डॉ. विक्रम चौरसिया
लेखक सुरेशचंद्र रोहरा की यह तेरहवीं किताब है। दरअसल, उपन्यास काले धब्बे सच्चे अर्थों में जीवन और मृत्यु की मीमांसा करता दिग्दर्शन कराता है। एक ऐसा कथानक जिसमें एक परिवार के टूटन की कहानी है। महत्ती सच यह कि अपने आप में एक विरल किस्म की पीड़ा समाए हुए हैं जो पाठक को दुख दर्द और गहरी त्रासदी से दो चार कराता है।
गांधीवादी लेखक संपादक सुरेशचंद्र रोहरा के हाल ही में प्रकाशित “काले धब्बे” उपन्यास में मुख्य पात्र राधारमण को अचानक एक दिन पक्षाघात का सामना करना पड़ता है। जब शरीर कोई साथ नहीं देता तब उनकी जिजीविषा के दर्शन होते हैं और पाठक उसमें एक तरह से अश्रुओं के साथ डूबता उतरता है।
उनके दुख सुख को जिस स्वाभाविक रूप से लेखक श्री रोहरा ने शब्दों में पिरोया है वह अपने आप में एक मौलिक लेखन दृष्टि कही जा सकती है। जैसा कि लेखक सुरेशचंद्र रोहरा ने उपन्यास का शीर्षक काले धब्बे रखा है अगर हम उसके औचित्य की बात करें तो कथानक की दृष्टि से यह प्रतीकात्मक अर्थ के साथ मौजूद है।
प्रसिद्ध कथाकार अमृतलाल नागर के उपन्यास “भूख” को पढ़कर जिस तरह की अनुभूति पाठक को होती है कुछ वैसा ही भूख और विपन्नता के दर्शन “काले धब्बे” में भी परत दर परत महसूस पाठक करता है। इस तरह उपन्यास में जीवन और मृत्यु का साक्षात पाठक करता चलता है। आगे के पन्नों में शेखर और लक्ष्मी की रोमानी कहानी पाठक को बांधे रखने में सक्षम सिद्ध होती है… कोरबा और राजिम शहरों के मध्य विकसित कथानक औत्सुक्य उत्पन्न करने में सफल प्रतीत होता है।
लेखक –सुरेशचंद्र रोहरा
प्रकाशक- कस्तूरबा गांधी पब्लिकेशन, छत्तीसगढ़
मूल्य – 10 रूपए