तनवीर जाफ़री
स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश भर में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मनाया जा रहा है। सरकारी व ग़ैर सरकारी स्तर पर देश भर में अनेकानेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पूरे देश में बड़े पैमाने पर दो दिवसीय ‘घर घर तिरंगा’ अभियान चलाया गया। 15 अगस्त के दिन लाल क़िले को विशेष रूप से सुसज्जित किया गया। देश के अनेक नगरों में तिरंगा यात्रायें निकाली गईं। गोया आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ का बड़े पैमाने पर जश्न मनाया गया। और इसे भी महज़ एक संयोग कहें कि ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मना रहे इसी वर्ष में कांग्रेस पार्टी द्वारा कन्याकुमारी से कश्मीर तक लगभग 3700 किलोमीटर लंबी पदयात्रा निकाली जा चुकी है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के नेतृत्व में चल रही यह भारत जोड़ो यात्रा 12 राज्यों से होकर गुज़रेगी।
सवाल यह है कि क्या सत्ता की ओर से अधिकृत तौर से घोषित किया गया व मनाया जा रहा ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ और देश की वर्तमान स्थिति व देश की जनता के हालात वास्तव में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के लिये साज़गार हैं ? क्या देश के करोड़ों बेघर व निराश्रित लोगों के लिये ‘घर घर ‘ तिरंगा अभियान के कोई मायने भी हैं ? देश में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही साम्प्रदायिकता व जातिवाद के वातावरण क्या हमें स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ को ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के जश्न के रूप में मनाने की इजाज़त देते हैं। निरंतर बढ़ती जा रही मंहगाई व बेरोज़गारी क्या ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के लक्षण हैं ? आज भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 83 रूपये के रिकार्ड स्तर तक पहुँचने जा रहा है। रूपये की इस ऐतिहासिक गिरावट का कारण यदि 2014 के नरेंद्र मोदी के कथन के नज़रिये से देखें तो – “रुपया उसी देश का गिरता है जिस देश की सरकार भ्रष्ट और गिरी हुई हो” । आज सत्ता कहां तो विश्व गुरु,विश्व शक्ति,महाशक्ति बनने और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जैसे बड़े बड़े दावे करती है तो दूसरी और रुपया अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 83 रूपये के रिकार्ड स्तर तक पहुँच जाना अर्थात मोदी के ही शब्दों में ‘देश में भ्रष्ट और गिरी हुई सरकार’ का वातावरण क्या हमें आज़ादी के अमृत महोत्सव का एहसास कराता है ? सत्ता द्वारा रची जा रही विपक्ष को समाप्त करने की साज़िश और सरकारी संस्थाओं पर नियंत्रण हासिल करने जैसी कोशिशें क्या किसी जीवंत लोकतान्त्रिक राष्ट्र का प्रतीक हैं ? मीडिया द्वारा सत्ता के समक्ष ‘ शाष्टांग दंडवत ‘ करना और सत्ता के बजाये विपक्ष को कटघरे में खड़ा करना और देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने का षड़यंत्र रचना क्या ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ की कारगुज़ारी मानी जा सकती है ?
उपरोक्त व इन जैसे अनेक सवालों को लेकर ही कांग्रेस ने राहुल गाँधी के नेतृत्व में सैकड़ों पार्टी नेताओं हज़ारों कार्यकर्ताओं व अनेक समाजसेवियों के साथ लगभग 150 दिनों तक पैदल चलकर ‘आज़ादी के इसी अमृत महोत्सव काल ‘ के दौरान ‘भारत जोड़ो ‘ यात्रा जैसा ऐतिहासिक मिशन छेड़ दिया है। जैसे जैसे यह यात्रा आगे बढ़ रही है, इसमें शामिल लोग,उनका उत्साह,रास्ते में यात्रा को मिल रहा अपार जन समर्थन इस यात्रा के दौरान रोज़ाना उठाये जाने वाले मुद्दे,इसमें शामिल हर धर्म जाति क्षेत्र व समुदाय के लोगों की शिरकत,यात्रा में हो रहे शांति,सद्भाव व परस्पर भाईचारे के दर्शन देखकर तो यही प्रतीत होता है गोया यही यात्रा उस वास्तविक भारत का दर्शन पेश कर रही है जिस ”अनेकता में एकता ‘ रखने वाले महात्मा गांधी,भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद,सुखदेव,राजगुरु व अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों के भारत को दुनिया अब तक आदर व सम्मान के साथ जानती रही है।
इस यात्रा में सोनिया गाँधी व प्रियंका गाँधी के शामिल होने के राजनैतिक महत्व उसके राजनैतिक लाभ हानि जैसे पार्टी स्तरीय विषयों को अलग करके भी देखें तो भी यह यात्रा वास्तविक भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करती नज़र आ रही है। मिसाल के तौर पर भारत जोड़ो यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले सभी धर्मों से सम्बंधित प्रमुख धर्मस्थलों में राहुल गाँधी का जाना और उन के धर्मगुरुओं से शुभाशीष लेना देश के वास्तविक धर्म निरपेक्ष स्वरूप का दर्शन कराता है। यात्रा के मार्ग में छात्रों व बेरोज़गार युवकों का शामिल होना देश के शिक्षित युवाओं की बेचैनी को प्रतिबिम्बित करता है। इससे अधिक भावुक व उम्मीदों भरा क्षण इस यात्रा के लिये और क्या हो सकता है जबकि कर्नाटक से गुज़रते हुये इस यात्रा में खेल व शिक्षा के क्षेत्र में ख्याति अर्जित करने वाले कई दिव्यांग अपनी अपनी ट्राई साईकिल के साथ यात्रा में शामिल हुये। यात्रा के अब तक तय किये गये लगभग पूरे मार्ग में रास्ते में शिरकत करने वाले स्थानीय लोक कलाकार अपनी विशेष वेश भूषा में नृत्य करते लोग अपनी उपस्थिति से भारत की रंग बिरंगी संस्कृति तथा विविधता में एकता का जीवंत एहसास करा रहे हैं।
वहीं पत्रकार व सामाज सेवी गौरी लंकेश के परिवार के लोगों का इस यात्रा में शामिल होना इस बात का संकेत है कि यह यात्रा नफ़रत व हिंसा फैलाने वालों के विरुद्ध उन भारतवासियों की सशक्त आवाज़ है जो देश में अलग अलग विचार रखने के बावजूद मिल जुल कर प्रेम व सद्भाव से देश में रहना चाहते हैं। रास्ते में हर वर्ग व समाज के बुज़ुर्गों व बच्चों से यात्रा को मिलने वाला प्यार,उनका आशीष व समर्थन देखकर यही महसूस होता है गोया यही वास्तविक भारत का स्वरूप है। उधर यात्रा के दौरान राहुल गांधी की विनम्रता को दर्शाने वाले कई चित्र जिनमें विशेषकर तेज़ बारिश में भीगते हुये उनका भाषण देना,ज़मीन पर बैठकर सोनिया गाँधी के जूते का फ़ीता कसते हुये उनकी फ़ोटो जहां किसी राजनेता की विनम्रता के दर्शन करा रही थी वहीं रास्ते में मामूली सी चाय की दुकानों पर जनसाधारण की तरह उनका बैठना और आम लोगों से मिलना व बात करना सीधे तौर पर आम लोगों में यह एहसास पैदा कर रहा है कि यह यात्रा किसी शासक की इकतरफ़ा ‘मन की बात ‘ थोपने वाली नहीं बल्कि जन जन की बात सुनने वाली यात्रा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ का प्रोपेगण्डा भले ही सरकार व सत्ता द्वारा किया जा रहा हो परन्तु इसमें भी कोई शक नहीं कि कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही ‘भारत जोड़ो यात्रा ‘ही दरअसल ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ का सबसे बड़ा,रचनात्मक,शक्तिशाली व ऐतिहासिक आयोजन है।