सुरेश हिन्दुस्थानी
कांग्रेस पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर नेताओं में जिस प्रकार से उत्सुकता बढ़ रही है, उसी प्रकार से कई नेता अपने आपको इस पद के लिए दावेदार मानने लगे हैं। यह केवल इसलिए भी हो रहा है कि कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव एक अप्रत्याशित घटना मानी जा रही है। लम्बे समय से लोकतांत्रिक पद्धति से बहुत दूर रही कांग्रेस पार्टी वास्तव में लोकतंत्र को स्वीकार करेगी, ऐसी संभावना भी बहुत कम दिखाई दे रही है। क्योंकि अभी से कहा जा रहा है कि गांधी परिवार का कोई शुभचिंतक ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा? इस बात का आशय यही है कि कांग्रेस में वही होगा, जो गांधी परिवार यानी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी चाहेंगी। ऐसी स्थिति रहती है तो स्वाभाविक रूप से यही कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को भले ही लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान किया जा रहा हो, लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। हम जानते हैं कि राहुल गांधी लम्बे समय से राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस नेताओं के साथ उनका व्यवहार राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा ही था। इसी प्रकार डॉ. मनमोहन सिंह कहने मात्र के लिए सरकार के मुखिया रहे, लेकिन आम धारणा यही बनी थी कि सरकार का सारा संचालन सोनिया गांधी ने ही किया। क्या इस बार भी कांग्रेस ऐसे ही लोकतंत्र को कायम रखेगी।
पिछले लगभग चार वर्ष से खाली पड़े कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर उठापटक जारी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और शशि थरूर अपनी दावेदारी भी प्रकट कर चुके हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी ऐसे ही संकेत दे रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कौन लड़ेगा, इसकी तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस के जिन नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव कराने की मांग की थी, उनमें से कोई नाम सामने नहीं आ रहा है। समूह 23 में शामिल मुकुल वासनिक के नाम की हल्की सी सुगबुगाहट जरूर सुनाई दी, लेकिन वह चुनाव लड़ेंगे, इसकी संभावना कम ही है। कांग्रेस ने भले ही अध्यक्ष पद के चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी है, लेकिन जिस तरह से गांधी परिवार का दखल है उसे देखते हुए नहीं लगता कि यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू होगी। वह इस पद पर अपने अनुयायी को ही बनाना पसंद करेंगे। दरअसल कांग्रेस में युवराज राहुल गांधी ने अध्यक्ष का पद वर्ष 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की करारी पराजय के बाद छोड़ दिया था, तब से ही सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष का प्रभार संभाले हैं। उनकी अस्वस्थता के कारण पार्टी की न तो ठीक से बैठकें हो पाती हैं और न ही कोई बड़ा निर्णय। इस बीच कांग्रेस में कई वरिष्ठ नेताओं के बगावती तेवर सामने आए। इतना ही नहीं पार्टी के अड़ियल रवैये के कारण कई वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस से नमस्ते कर ली, इसलिए अब जाकर संगठन को चुनाव की घोषणा करना पड़ी है। चूंकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गांधी परिवार के पक्के अनुयायी हैं, इसलिए इस पद के प्रबल दावेदार हैं, किंतु उन्हें बार-बार सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दरबार में परिक्रमा करना पड़ रही है। अशोक गहलोत ने नई दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद भारत जोड़ो यात्रा कर रहे राहुल गांधी से भी कोच्चि में मुलाकात की। राहुल से मिले संकेत के बाद गहलोत ने अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ देंगे, की बात कही है। गांधी परिवार के उम्मीदवार के रूप में देखे जाने वाले अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने का इशारा करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनावी मैदान में उतरने के अपने फैसले की घोषणा की। पहले अशोक गहलोत ने कहा था कि वह कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के बाद भी राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में बने रहेंगे। मगर राहुल गांधी ने जब ‘एक आदमी और एक पद सिद्धांत की वकालत की तो इसके बाद अशोक गहलौत के भी सुर बदल गए। वैसे वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भी कह चुके कि गहलोत को मुख्यमंत्री नहीं रहना चाहिए। राहुल गांधी ने कहा था कि नए पार्टी प्रमुख को ‘एक आदमी एक पद सिद्धांत का पालन करना होगा। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी होने के बीच पार्टी नेता राहुल गांधी ने संकेत दिया कि हो सकता है कि वह पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव न लड़ें। एक व्यक्ति, एक पद अवधारणा के मुद्दे पर राहुल गांधी ने कहा हमने उदयपुर बैठक में जो फैसला किया है वह कांग्रेस पार्टी की एक प्रतिबद्धता है। इसके तुरंत बाद अशोक गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी ठीक बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का कोई भी अध्यक्ष कभी मुख्यमंत्री नहीं रहा। लेकिन यहां सवाल यह है कि मुख्यमंत्री पद छोड़ने पर वह अपनी राजगद्दी किसे सौंपेंगे। इसके लिए सचिन पायलट प्रबल दावेदार हैं, जो राहुल के साथ यात्रा में चल रहे हैं जबकि गहलौत कभी नहीं चाहेंगे कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बने। उनकी इच्छा विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी या प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को मुख्यमंत्री बनाने की है।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 22 साल बाद चुनावी मुकाबले की प्रक्रिया आरंभ हो गई है। अब यह भी लगभग तय हो चुका है कि कांग्रेस का अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया से ही बनेगा। इससे पूर्व भी वर्ष 2000 में सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच मुकाबला हुआ था। जिसमें प्रसाद को करारी शिकस्त मिली थी। इससे पहले 1997 में सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट के बीच अध्यक्ष पद को लेकर मुकाबला हुआ था, जिसमें सीताराम केसरी जीते थे। अब कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष का फिर से चुनाव हो रहा है। लेकिन सवाल यह पैदा होने लगा है कि जो भी नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा, वह बिना गांधी परिवार के कांग्रेस की राजनीति कर पाएगा?