से भी अधिक समय में भी नहीं सुलझ पाया है। दो पड़ोसियों के आपसी विवाद के इस प्रकरण में बेवजह कुछ लोगों ने भगवान श्री परशुराम के वंशजों को घसीट कर जिस तरह से सार्वजनिक रूप से बेहद अपमानजनक शब्दों, विभिन्न जातिसूचक व आपत्तिजनक शब्दों से नवाजने का दुस्साहस किया था, वह सभ्य समाज के लिए उचित नहीं है। कुछ लोगों ने अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए त्यागी ब्राह्मण भूमिहार समाज पर आरोप-प्रत्यारोप करते हुए यह भी नहीं सोचा था कि जो लोग हर वक्त राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर देश की आज़ादी की जंग से लेकर के देश के विकास की जंग तक के लिए हमेशा निस्वार्थ भाव से कार्य करते आये हैं, उस राष्ट्र भक्त त्यागी ब्राह्मण भूमिहार समाज के लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके उन्हें जबरदस्त पीड़ा पहुंचाने का कार्य आखिर वह क्यों कर रहे हैं। वैसे तो किसी भी सभ्य समाज में एक व्यक्ति के कृत्य के लिए किसी पूरे समाज को निशाने पर लेने की इस तरह की ओछी हरकत का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। लेकिन फिर भी इस हरकत को कुछ लोग, राजनेता व मीडिया के लोग जानबूझकर बार-बार करते रहे हैं, जो कि बेहद निंदनीय है। वैसे इन सभी लोगों को पूरे समाज पर आरोप लगाने से पहले यह भी देखना चाहिए था कि किस तरह से उत्तर प्रदेश के नोएडा के गेझा गांव में 21 अगस्त को इसी त्यागी समाज के लाखों लोगों के बड़े जनसैलाब की उपस्थिति में महापंचायत का आयोजन पूरी तरह से शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुआ था, जबकि कुछ लोग यह कयास लगा रहे थे कि नेतृत्व विहीन महापंचायत में बिना किसी बुलावे व संसाधन के आते लोगों को अनुशासन में रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है, लोगों के महा पंचायत के स्थल, सड़कों, टोल प्लाजा, मॉल व बाजारों में हुड़दंग करने का अंदेशा था, लेकिन जब धीरे-धीरे शाम तक सभी जगह से यह रिपोर्ट आयी की कही भी कोई किसी भी प्रकार का हंगामा या हुड़दंग नहीं हुआ है, त्यागी ब्राह्मण व भूमिहार समाज की महापंचायत का पूरा कार्यक्रम शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ है, तो शासन-प्रशासन ने राहत की सांस ली थी। वहीं कार्यक्रम में व्यवधान उत्पन्न होने की आश लगाकर बैठे कुछ लोगों की उम्मीदों को बहुत बड़ा झटका लगा था। वैसे देखा जाये तो देश की एकता अखंडता व विकास के लिए जाति व धर्म के नाम पर आयेदिन जगह-जगह होने वाला बंटवारा बेहद घातक है, लेकिन फिर भी देश में कुछ
राजनेताओं के आशीर्वाद से सार्वजनिक जीवन में जाति व धर्म की बेहद कड़वी सच्चाई को हाल के दिनों में भी झुठलाया नहीं जा सकता है। देश में राजनेताओं का क्षणिक स्वार्थ जाति व धर्म के नाम पर नफ़रती व बेहद जहरीली व्यवस्था को कभी भी समाप्त ही नहीं होने देता है, जिसकी बानगी नोएडा के श्रीकांत त्यागी विवाद प्रकरण में भी देखने को मिलती है।
आज देश के आम जनमानस के लिए आत्ममंथन करने वाली बात यह है कि जिस तरह से पड़ोसी से आपसी विवाद के मसले के बाद से अपने क्षणिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए बात का बतंगड़ बनाने वाले बड़बोले व षड्यंत्रकारी कुछ लोगों ने एक चौकी इंचार्ज के स्तर पर निपटने वाले छोटे से विवाद को बेवजह तूल देने का कार्य किया था, वह समझदार लोगों को आश्चर्यचकित करता है। वैसे तो किसी भी सभ्य समाज में महिला से अभद्रता करने की कोई भी घटना अक्षम्य अपराध है। लेकिन न्याय करने के नाम पर सिस्टम में बैठे कुछ लोगों व राजनेताओं के द्वारा भी श्रीकांत त्यागी की पत्नी बच्चों व निर्दोष मामा-मामी व अन्य लोगों के खिलाफ बड़ा अन्याय कर दिया जाये, देश में यह आखिरकार कैसा न्याय है। श्रीकांत त्यागी पर एक महिला के प्रति अपराध करने के आरोप लगे थे, न्यायहित में यह अच्छा होता कि उसको सजा भी भारतीय नियम कायदे कानून से मिलती, ना कि किसी व्यक्ति विशेष के दवाब या सनक से मिलती। हम सभी लोगों को यह समझना होगा कि इस तरह की स्थिति सभ्य समाज व सिस्टम दोनों के लिए ठीक नहीं है, वहीं अगर इस तरह से ही लोगों को सजा देनी है, तो देश में न्याय करने के लिए बैठी न्यायपालिका की आखिरकार क्या जरूरत है, यह आज के हालात में हम सभी लोगों के सामने एक बहुत बड़ा विचारणीय ज्वलंत प्रश्न