पूरे देश को राह दिखाती दिल्ली की शिक्षा-क्रांति

ललित गर्ग

देश ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के शिक्षा मॉडल का जिक्र एवं अनुकरण होना निश्चित ही गौरव की बात है। चाहे चुनावी मंच हो, किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री का दिल्ली आगमन हो या फिर विदेशों से आने वाले राजनयिक मेहमान केजरीवाल सरकार दिल्ली के शिक्षा मॉडल को ही सबसे आगे पेश करती है और संभवतः केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों के नाम पर दो ही उपक्रम है एक शिक्षा एवं दूसरा मौहल्ला क्लीनिक। दिल्ली के सरकारी स्कूलों की दशा एवं दिशा ही नहीं सुधरी है, बल्कि उनके परीक्षा परिणामों ने चौंकाया है। दिल्ली से शुरु हुई उन्नत शिक्षा की एक सार्थक पहल देश के अन्य प्रांतों द्वारा अपनायी जानी चाहिए। शिक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्र को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्नत इंसानों को गढ़ने की इस प्रयोगशाली को नित-नये रूप दिये जाने एवं व्यापक सुधार की अपेक्षा निरन्तर बनी ही रहती है। दिल्ली सरकार ने शिक्षा को उन्नत बनाने के ईमानदार प्रयत्न किये है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। उन्नत साधन-सुविधाओं के साथ दिल्ली के सरकारी स्कूल नवाचार की दृष्टि से भी उल्लेखनीय पहल कर रहे हैं। आप की 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर से लगातार जबरदस्त जीत में सरकारी विद्यालय प्रणाली में सिरे से सुधार में उसकी ज़बरदस्त कामयाबी का भी बड़ा हाथ है। इसी उपलब्धि को लेकर आप के केजरीवाल अब गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी भुनाने के जतन कर रहे हैं।

दिल्ली के सरकारी स्कूलों के परीक्षा-परिणाम इस वर्ष राष्ट्रीय सुर्खियों में छाए रहे। सीबीएसई के कक्षा 12 के परीक्षा परिणाम दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 98 प्रतिशत विद्यार्थी पास हुए हैं अर्थात यह अब तक सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड है। ऐसा लगातार पांचवें साल हुआ है कि दिल्ली में निजी विद्यालयों के मुकाबले सरकारी स्कूलों में उत्तीर्ण विद्यार्थियों का प्रतिशत बेहतर रहा है। पास हुए छात्र-छात्राओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले इस बार छह प्रतिशत अधिक है। दिल्ली में निजी स्कूलों ने 92.2 प्रतिशत परिणाम हासिल किया है और सरकारी विद्यालयों ने 97.92 प्रतिशत हासिल किया जो समूचे देश के सरकारी स्कूलों में सबसे अधिक है। इसका श्रेय जहां दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को दिया जाता है, वहीं दिल्ली के शिक्षा निदेशक हिमांशु गुप्ता की सोच, प्रयत्न एवं श्रम उल्लेखनीय है। निश्चित ही दिल्ली में एक अभिनव शिक्षा क्रांति की पदचाप सुनाई दे रही है। आजादी का अमृत महोत्सव मना चुके राष्ट्र की सरकारी स्कूलों का गिरता शिक्षा स्तर एवं बुनियादी सुविधाओं का अभाव सरकारों पर एक बदनुमा दाग है, एक बड़ी नाकामी का द्योतक है। प्रश्न है कि किसे फिक्र है हमारी शिक्षा की?

