वन्दे मातरम् का वंदनीय शासनादेश

सीता राम शर्मा ” चेतन “

लोगों की छोटी-छोटी बातें, आदतें, अभिव्यक्ति, स्वीकृति मानवीय जीवन आचरण, व्यवहार और देश समाज का बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है ! जन्म के पश्चात माँ का संबोधन बच्चे में आत्मीयता और अपनापन का अहसास भर देता है । दादाजी, दादीजी, नानाजी, नानीजी जैसे संबोधन उनके प्रति आदर का चरित्र गढ़ते हैं । पाठशाला जाने पर शिक्षकों को सर और मैडम के संबोधन बच्चे में उनके प्रति सम्मान का स्थाई बोध विकसित करते हैं । घर के पूजन कक्ष अथवा दीवारों पर लगी ईश्वर की तस्वीरों के सामने अपने अभिभावकों को सिर झुकाते और उनकी जय-जयकार करते देख बच्चे बालपन से ही ईश्वर के प्रति आस्थावान हो जाते हैं । स्पष्ट है कि ये तमाम नियमित संबोधन और आदर सम्मान के भाव कर्म पूरे मनुष्य जीवन के आचरण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हो जाता है । जिन घरों में या जिन बच्चों को परिस्थितिवश ये प्रारंभिक संस्कार नहीं दिए जाते, मिलते, उनके जीवन में भटकाव की संभावनाएं बढ़ जाती है । घर के आसपास, पड़ोस, मोहल्ले, गांव या शहर के लोगों के संबोधन और आचरण से हर एक मनुष्य का जीवन चरित्र प्रभावित होता है । उसके मन-मस्तिष्क में दृश्य और अदृश्य रिश्ते-नातों, चीजों और आस्थाओं के प्रति जीवन चरित्र और संस्कार निर्मित होते चले जाते हैं । अंततः उसके उस एकाकी और सामाजिक चरित्र से देश दुनिया की व्यवस्थाएं भी प्रभावित होती है । अतः बहुत जरूरी है कि व्यक्ति, समाज और देश की व्यवस्था को समृद्ध, सुरक्षित और विकसित बनाने के लिए हम अपने सामाजिक आचरण में वह शुद्धता और उत्कृष्टता विकसित करें, गढ़े, उसे स्थायित्व दें, जिससे हमारे सार्वजनिक जीवन आचरण में अपने घर-परिवार, समाज, गांव, शहर और देश के प्रति अपनापन, सम्मान, दायित्व और कर्तव्य का बोध विकसित हो और सदैव बना रहे । फिलहाल संबोधन के महत्व की बात इसलिए कि महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी संस्थानों के लिए एक शासनादेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि अब से सरकारी विभाग के साथ सरकारी वित्त पोषित संस्थानों के सभी कर्मचारी फोन पर बात करते समय हेलो की जगह वंदे मातरम् के अभिवादन संबोधन से बातचीत की शुरुआत करेंगे । अब तक प्रशासनिक क्षेत्र की आंतरिक व्यवस्था में जय हिंद के संबोधन का सदुपयोग बहुत पहले से होता रहा है ! लिखने, कहने और सुनने में ऐसे सुधार अथवा नयेपन की बातें बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं लगती, पर सच्चाई यह है कि ऐसी छोटी-छोटी बातों, आदतों, नियमों से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का चरित्र गढ़ा जाता है, जो घर परिवार से लेकर देश समाज तक की पूरी व्यवस्था को उत्कृष्ट बनाने के साथ उसके दीर्घकालीन सुरक्षित और विकसित व्यवस्था का मूल आधार सिद्ध होता है ! किसी भी देश समाज में उसके नागरिकों के द्वारा दैनिक जीवन में अपनाई जाने वाली ऐसी आदतें उन्हें चारित्रिक विशिष्टता प्रदान करते हुए उनकी अपनी संपूर्ण सामाजिक और राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति उन्हें अपने दायित्वों और कर्तव्यों के निर्वहन के योग्य और जिम्मेवार बनाती है । किसी भी देश समाज के लोगों की ऐसी आदतें उनके और उनकी अगली पीढ़ियों के लिए संस्कार और बौद्धिक विकास का स्वाभाविक माहौल निर्मित करती है, जिसका वृहद लाभ हर एक व्यक्ति के साथ उसके घर-परिवार, समाज और पूरे देश को मिलता है !

वर्तमान समय में दुनियाभर के अधिकांश देशों में राष्ट्रवाद की बातें खूब हो रही है ! इसका कारण भूमंडलीकरण का तेजी से विस्तार है ! जिसमें आवागमन, कार्य व्यापार और भ्रमण मनोरंजन के लिए व्यक्ति अब गांव शहर और देश की परिधि से बाहर निकल दुनियाभर में आने-जाने और कार्य करने लगा है । बदलती हुई इन वैश्विक परिस्थितियों में हर देश के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपने नागरिकों में अपनी प्राचीन सभ्यता संस्कृति के साथ देश के सुरक्षित वर्तमान और स्वर्णिम भविष्य के लिए ऐसा चरित्र गढ़े जिससे उसका मूल अस्तित्व कायम और सुरक्षित रहे । इसी परिप्रेक्ष्य में बात यदि भारत की करें तो विदेशी पर्यटक और व्यापारी बनकर आए मुगलों और अग्रेजों का काला इतिहास हमारे सामने है । सैकड़ों साल की गुलामी का इतिहास हमें यह पहली शिक्षा देता है कि हमें हर नये बदलाव और नई चुनौतियों के साथ जीते हुए जो पहला और बहुत जरूरी काम करना है वह अपने देश के लोगों में अपने देश के प्रति राष्ट्रभाव, राष्ट्रीय दायित्व और कर्तव्य का बोध विकसित करना है ! किसी भी देश के लोगों का यह एकीकृत भाव, बोध और चरित्र ही उसकी सबसे बड़ी विरासत, उपलब्धि और शक्ति होती है । अकाट्य रूप से सदैव रहेगी भी । इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है । स्वामी विवेकानंद ने विश्व भ्रमण के बाद लगभग पूरे भारत का भ्रमण करने के पश्चात भारत के भविष्य को लेकर गंभीर चिंतन किया था । उनका निष्कर्ष था कि यदि भारत को सुरक्षित और स्वर्णिम भविष्य के लिए कुछ करने की जरूरत है तो सबसे पहले आवश्यक रूप से हर भारतीय को राष्ट्रदेव की आराधना करनी होगी । उन्होंने महसूस किया था कि भारत अब तक जितना बचा हुआ है, वह उसके एक धर्म के कारण है पर इसके तमाम विभाजन और बिखराव का मूल कारण भारतीयों में एकीकृत राष्ट्रबोध और राष्ट्रीय दायित्व तथा कर्तव्य बोध का अभाव रहा है । जब तक हर भारतीय एकीकृत राष्ट्रीय बोध से जुड़कर अपने व्यापक अस्तित्व और गरिमा से परिचित नहीं होगा, देश के साथ हर नागरिक का भविष्य भारतीय के रूप में असुरक्षित ही रहेगा ।

निष्कर्ष यह है कि हमें, हर भारतीय नागरिक को अपने दैनिक जीवन और आचरण में राष्ट्रबोध, राष्ट्रीय दायित्वों और कर्तव्यों से परिपूर्ण होना होगा और बहुत बेहतर होगा कि इसके लिए कोई अतिरिक्त और विशिष्ट प्रयास करने की कोई जरूरत ही ना हो, हम अपने नागरिकों के दैनिक जीवन की दिनचर्या में कुछ ऐसे सरल संबोधन और भाव, कर्म विकसित करें जिनसे हमारी एकता, राष्ट्रीय अखंडता और शक्ति के साथ विकास की गति निर्बाध रूप से सुरक्षित रहे । इसके लिए हमें सरकारी महकमों के साथ हर आम भारतीय नागरिकों में भी वन्दे मातरम् और जय माँ भारती जैसे संबोधनों को अभिवादन और मेलजोल का प्रारंभिक संबोधन बनाना होगा । महाराष्ट्र सरकार की दूरदर्शिता से ऐसी शुरुआत हो रही है, जो वंदनीय है और अनुकरणीय भी !