सीता राम शर्मा ‘चेतन’
हिन्दी हिंदुस्तान की एकता, अखंडता और विकास का मूल आधार है ! यह हिन्दी ही है जो लगभग एक सौ चालीस करोड़ मानवीय जीवन की अनेकानेक भिन्नताओं, विविधताओं के बावजूद उसे एक सूत्र में पिरोकर एक राष्ट्र हिंदुस्तान बनाती है ! जब भी हिन्दी के इस राष्ट्रीय स्वरूप, शक्ति, सामर्थ्य और महत्व की बात होती है बात दक्षिण भारत पर जाकर थम जाती है । विवाद उत्पन्न करती है । पर सच्चाई तो यह है कि यह भाषाई विवाद सामुहिक मानवीय मतभेद ना होकर क्षेत्रीय राजनीतिक स्वार्थों पर आधारित और पोषित मतभेद है, यदि सचमुच मतभेद भाषाई होता तो विरोध मानवीय भी होता । महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, मेघालय, उत्तराखंड और झारखंड जैसे कई राज्य भी इसका विरोध करते, क्योंकि इन राज्यों में भी बहुतायत जनता की एक या कुछ अलग-अलग खास भाषाएं हैं । बोलियां हैं । सच्चाई तो यह है कि हिंदुस्तान में ही नहीं दुनिया के लगभग हर देश में ऐसी भाषाई विविधता है, बावजूद इसके कई राष्ट्र आज एक राष्ट्र भाषा के साथ अखंड, समर्थ, समृद्धशाली और विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर खुद को स्थापित कर चुके हैं । उनकी विविधतापूर्ण भाषा संस्कृति और पहचान वाली संपूर्ण मानवीय आबादी एक भाषा के साथ उस देश के विकास, विश्वास और सामर्थ्य से खुद की शांतिपूर्ण, सुरक्षित, समृद्ध, विकसित और गौरवशाली जीवन की पहचान सुनिश्चित कर उससे संतुष्ट और गर्वित हैं । भारतीयों को उनका अनुकरण करने की जरूरत है । हर भारतीय को यह सच समझने की जरूरत है कि राष्ट्रीय एकता, अखंडता और विकास के लिए जैसे एक राष्ट्र के लिए एक संविधान का होना जरूरी है, ठीक वैसे ही उसकी एक मूल भाषा राष्ट्र भाषा का होना भी बेहद जरूरी है और वह राष्ट्र भाषा किसी भी स्थिति में उसके लिए कतई नुकसानदेह नहीं हो सकती । वह ना तो किसी क्षेत्रीय भाषा के चलन और विकास में बाधक है और ना ही हो सकती है । वह ठीक उसी तरह दो अलग-अलग भाषाई व्यक्ति में ज्यादा आत्मीयता और घनिष्ठता को बढ़ाने मे सहायक है जैसे उनकी धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक मान्यताओं, विचारधाराओं और कार्य पद्धतियों में एक ईश्वरीय समानांतर धर्म, आस्था और मान्यताओं का आत्मीय बंधन ! धर्म, आस्था, विचार, व्यवहार में एकरूपता से जुड़ा भारतीय समाज कभी पारंपरिक रहन-सहन, खान-पान और बोलचाल की भाषाई भिन्नताओं से दूर या एक दूसरे का शत्रु नहीं हो सकता । भाषाई एकता और एक भाषा का ज्ञान इन्हें एक दूसरे का ज्यादा घनिष्ठ और मददगार ही बनाएगा । एक धर्म, एक संविधान और एक राष्ट्र का होने के नाते इनमें एक भाषा को लेकर मतभेद किसी भी दृष्टिकोण से उचित और तर्कसंगत नहीं है । जो विवाद है वह राजनीतिक स्वार्थ से जनित और पोषित है, यह बात वर्तमान राजनीतिज्ञों के साथ विशेष रूप से इन राज्यों की जनता को समझनी चाहिए ।
अब हिन्दी को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात उन कई भारतीय राज्यों की, जिन्हें हिन्दी भाषी राज्य तो कहा जाता है, पर उनमें भी बोलचाल को छोड़कर हिन्दी की स्थिति दोयम दर्जे की है । वहां की शैक्षणिक व्यवस्था में हो या फिर राजकाज की भाषा में, हिन्दी की स्थिति आज भी अत्यंत दयनीय है । अब जबकि भारत आंतरिक और बाह्य रूप से तेजी से बदल रहा है । गुलामी की हर पहचान और थोपी गई षड्यंत्रकारी नीतियों, कुरितियों का त्याग कर अपनी मूल सभ्यता, संस्कृति और महान विरासत को आत्मसात कर उस पर गर्वित हो आगे बढ़ रहा है, तब उसके लिए बहुत जरूरी है कि वह अपनी मूल भाषा को भी हर उस जगह पूरा मान और सम्मान दे जिससे ना सिर्फ उसका महत्व बढ़े बल्कि उसका भविष्य भी ज्यादा समर्थ, सशक्त, सुरक्षित और स्वर्णिम हो सके । इसके लिए बहुत जरूरी है कि हिन्दी राजकाज के साथ सार्वजनिक कामकाज की भी भाषा हो । हिन्दी ज्ञान, अनुसंधान के साथ हमारे दैनिक जीवन के हर स्थान की भी भाषा हो । इसमें सरकार के स्तर पर शैक्षणिक, ज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में बड़ी और दीर्घकालीन पहल की जरूरत है तो कुछ ऐसे बेहद सरल प्रावधान और काम हैं, जिसे वह त्वरित कर सकती है । उसमें सबसे पहले करने योग्य जो काम दिखाई देता है वह है भारत के करोड़ों वाहनों पर लगे नंबर प्लेट पर अंकित पंजीकरण संख्या का इंग्लिश अक्षरों में लिखा होना । आश्चर्य कि बात है कि जब देश में सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में सरकार हिन्दी को प्रोत्साहित कर रही है तब कुछ हिन्दी प्रेमियों के द्वारा अपने वाहनों पर आवश्यक रूप से लगाई जानेवाली अंक पट्टिका पर पंजीकरण संख्या हिन्दी में लिखवाने पर जुर्माना भरना पड़ता है । सरकार को इस पर त्वरित ध्यान देने बढ़ाने की जरूरत है । बेहतर होगा कि सरकार आगे से पंजीकरण संख्या में उपयोग में लाए जाने वाले अंग्रेजी अक्षरों ए से जेड तक की जगह हिन्दी वर्णमला के अक्षर क से ज्ञ तक का सदुपयोग करे । सरकार को चाहिए कि वह अपने सभी कार्यालयों पर भी उसका नाम हिन्दी में लिखवाए । यदि सरकार ऐसे प्रयासों की शुरुआत करे तो जनता में हिन्दी के साथ ज्ञान और अनुसंधान की दिशा में आगे बढ़ना आपरूपी ज्यादा उत्साहवर्धक हो जाएगा और फिर हिन्दी की वह यात्रा स्वतः उसे वह मान-सम्मान दिला देगी जिसकी वह सदैव अधिकारी रही है !