निजी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था के सामने देशभर में सरकारी विद्यालय प्रणाली लगातार निस्तेज एवं अप्रभावी होती रही है। लेकिन दिल्ली में आप सरकार ने एक चमत्कार घटित करते हुए सरकारी विद्यालय प्रणाली का कायापलट कर दिया। जबकि कभी राष्ट्रीय राजधानी में यह क्षेत्र एकदम उपेक्षित रहा था। आप की सरकार ने साल 2015 से साल 2020 के बीच ‘शिक्षा सबसे पहले या एजूकेशन फ़र्स्ट’ जैसा आकर्षक नारा देकर दिल्ली सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में नई जान फूंकी। आप सरकार शिक्षा मंत्रालय संभाले उनके नायब/उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में शिक्षा के लिए अधिकतम राशि का आवंटन किया, शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की नई तकनीक और विद्यार्थियों के वास्ते नए पाठ्यक्रम लागू किए तथा स्कूलों का दम तोड़ता बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए जी खोल कर संसाधन मुहैया कराए। राजधानी के कभी सिरे से पिछड़े सरकारी विद्यालयों का स्पष्ट कायाकल्प करने में शिक्षा निदेशक हिमांशु गुप्ता, उनकी सूझबूझ, प्रशासनिक क्षमता एवं नवाचार के प्रयोग भी कारगर रहे हैं। आप सरकार एवं मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने वायदे पूरे करने में सबसे अधिक महत्व शिक्षा प्रणाली और सरकारी स्कूलों का कायापलट करने को दिया। आप सरकार ने राज्य के बजट में से अच्छी खासी राशि विद्यालयी शिक्षा प्रणाली बदलने के लिए आवंटित की। शिक्षा क्षेत्र के इस बजट राशि का सदुपयोग अधिकतर उसकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया गया। इसे मुख्यतः विद्यालयों के खस्ताहाल बुनियादी ढांचे को बनाने, शिक्षक प्रशिक्षण प्रणाली और विद्यार्थियों के अध्ययन कार्यक्रमों में नई जान फूंकने पर ख़र्च किया गया।

दिल्ली में अधिकतर सरकारी स्कूलों की बेहद खस्ता एवं जर्जर हालात थी। इस वजह से विशेषकर सामाजिक तथा आर्थिक रूप में पिछड़े मां-बाप सहित अधिकतर अभिभावकों को अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ने भेजना पड़ रहा था। इसका उन पर आर्थिक बोझ पड़ रहा था। आप सरकार ने नब्ज़ पकड़ ली और जल्द से जल्द शिक्षा संबंधी संरचना का कायाकल्प करने पर ध्यान लगा दिया। विद्यार्थियों के मन पर पढ़ाई का बोझ घटाने के लिए आप सरकार ने हैपीनैस अर्थात खुशहाली पाठ्यक्रम शुरू किया। इसके लिए कक्षा में अध्ययन के अनेक नए तौर-तरीके अपनाए गए। कायाकल्प करने के लिए आप सरकार ने फटाफट अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लेकर उन पर अमल किया। उदाहरण के लिए भरपूर वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के साथ ही दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने आधुनिक सुविधायुक्त कम से कम 21 नई स्कूली इमारतों का निर्माण किया। इसके साथ-साथ कक्षाओं के लिए 8000 नए सुसज्जित कमरों का निर्माण भी किया गया। इसके अलावा सरकारी स्कूलों को प्रयोगशाला यानी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित लैब, स्मार्ट कक्षाएं तथा ई-मॉड्यूल बनाने के लिए भी उपयुक्त धनराशि दी गई ताकि अध्ययन आकर्षक बन सके। हिमांशु गुप्ता के अनुसार आप सरकार ने हर तरह से सरकारी स्कूलों को आधुनिक शक्ल देने एवं शिक्षा का स्तर उन्नत बनाने के लिये निर्देश दिये।

सरकारी प्रोत्साहन एवं उनके मिशन के लिये ही अधिकारियों के साथ शिक्षक भी जुट गये। कक्षा में अध्ययन के अनेक नए तौर-तरीके अपनाए गए। महत्वपूर्ण यह है कि आप सरकार ने विद्यालयों में तीन स्तरीय पुस्तकालय ढांचा बनाने का अत्यंत उपयोगी निर्णय किया। इसके साथ ही सरकारी विद्यालयों में पीने के पानी तथा लड़की-लड़कों के अलग-अलग पेशाब घर, बिजली के कनेक्शन तथा कम से कम 90 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा भी प्रदान की गई। प्रादेशिक शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने दिल्ली सरकार संचालित विद्यालयों में पढ़ाने वाले 36000 से अधिक शिक्षकों के लिए सघन क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाया। इनमें से 26000 शिक्षक ट्रेंड ग्रैजुएट एवं 10000 शिक्षक पोस्ट ग्रैजुएट थे। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए और एक महत्वपूर्ण पहल शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करके की। इस कार्यक्रम का उद्देश्य शिक्षकों को उनके विषय से संबंधित ताजा जानकारी से अद्यतन कराना है। साल 2018 में 200 शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान अर्थात एनआईई में दुनिया के मंजे हुए शिक्षाविदों से प्रशिक्षित कराया गया। इन 200 शिक्षकों द्वारा अपना प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद इन्हें ‘मेंटोर टीचर्स’ अर्थात मार्गदर्शक शिक्षकों का दर्जा दिया गया।

सन् 2018 में दिल्ली सरकार द्वारा करवाए गए उपलब्धि सर्वेक्षण के दौरान कुछ महत्वपूर्ण तथ्य दृष्टिगत हुए जिसके आधार पर सरकार ने फैसला किया कि छात्रों के शैक्षिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कक्षा 3 से कक्षा 8 तक के सभी छात्रों के लिए स्कूलों में मिशन बुनियाद कार्यक्रम चलाया जाएगा। मिशन बुनियाद कार्यक्रम जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि छात्रों की बुनियाद को मजबूत करने के लिए एक विधिवत कार्यक्रम की नींव रखी गई जिससे छात्रों को बेसिक शिक्षा प्राप्त करने में कोई कठिनाई न हो। मनीष सिसोदिया के अनुसार सरकार के नए दिल्ली मॉडल वर्चुअल स्कूल से दिल्ली की शिक्षा क्रांति को एक नया आयाम मिल रहा है, बाबासाहेब का सपना पूरा हो रहा है। इसके साथ अब देश के किसी भी कोने से बच्चे किसी भी समय दिल्ली की विश्वस्तरीय शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

उल्लेखनीय यह है कि दिल्ली की शिक्षा प्रणाली को भारत के अन्य राज्य भी लगातार अपना रहे हैं। विदेशों में भी इसके प्रति आकर्षण देखने को मिल रहा है। प्रश्न है कि बड़ी-बड़ी उपलब्धियों के बावजूद सरकार शिक्षा में इतना पिछड़ापन क्यों? हम सबके माथे पर यह शर्म क्यों? दिल्ली ने पहल की है, उसका स्वागत होना चाहिए। हालांकि, बड़ी चुनौतियों से पार पाना अभी बाकी है। सरकार ने विद्यालयों का बुनियादी ढांचा तो बड़े पैमाने पर सुधारा है मगर अभी शिक्षकों की समुचित संख्या में स्थाई नियुक्ति करने में वह नाकाम रही है। स्कूली शिक्षा के अन्य महत्वपूर्ण आयामों में भी कमियां जताने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार के विद्यालयों का गुज़ारा वांछित संख्या के सिर्फ 57 प्रतिशत नियमित शिक्षकों से पढ़वा कर ही किया जा रहा है। बाकी शिक्षकों की ज़िम्मेदारी गेस्ट फेकल्टी उठा रहे हैं। दिल्ली सरकार के विद्यालयों में शैक्षिक एवं अशैक्षिक स्टाफ दोनों के ही स्वीकृत पदों एवं कुल नियुक्तियों में भारी अंतर है। आरटीआई से मिली सूचनाओं के अनुसार दिल्ली में फैले कुल 1029 सरकारी विद्यालयों में से मात्र 301 स्कूलों में ही विज्ञान विषय की पढ़ाई की व्यवस्था है। आप सरकार ने नए शिक्षा कार्यक्रम आरंभ किए मगर दाखिले की दर में अभी भी गिरावट है। उम्मीद है कि सीबीएसई के ताजा परिणाम एवं आप सरकार के नये संकल्प सरकारी स्कूल शिक्षा में नई लकीर खींचने में मददगार साबित होंगे। संक्षेप में कहें तो स्कूली शिक्षा में ‘क्रांति’ लाने के आप के दावे को फिलहाल अभी कई मंजिलें तय करनी होगी।