संदीप ठाकुर
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लाख मना करें,सफाई दें, माफी मांगें
कि उन्होंने अपने कांग्रेस विधायकों को नहीं भड़काया लेकिन उनकी इस बात पर
कौन यकीन करेगा? उनके 92 विधायकों ने खुलेआम बगावत कर वह काम कर दिखाया
है, जो भारतीय राजनीति के इतिहास में किसी भी पार्टी के शासन में किसी भी
राज्य में ऐसा कभी नहीं हुआ। राजस्थान के कांग्रेसी विधायकों ने जो
सत्साहस किया है,उससे साफ साफ यह ध्वनि निकल रही है कि आलाकमान की ऐसा की
तैसी। कौन है आलाकमान…सोनिया गांधी और राहुल गांधी ! होंगे आलाकमान
अपने घर के,हम पार्टी वाले तो नहीं मानते। और आलाकमान की मजबूरी देखिए कि
वह चाह कर भी अशोक गहलोत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। इतना
ही नहीं गहलोत काे इस बगावत का जिम्मेदार मानने का जगह क्लीन चिट दे दी
गई है।
कांग्रेस आलाकमान आज जिस निरीह स्थिति में है,शायद ही किसी अन्य राजनीतिक
पार्टी का आलाकमान हाेगा। इन दिनों ही नहीं बल्कि विगत कई वर्षों से
कांग्रेस आलाकमान की स्थिति ऐसी हो गई है कि कोई भी उसकी बात नहीं सुन
रहा है। सिर्फ अशोक गहलोत या सचिन पायलट का मामला नहीं है। कैप्टन
अमरिंदर सिंह की कहानी कुछ समय पहले ही हुई और उसी समय भूपेश बघेल और
टीएस सिंहदेव का ड्रामा दिल्ली में चला। राहुल गांधी कितनी बार डीके
शिवकुमार और सिद्धारमैया को बुला कर समझा चुके हैं लेकिन दोनों पर कोई
असर नहीं है। इसी तरह मध्य प्रदेश में कमलनाथ अपनी शर्तों पर, अपने हिसाब
से राजनीति करते हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर चल रही
कयासबाजी में मध्य प्रदेश इकाई के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ का नाम लिया जा
रहा है लेकिन उन्होंने साफ कर दिया है कि वे किसी हाल में मध्य प्रदेश
नहीं छोड़ेंगे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पूछे गए
सवाल पर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ ने मीडिया से कहा कि मैं
पहले भी कह चुका हूं कि मैं मध्यप्रदेश नहीं छोड़ना चाहता हूं। 12 माह
बचे हैं और यदि मैं कोई नई जिम्मेदारी लेता हूं तो मेरा ध्यान मध्य
प्रदेश से हटेगा। अभी मेरा पूरा फोकस सिर्फ मध्यप्रदेश पर है।
अब फिर से आते हैं राजस्थान के घटनाक्रम पर। दो साल पहले सचिन पायलट ने
बगावत की और विधायकों को लेकर हरियाणा में बैठे रहे। उस समय अशोक गहलोत
ने अपनी जादूगरी दिखाई और सरकार बचा ली। मन मार कर सचिन वापस लौटे और
पार्टी के लिए काम शुरू किया। अब एक बार फिर राजस्थान में संकट है। सीधे
सोनिया और राहुल गांधी ने अशोक गहलोत से बात की। राहुल ने सचिन पायलट से
भी बात की। लेकिन ऐसा लग रहा है कि किसी को आलाकमान की बातों में
दिलचस्पी नहीं है। सब अपने राजनीतिक हित के हिसाब से फैसला कर रहे हैं।
गहलोत गुट ने दिखा दिया कि यदि मां-बेटा उनके नेतृत्व के साथ दुर्व्यवहार
करेगा तो राजस्थान से भी कांग्रेस का सफाया वैसा ही हो जाएगा, जैसा कि
पंजाब से हुआ है। पंजाब,राजस्थान ही नहीं इस तरह का विवाद छत्तीसगढ़ में
भी हुआ था। राज्य सरकार के ढाई साल पूरे होने पर टीएस सिंहदेव ने
मुख्यमंत्री बनाने का दावा किया था। इसे लेकर कई दिन तक कांग्रेस के
छत्तीसगढ़ के विधायक दिल्ली में डेरा डाले रहे। पार्टी आलाकमान को उस समय
समझ में आ गया था कि अगर मुख्यमंत्री को बदलेंगे तो पार्टी टूटेगी।
पंजाब में चेंज किया तो कैप्टन अमरिंदर सिंह पार्टी छोड़ कर चले गए।
कांग्रेस ने उनको मुख्यमंत्री पद से हटा कर चरणजीत सिंह चन्नी को
मुख्यमंत्री बनाया और उसके कुछ ही दिन बाद कैप्टेन ने भी पार्टी छोड़ी और
बाद में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने भी पार्टी छोड़ दी। चुनाव
से ठीक पहले हुई इस कलह का नतीजा यह हुआ कि पंजाब में कांग्रेस का सूपड़ा
साफ हाे गया। अभी कांग्रेस के लिए उम्मीदों का प्रदेश कर्नाटक है, जहां
अगले साल चुनाव होना है और कांग्रेस को लग रहा है कि वह जीत सकती है।
लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार
दोनों आपस में लड़ रहे हैं। राहुल गांधी ने दोनों को दिल्ली बुला कर बात
की और उनको समझाया लेकिन इसका कोई असर दोनों पर नहीं हुआ है। वैसे भी जब
नेतृत्व कमजोर हाेता है ताे क्षत्रप सिर उठाते ही हैं।
देखा जाए तो कांग्रेस ने जब से आंतरिक चुनाव का ऐलान किया है, तब से
पार्टी में सबकुछ ठीक होता नहीं दिख रहा। कांग्रेस वर्किंग कमिटी की
मीटिंग में ही आनंद शर्मा ने अध्यक्ष चुनाव में वोट डालने वाले कांग्रेस
डेलिगेट्स की लिस्ट सार्वजनिक करने की मांग कर दी। बाद में शशि थरूर,
मनीष तिवारी समेत 4 सांसदों ने भी वोटर लिस्ट सार्वजनिक करने की मांग की।
उस मुद्दे को किसी तरह आलाकमान ने संभाला। थरूर ने चुनाव लड़ने के संकेत
दिए। इसी बीच अशोक गहलोत का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के लिए उछला। सिर पर
गांधी परिवार का हाथ होने की वजह से उनका पार्टी चीफ बनना तय माना जा रहा
था। लेकिन कहानी में फिर ट्विस्ट आया और राजस्थान में बवंडर शुरू हो गया
जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं ।