नीति गोपेंद्र भट्ट
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आज से सौ साल से भी सबसे पहले दिल्ली की यात्रा की थी।
दक्षिण अफ्रीका से बैरिस्टर बनकर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक भारतीय राष्ट्रवादी, चिंतक और संगठनकर्ताकी छवि लेकर भारत लौटे मोहनदास करमचंद गांधी ने दिल्ली में पहली बार पदार्पण किया था।
गांधी जी अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर भारत को गहराई से जानने के लिए भ्रमणपर निकले थे। वे 12 अप्रैल 1915 को दिल्ली पहुंचे। आधिकारिक दस्तावेजों के मुताबिक यहां अपने दो दिन केप्रवास के दौरान वे कुतुबमीनार, लाल किला, सेंट स्टीफेंस कॉलेज और संगम थियेटर आदि मशहूर स्थल देखनेगए थे।
बैरिस्टर गांधी से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बनने तक के अपने सफर में यूं तो बापू कई बार दिल्ली आए, लेकिनउनका यह पहला प्रवास इस लिहाज से अहमियत रखता है कि इस दौरान वे हिंदुस्तान के जीवन को नजदीक सेसमझने निकले थे। इस दौरे में उनके साथ पत्नी कस्तूरबा गांधी, रावजीभाई कोटवाल, देवधर व कुछ अन्य लोगभी दिल्ली आए थे। हालांकि यहां से वे सिर्फ देवधर के साथ आगे की यात्रा के लिए रवाना हुए।
बापू की डायरी में 13 अप्रैल की सुबह उनके छात्रों के एक कार्यक्रम में होने का उल्लेख है। यह कार्यक्रम सेंटस्टीफेंस कॉलेज का था। संभवत: वे कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल सुशील कुमार रुद्र के पास रुके थे, हालांकि डायरी में इसका उल्लेख नहीं है। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व करके भारतलौटे गांधीजी दिल्ली को अपनी नजर से परख रहे थे। कुतुबमीनार और लाल किला तो महज पत्थर की इमारतेंथीं, गांधीजी तो भविष्य के भारत की नींव देख रहे थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दिल्ली में 80 बार आए और 720 दिन ठहरें। यहां उन्होंने अपने जीवन के आखिरी144 दिन बिड़ला हाउस में बिताए थे, जो आज ‘गांधी स्मृति’ के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर उनकीहत्या हुई थी और दिल्ली के राजघाट पर उनका अंतिम संस्कार भी हुआ।
दिल्ली में गांधी जी से जुड़े महत्वपूर्ण स्थलों के अलावा उन कुछ अन्य स्थलों पर उनकी स्मृतियां अनूठे रूप मेंसंजोई हुई हैं।
गांधी स्मृति
गांधी स्मृति या गांधी स्मृति संग्रहालय वह स्थल है जहां राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी ने अपने जीवन के आखिरी144 दिन बिताएं थे। गांधी स्मृति को पहले बिड़ला हाउस या बिड़ला भवन के नाम से पुकारा जाता था। यह वहजगह भी है जहां 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
इस घर को केंद्रीय सरकार ने 1971 में अपने कब्जे में कर लिया और आम जनता के लिए 15 अगस्त 1973 कोखोल दिया। यहां एक शहीद स्तंभ भी है जहां महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। संग्रहालयमें महात्मा गांधी के जीवन और मृत्यु से संबंधित कई लेख भी दर्शाए गए हैं।
संग्रहालय में तस्वीरों को विशाल संग्रह है और उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली किताबें व अन्य सामान भीरखा गया है। मूलत: यह घर बिड़ला परिवार का था, जहां महात्मा गांधी दिल्ली आने के दौरान रूका करते थे।इस संग्रहालय के बाहर एक खंभा है जिस पर एक स्वास्तिक चिन्ह् और ओम का प्रतीक बना हुआ है।
अगर आप शांति का दूत महात्मा गांधी, के जीवन को महसूस करना चाहते हैं तो इस जगह अवश्य जाएं। इसजगह की शांति और ठहरा हुआ वातावरण आपको यहां और समय बिताने के लिए प्रेरित करता है। यहसंग्रहालय सोमवार और अन्य राष्ट्रीय अवकाश के दौरान बंद रहता है और सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तकखुला रहता है।
राजधाट : जहां अरबसागर साबरमती और यमुना के त्रिवेणी संगम वाले महात्मा की समाधि हैं।
महात्मा गांधी द्वारा 1932 में शुरू किया हरिजन सेवक संघ भी दिल्ली के कुछ सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एकहैं। गांधी सबसे पहले 1915 में दिल्ली आए थे। उस समय उनकी उम्र 45 साल थी और वे दक्षिण अफ्रीका सेलौटे थे। उन्होंने तब कुतुबमीनार और लाल किला का भ्रमण किया था। वे सेंट स्टीफन कॉलेज भी गए थे, जोतब कश्मीरी गेट में हुआ करता था। उस इमारत में अब दिल्ली प्रदेश चुनाव आयोग का दफ्तर है। उस समयकॉलेज के प्रिंसिपल सुशील कुमार रुद्र ने अपने घर पर गांधी की मेजबानी की थी। साल 1921 में गांधी ने एकबार फिर एक कॉलेज का भ्रमण किया। इस बार वे करोल बाग में स्थित आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बियाकॉलेज के नए भवन का उद्घाटन करने आए थे, जिसका शिलान्यास तत्कालीन ब्रिटिश वाइसराय ने किया था।
दिल्ली के मंदिर मार्ग पर निर्मित सुंदर वाल्मीकि मंदिर के परिसर में स्थित बापू निवास अपने सीने में इतिहासको समेटे हुए है। गांधी यहां 1 अप्रैल 1946 से लेकर 1 जून 1947 तक रहे थे। दिल्ली में गांधी से जुड़े स्थलों मेंयह शायद सबसे कम ज्ञात स्थल है। यह बड़ा शांत कमरा पवित्र संग्रहालय जैसा है। यहां प्रदर्शित चीजों कोआप छू सकते हैं। दीवारें प्रसिद्ध लोगों के साथ गांधी के श्वेत-श्याम छायाचित्रों से सजी हैं।
जब दिल्ली बन गई फिल्म का सेट
दिल्ली ने रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्देशित और कई ऑस्कर जीतने वाली फिल्म ‘गांधी’ में अहम भूमिका निभाईथी। इस फिल्म के कई दृश्य मुंबई, पटना व पुणे में तथा उनके आसपास के इलाकों में फिल्माए गए थे। इसफिल्म के कई शानदार और विशाल सेटों को बढ़इयों, राजमिस्त्रियों व दस्तकारों की एक समर्पित टीम द्वारा नईदिल्ली के फ्रेंड्स कॉलोनी स्थित मेनर होटल में तैयार किया गया था। कॉस्ट्यूम डिजाइनरों ने भी फिल्म केअतिरिक्त कलाकारों के पोशाक तैयार करने के लिए मध्य दिल्ली के अशोक होटल के कन्वेंशन हॉल के बेसमेंटमें कड़ी मेहनत की थी।
गांधी के अहमदाबाद के साबरमती आश्रम का सेट राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के फरीदाबाद के पास तैयार कियागया था। जालियांवाला बाग नरसंहार के दृश्य राजधानी में फिल्माए गए थे। उत्तरी दिल्ली में स्थित रोशनआराक्लब को बिहार के चंपारण क्रिकेट क्लब का रूप दिया गया था। वहीं गुरुग्राम के पास स्थित एक छोटे-सेरेलवे स्टेशन गढ़ी-हरसरु को पीटरमॉरित्जबर्ग स्टेशन बनाया गया। दक्षिण अफ्रीका के इसी रेलवे स्टेशन परगांधी को फस्र्ट क्लास डब्बे से बाहर निकाल फेंका गया था। इस फिल्म का वल्र्ड प्रीमियर 30 नवंबर, 1982 को सिनेमाहॉल चाणक्य थियेटर में हुआ था। इसके वल्र्ड प्रीमियर में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी शामिल हुई थीं।
गांधी की अंतिम यात्रा
किसी भी दिल्ली वॉकिंग गाइड में गांधी की अंतिम यात्रा का मार्ग, बिड़ला हाउस, जहां उन्हें गोली मारी गई औरयमुना का तट, जहां उनकी अंत्येष्टि हुई थी, नहीं बताया जाता, जो काफी हैरानी की बात है। गांधी की हत्या30 जनवरी 1948 की शाम बिड़ला हाउस में हुई थी। ब्रिटेन की पत्रिका ‘हिस्ट्री टुडे’ की एक रिपोर्ट केमुताबिक, ‘उनका पार्थिव शरीर बिड़ला हाउस की छत पर रखा गया था। उन्हें सूती कपड़े में लपेटा गया था।चेहरा खुला रखा गया था। मात्र एक स्पॉटलाइट जल रही थी, जिसका प्रकाश उन पर पड़ रहा था।’
गांधी का अंतिम संस्कार अगले दिन शाम को ही कर दिया गया। लाखों लोगों का जुलूस सुबह 11.45 बजे सेअल्बुकर्क रोड (अब 30 जनवरी मार्ग) से शुरू हुआ। यह जुलूस क्वींसवे, किंग्सवे और हार्डिंग एवेन्यू से होतेहुए गुजरा। पत्रकार लुई फिशर के अनुसार, ‘उस दिन बहुत ठंड थी। तेज हवा चल रही थी। गांधी का पार्थिवशरीर शाम 4.20 बजे अंत्येष्टि स्थल पर पहुंचा। 25 मिनट बाद गांधी जी के तीसरे पुत्र रामदास ने चिता कोअग्नि दी। 14 घंटे बाद अवशेषों को घर में बुनी गई सूत की थैली में एकत्र किया गया, फिर उसे तांबे के एककलश में रख कर उस पर यमुना के पवित्र जल का छिड़काव किया गया और वापस बिड़ला हाउस ले जायागया।’
दो महान हस्तियों का मेल
अमेरिका के मानवाधिकार नेता मार्टिन लूथर किंग गांधी को ‘अहिंसक सामाजिक परिवर्तन के हमारे रास्ते कापथप्रदर्शक’ मानते थे। वह 1959 में भारत की पांच सप्ताह की यात्रा पर आए थे। पालम एयरपोर्ट पर उतर करउन्होंने एक बात कही, ‘दूसरे देशों की यात्रा पर मैं एक यात्री के रूप में जाता हूं, पर भारत आता हूं तीर्थयात्री केरूप में।’ दिल्ली का ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ इन दो महापुरुषों के बीच के आत्मिक संबंधों का स्मरण कराताहै, जो संयोग से कभी नहीं मिले। गांधी-किंग प्लाजा एक छोटा-सा बगीचा है, जो इस सेंटर के एक कोने मेंस्थित है। यहां एक धूसर स्तंभ है, जिस पर अंग्रेजी व हिंदी में दोनों महापुरुषों की उक्तियां उत्कीर्ण हैं।