बच्चों को सुविधाएं दें,लेकिन संस्कारों के साथ

पिंकी सिंघल

किसी भी देश के बच्चे उस देश के भविष्य के निर्माता अर्थात राष्ट्र निर्माता कहलाते हैं ।इस बात में कोई संदेह नहीं कि जिस देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग युवा वर्ग होता है उस देश की प्रगति दर उन देशों की अपेक्षा तीव्र होती है जिन देशों की जनसंख्या के बड़े भाग में किशोर एवं वरिष्ठ लोग शामिल होते हैं।

हमें अपने देश को तरक्की की राह पर ले जाने के लिए अपने देश की जनसंख्या को सशक्त एवं चरित्रवान बनाना चाहिए क्योंकि किसी भी देश के नागरिक उस राष्ट्र के विकास एवं प्रगति के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। यह सच है कि किसी भी देश की प्रगति में बड़ा हाथ देश के युवा वर्ग का होता है ,किंतु, यदि बाल्यावस्था से ही बच्चों में अच्छे संस्कार डाले जाएं तो युवावस्था तक पहुंचते-पहुंचते वे संस्कारी एवं चरित्रवान नागरिक बनते हैं और अपने देश की संस्कृति और सभ्यता को आगे ले जाने में सहायक सिद्ध होते हैं ।

आज के मेरे इस आलेख का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हमें अपने बच्चों को हर संभव सुख सुविधाएं देने का प्रयास करना चाहिए ताकि बच्चों में आत्मविश्वास की वृद्धि हो और वे पूरे जोश और विश्वास के साथ जिंदगी में चुनौतियों का सामना कर पाएं और आगे ही आगे बढ़ सकें।

निसंदेह प्रत्येक माता-पिता और अभिभावक की यही कोशिश होती है कि वह अपने बच्चे को दुनिया के तमाम सुख सुविधाएं उपलब्ध कराएं और जिन चीजों से वे स्वयं कभी वंचित रहे ,उन चीजों की कमी उनके बच्चों को ना देखनी पड़े ।इसलिए वे अपने बच्चों को दुनिया की हर खुशी दे देना चाहते हैं और सही भी है ।हमारी हमेशा यही कोशिश होनी चाहिए कि हम बच्चों के लालन-पालन में कोई कमी ना रखें और उनका पालन पोषण पूरी ईमानदारी के साथ करें ।उनके प्रति यह हमारा कर्तव्य भी है और हमारे बच्चों का अधिकार भी ।दुनिया के प्रत्येक बच्चे को हंसी खुशी सुख सुविधाओं के साथ जीने का अधिकार है जिससे उन्हें वंचित नहीं रखा जाना चाहिए ।

परंतु ,इन सभी बातों के साथ-साथ यह बात भी नितांत सत्य है कि बच्चों को सुख सुविधाएं उपलब्ध कराएं किंतु कहीं ये सुख सुविधाएं ही उनकी प्रगति और तरक्की के मार्ग में बाधक न बननी शुरू हो जाएं, इस बात का भी हमें विशेष रूप से ध्यान रखना होगा ।अधिकतर होता क्या है कि बच्चे भौतिक सुविधाओं के नाम पर गलत आदतों का शिकार हो जाते हैं।वे अवांछित मांगें रखने लग जाते हैं और जब उनकी ये इच्छाएं और मांगे पूरी नहीं की जाती तो वे उग्र हो जाते हैं और अंतत: समाज और देश के लिए घातक सिद्ध होते हैं क्योंकि उनका इस प्रकार का गैर जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार भविष्य में जाकर गैर कानूनी गतिविधियों में तब्दील हो जाता है।

अक्सर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि आज की जनरेशन के बच्चों में सहनशक्ति की कमी है इसलिए वे तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं ।किंतु, मेरा मानना यह है कि हमारे बच्चे किस प्रकार का व्यवहार करते हैं वह काफ़ी हद तक हम बड़ों अर्थात अभिभावकों पर निर्भर करता है ।हम अपने बच्चों के समक्ष जिस प्रकार का व्यवहार करते हैं, वह उनके लिए उदाहरण बन जाता है और वे हमारा अनुकरण करना आरंभ कर देते हैं। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे देश के जिम्मेदार नागरिक बनें, संस्कारी बनें, सुशील बनें,सभ्य बनें, तो हमें सर्वप्रथम अपने व्यवहार को सभ्य एवम संतुलित बनाना होगा।कहा भी तो गया है न कि चैरिटी बिगिंस फ्रॉम होम।

उपरोक्त स्थितियां उत्पन्न न होने पाएं, इसका पूरा दायित्व भी कहीं न कहीं हम अभिभावकों और माता-पिता का ही है ।हमें अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार देने होंगे, बड़ों का सम्मान करना करना सिखाना होगा,मजबूर और मजलूम लोगों की मदद करने की आदत को विकसित करना होगा, छोटू के प्रति स्नेह पूर्ण व्यवहार भी उन्हें हम ही सिखा सकते हैं और इस बात का भी हमें ही खास ख्याल रखना होगा कि उन को दी जाने वाली सुविधाओं का वे किसी भी सूरत में दुरुपयोग न करें और समाज के प्रति अपने सभी प्रकार के दायित्वों को समझें और उन्हें पूरी ईमानदारी के साथ निभाएं।

उपरोक्त छोटी किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण बातों को मस्तिष्क में रखकर हम अपने देश को ऊर्जावान सुर संस्कृत शब्द है एवं सहनशील नागरिक सौंप सकते हैं और देश की तरक्की में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं इसलिए अपने देश और समाज को बेहतर बनाने के लिए सबसे पहले स्वयं को जिम्मेदार बनाएं अपने चरित्र को मजबूत बनाएं एवं अपनी सभ्यता के साथ कभी खिलवाड़ न होने दें।