गांधीवादी अशोक गहलोत ने एक बार फिर गाँधी परिवार के प्रति दर्शायी अपनी वफ़ादारी

कांग्रेस अध्यक्ष की तस्वीर साफ होने पर होगा राजस्थान मामले का पटाक्षेप

नीति गोपेंद्र भट्ट 

नई दिल्ली।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी गाँधीवादी छवि के अनुरूप एक बार फिर सेकांग्रेस हाई कमान और गाँधी परिवार के प्रति अपनी वफ़ादारी और निष्ठा को प्रदर्शित करते हुए हाल हीराजस्थान में हुए घटनाक्रम की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस की राष्ट्रीय अन्तरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी सेमाफी माँगी है ।

उन्होंने सोनिया गाँधी से लम्बी मुलाक़ात के बाद के सी वेणुगोपाल के साथ बाहर आकर दस जनपथ पर मीडिया को सम्बोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री होने के कारण कांग्रेस विधायक दल की बैठक आयोजितकरानी मेरी जिम्मेदारी थी और कारण कुछ भी रहें हों लेकिन मैं उसे पूरा नही करा पाया,उसके लिए मैंने कांग्रेसअध्यक्षा के समक्ष खेद प्रकट किया और क्षमा माँगी है । उन्होंने कहा कि कांग्रेस में अहम निर्णयों में हाई कमानको एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर भेजने की परम्परा रही है। उन्होंने खेद प्रकट किया कि राजस्थान में जोघटना घटित हुई वह नही होनी चाहिए थी । मैंने सोनिया जी से इसके लिए माफी माँगी है। साथ ही गहलोत ने यह घोषणा भी कर दी कि वर्तमान हालातों में वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नही लड़ेंगे। गहलोत नेमार्मिक ठंग से अपनी भावनाएं प्रकट करते हुए कहा कि राजस्थान की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से मेरे बारे में पूरे देश मेंयह ग़लत सन्देश गया कि मैं मुख्यमंत्री बना रहना चाहता हूँ। साथ ही यह स्पष्ट किया कि राजस्थान मेंमुख्यमंत्री के बारे में मैं नही वरन यह फैसला सोनिया गाँधी ही करेंगी।

उन्होंने मीडिया के सामने अपनी पीड़ा प्रदर्शित करते हुए अत्यन्त भावुक होते हुए कहा कि पिछलें पाँच दशक मेंमेरे जैसे सामान्य कांग्रेसी कार्यकर्ता को पार्टी ने बहुत कुछ दिया है। इन्दिरा गाँधी,राजीव गाँधी और नरसिम्हाराब के प्रधानमंत्री काल में भी मुझे सेवा का मौक़ा मिला तथा सोनिया जी और राहुल जी ने ही मुझे तीसरी बारराजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया। मैं कई बार सत्ता और संगठन के विभिन्न पदों पर भी रहा हूँ।

गुरुवार दोपहर को नई दिल्ली में नाज़ुक सियासी हालातों के मध्य अशोक गहलोत ने सोनिया गाँधी से लम्बीमुलाक़ात की। इस मौके पर कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन मन्त्री के सी वेणुगोपाल भी मौजूद थे। भरौसेमंद सूत्रों केहवाले से बताया गया कि एक से डेढ़ घण्टे तक चली इस अति महत्वपूर्ण मीटिंग से गहलोत ने सोनिया गाँधी कोअपना एक पत्र भी दिया । बताया जाता है कि इस भावनात्मक पत्र में गहलोत ने सारे घटनाक्रम पर गहरा दुःखऔर उनकी छवि बिगाड़ने के लिए हुए कुत्सित प्रयासों पर व्यथित और आहत होने की बात भी लिखी है। साथही पूरे घटनाक्रम के बारे में एक तथ्यात्मक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है ।

सोनिया गाँधी से मिलें सचिन पायलट और राजेन्द्र विधूडी

इधर गुरुवार रात को राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति करनेवाले प्रदेश के कांग्रेस विधायक राजेन्द्र सिंह विधूडी ने भी सोनिया गाँधी से भेंट की और अपना-अपना पक्ष एवं राय रखी।

दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चा के अनुसार वर्तमान हालातों में राजस्थान की असाधारणघटना को यदि कांग्रेस हाई कमान अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेता है तो बतौर प्रतिक्रिया और अन्य प्रदेशों केकांग्रेसियों को सन्देश देने के लिए कोई असामान्य निर्णय भी सामने आ सकते है । विशेष कर प्रियंका गाँधी केसचिन पायलट के प्रति झुकाव को देखते हुए राजस्थान के विधायकों की राय को नजर अन्दाज़ करते हुएपायलट को मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है। जानकारों का मानना है कि ऐसा करना कांग्रेस के लिए पंजाबऔर अन्य प्रदेशों के संदर्भ में किए गए फ़ैसलों की तरह आत्मघाती ही साबित होगा। इसलिए अशोक गहलोतको ही मुख्यमंत्री बनाए रखना सबसे उपयुक्त हल होगा।राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है किगुटबाज़ी को समाप्त करने के लिए कांग्रेस हाई कमान गहलोत-सचिन दोनों के स्थान पर किसी अन्य सर्व मान्यचेहरे को मुख्यमंत्री के रुप में आगे ला सकती है। जानकारों का यह भी कहना है कि कांग्रेस हाई कमान अभी भीअशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने और राजस्थान में अपनी पसन्द के नेता को मुख्यमंत्री बनासकता है। हालाँकि वर्तमान हालातों में इसकी सम्भावनाएँ बहुत क्षीण है। फिर भी बताया जाता है कि राहुलगाँधी ने भारत जोड़ों यात्रा के मध्य गहलोत से इस बारे में पुनः बात की है। वैसे इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीहुई है।

इधर राजनीतिक गलियारों में चल रही अन्य चर्चाओं में खुलें तौर पर कहा जा रहा है कि राजस्थान मामले कापटाक्षेप होना आसान नही है । विशेष कर गहलोत समर्थक विधायकों की संख्या को देखते हुए मुख्यमंत्री केरूप में ऊपर से किसी नेता को थोपना अब इतना आसान नही होगा और यदि ऐसा होता है तो राजस्थान में भीपार्टी के टूटने के ख़तरे से इंकार नही किया जा सकता है।