है। जिस तरह से श्रीकांत त्यागी के प्रकरण की आग को हमारे बेहद सम्मानित कुछ राजनेताओं व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चंद दिग्गजों ने अपनी टीआरपी के खेल के लिए जमकर भड़काने का कार्य किया था, हम सभी लोगों को निष्पक्ष रूप से यह आत्ममंथन करना होगा कि क्या यह स्थिति देश व समाज के हित में उचित है। इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी अफसोस की बात यह है कि ना जाने क्यों कुछ राजनेताओं व लोगों ने एक व्यक्ति की ग़लती के लिए एक पूरे समाज के लोगों को ही अपराधी बनाकर कठघरे में खड़ा करने का बड़ा दुस्साहस करके, विवाद की छोटी सी चिंगारी को भड़का करके एक भयंकर आग में तब्दील करने का कार्य आखिरकार क्यों किया था। जिसके परिणाम स्वरूप आज़ाद भारत में पहली बार त्यागी ब्राह्मण भूमिहार समाज के अलग-अलग प्रदेशों से आये लाखों लोगों की भीड़ ने नोएडा के गेझा गांव में 21 अगस्त को बेहद विशाल व ऐतिहासिक महापंचायत का शांतिपूर्ण ढंग से आयोजन करवाने का कार्य कर दिया था। वैसे महापंचायत के समय त्यागी समाज के अधिकांश लोगों को उम्मीद थी कि अब श्रीकांत त्यागी की पत्नी व छोटे-छोटे बच्चों को, मामा-मामी व उनके परिजनों की मदद के लिए आये लोगों पर अत्याचार करने वाले और हरे भरे वृक्षों को काटने वाले सभी लोगों को सजा अवश्य मिलेगी और श्रीकांत त्यागी पर अपराध के अनुसार सुसंगत धारा ही शेष बचेंगी। लोगों को यह उम्मीद इसलिए थी कि त्यागी ब्राह्मण व भूमिहार समाज दशकों से भाजपा का कट्टर समर्थक व वोटर है और उत्तर प्रदेश में इस समय भाजपा की ही सत्ता है, इसलिए श्रीकांत त्यागी के विवाद में नियम कायदे कानून की जगह अहंकार में चूर होकर के सनक के आधार पर कार्य करने वाले सभी लोगों के खिलाफ भाजपा के राज में महापंचायत के बाद कार्यवाही अवश्य हो जायेगी, जिसके लिए प्रशासन को 15 दिन का समय भी दिया गया था। हालांकि कुछ लोगों को प्रशासन की नीयत पर शुरू से ही संदेह था, जिसके चलते त्यागी समाज के कुछ लोगों ने शांतिपूर्ण ढंग से मेरठ कमिश्नरी पर आंदोलन शुरू कर दिया था। लेकिन अब 15 दिन की समय सीमा बीतने के बाद भी जब शासन प्रशासन के स्तर पर कोई सम्मानजनक परिणाम नहीं निकला तो इस आंदोलन की आग अब टोल फ्री करवाने के साथ ही उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जनपदों में पहुंचना शुरू हो गई है।
वैसे श्रीकांत त्यागी के इस पूरे प्रकरण पर निष्पक्ष रूप से मंथन करें तो विचारणीय तथ्य यह हैं कि जो मसला पहले ही दिन नोएडा की सोसाइटी की चारदीवारी के अंदर ही बेहद आसानी से सुलझ सकता था, उसे बात का बतंगड़ आखिरकार क्यों बनाया गया था। यह बात बिल्कुल समझ से परे है कि त्यागी समाज की चंद न्याय संगत छोटी-छोटी सी मांगों को पूरा करवाने के लिए उन्हें गेझा में महापंचायत करने के लिए क्यों मजबूर किया गया और उसके बाद भी मसले को समाप्त करने के लिए धरातल पर कोई भी ठोस प्रयास नही करके, लोगों को मेरठ कमिश्नरी में लगातार आंदोलन करने के लिए मजबूर क्यों किया गया। फिर जो मसला मेरठ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से एक मुलाकात के बाद सुलझ सकता था, उसके लिए सिस्टम में बैठे लोगों के द्वारा धरातल पर कोई ठोस प्रयास क्यों नहीं किया गया था। आज की स्थिति में सोचने वाली बात यह है कि अब जब मामला धीरे-धीरे नोएडा से निकल कर मेरठ के बाद अब अन्य जनपदों में बढ़ता जा रहा है, तो उस वक्त भी सिस्टम में बैठे लोगों की चुप्पी समझ से परे है। हालात देखकर लगता है कि कोई तो ताकतवर व्यक्ति है जो इस मसले का निदान समय रहते नहीं चाहता है, वही लगातार शासन-प्रशासन को इस ज्वलंत मसले पर गुमराह करते हुए, धरातल की वास्तविक छिपाने का कार्य करते हुए बात का बतंगड़ बनाने पर आमादा है।
लेकिन अब वह समय आ गया है कि जब शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को समय रहते यह समझना होगा कि त्यागी ब्राह्मण भूमिहार समाज का यह आंदोलन किसी जाति विशेष या राजनीतिक दल के विरोध का नहीं है, बल्कि अब यह आंदोलन पीड़ित लोगों को न्याय के लिए और अन्याय के विरुद्ध के साथ-साथ समाज के मान सम्मान व स्वाभिमान की जंग बनकर धीरे-धीरे फैलता जा रहा है, इसलिए शासन-प्रशासन को जल्द ही सभी पीड़ित लोगों को न्याय देकर के आंदोलन को समाप्त करवाने की ठोस पहल धरातल पर करनी चाहिए।